सियासी दुश्मनों की भी मिलीभगत
राजनीतिक हालात और नफा.नुकसान देखते हुए भले इस मामले में कोई खुलकर नहीं बोल रहा लेकिन आने वाले समय में इससे भाजपा का भी नुकसान बताया जा रहा है। अदालत से आरोप सिद्ध होने के बाद करवरिया बंधुओं के राजनीतिक भविष्य पर तलवार लटक गई है। कानूनी जानकारों की मानें तो सजायाफ्ता होने के बाद सियासी पारी में सीधे तौर पर उतरना तीनों करवरिया भाइयों के लिए संभव नहीं होगा। वहीं, आने वाले समय में भाजपा संगठन और सियासत में इसका असर दिखेगा। अभी तक सभी को खासतौर से ब्राह्मणों को उम्मीद थी कि करवरिया बन्धुओं के जरिए उनका वर्चस्व लौटेगा। कभी भाजपा के कद्दावर चेहरा रहे उदयभान के मामले में फैसले के समय भाजपा का कोई बड़ा चेहरा साथ नहीं दिखा। उदयभान के समर्थकों का कहना है कि इस फैसले के पीछे करवरिया परिवार के सियासी दुश्मनों की भी मिलीभगत है। उनका दावा है कि अगर उदयभान बरी हो जाते तो भाजपा में ही कुछ लोगों के राजनीतिक प्रतिद्वंदी होते। ऐसे में उदयभान समर्थक इस फैसले को सियासी नज़र से देखते हैं।
राजनीतिक बिसात की गोटियां बिगड़ी
दरअसल, एक दौर था जब उदयभान करवरिया भाजपा से विधायक उनके बड़े भाई कपिल मुनि करवरिया बसपा से सांसद और सबसे छोटे भाई सूरजभान करवरिया एमएलसी थे। हालांकि इस फैसले के बाद तीनों दिग्गज राजनीतिक धुरंधरों का राजनीतिक जीवन अधर में दिख रहा है। बीते 2017 के विधानसभा चुनाव में उदयभान की पत्नी नीलम करवरिया मेजा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनी हैं। करवरिया परिवार को दोषी करार दिए जाने के बाद जिले ही नहीं आसपास के जिलों में भी राजनीतिक बिसात की गोटियां बिगड़ी हैं।
विधानसभा चुनाव में होते चेहरा
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर इस मामले में करवरिया बंधुओं को रिहाई मिली होती तो आगामी 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में तो आने वाले चुनाव में प्रयागराज ही नहीं आसपास के प्रतापगढ़ कौशांबी और फतेहपुर में भी इसका असर देखने को मिलता। बदलते समीकरण के मुताबिक भाजपा निश्चित तौर पर करवरिया बंधु पर दांव लगाती जिनमें खासतौर से उदयभान करवरिया को विधानसभा चुनाव में उतारा जाताए लेकिन अब कोर्ट के उन्हें दोषी करार दिए जाने के बाद विरोधियों के साथ पार्टी में भी उनके विरोधियों को बड़ी राहत मिली है।
कई सीटों पर ब्राह्मणों का वर्चस्व
प्रयागराज मंडल की कई विधानसभा सीटों पर ब्राह्मणों का वर्चस्व है। जीतने वाले चेहरे कोई भी हो, लेकिन पलड़ा उन्हीं का भारी होता है जिनके साथ ब्राह्मण मतदाता जाते हैं। पूरे मंडल के ब्राह्मणों में करवरिया बंधुओं की अपनी मजबूत पकड़ है। उदयभान करवरिया जहां यमुनापार के बारा विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक चुने जा चुके हैं।वहीं उनके बड़े भाई फूलपुर जैसी सपा की परंपरागत सीट से बसपा के सांसद रह चुके हैं। बता दें कि 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के पहले ही उदयभान करवरिया जेल चले गए। उस समय उन्हें फूलपुर लोकसभा प्रबल उम्मीदवार माना जा रहा था। हालांकि बाद में पार्टी ने इस सीट पर केशव प्रसाद मौर्या को टिकट दिया। वही 2017 के विधानसभा से पहले उदयभान के जेल से छूटने की अटकलें तेज हुई लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इन सबके बीच मेजा विधानसभा सीट से नीलम करवरिया को उम्मीदवार बनाया गया और उन्होंने शानदार जीत दर्ज की।
ये फैसला भाजपा के लिए भी नुकसानदेह
जिले के संगठन में जुड़े कई भाजपा नेताओं ने नाम न लिखने की शर्त पर कहा कि करवरिया बंधुओं के खिलाफ आया फैसला आने वाले समय में सिर्फ करवरिया परिवार ही नहीं लेकिन भाजपा के लिए भी नुकसानदेह साबित होगा। उन्होंने कहा कि पूरे मंडल में ब्राह्मणों का बड़ा चेहरा थे। करवरिया डॉ मुरली मनोहर जोशी और केशरी नाथ त्रिपाठी के बाद जिले में ब्राह्मण मतदाताओं के लिए बड़ा चेहरा थे। करवरिया बंधुओं के साथ एक बड़ा जनाधार जुड़ा है।