पीएचडी पूरी करने वाले 181 छात्र.छात्राओं को उपाधियां प्रदान की
यूनिवर्सिटी का सीनेट हाल 22 वर्षों के बाद एक बार फिर से दीक्षान्त समारोह का गवाह बना। दीक्षान्त समारोह में शैक्षिक सत्र 2017.18 के 63 मेधावियों को स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक दिये गए। दीक्षान्त समारोह के मुख्य अतिथि नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने पीएचडी पूरी करने वाले 181 छात्र.छात्राओं को इस मौके पर उपाधियां प्रदान की। छह मेधावियों को चांसलर अवार्ड दिया गया उनमें से एक को छोड़कर पांच छात्राएं शामिल हैं । दीक्षान्त समारोह में पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी को एल एल डी की मानद उपाधि और प्रदेश पुलिस के मुखिया डीजीपी ओ पी सिंह को डी लिट् मानद उपाधि दी गई। डीजीपी की गैरमौजूदगी में दी गई मानद उपाधि कुलसचिव प्रो ए के शुक्ला ने ग्रहण किया। इस मौके पर मुख्य अतिथि ने विवि के न्यूज लेटर का भी विमोचन किया।
प्रयाग की पवित्र भूमि और यह महान विश्वविद्यालय
इस मौके पर नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने बेटों से ज्यादा बेटियों के गोल्ड मेडल जीतने पर खुशी जतायी। बेटियों को भारत माता की प्रतिमूर्ति बताते हुए उन्होंने कहा कि बेटियां ही देश को आगे बढ़ायेंगी। उन्होंने कहा कि प्रयागराज की पवित्र भूमि और महान विश्वविद्यालय में आकर मुझे बेहद अच्छा अनुभव हो रहा है। इस मौके पर उन्होंने लोगों से राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक नजरिये के विस्तार की भी अपील की। उन्होंने लोगों से करुणा और दया का विस्तार कर लोगों का दुख दर्द बांटने की भी अपील की। कैलाश सत्यार्थी ने युवाओं से कहा है कि वे चैम्पियन हीरो और नेता बाहर न ढ़ूंढ़ें बल्कि अपने अंदर ही ढ़ूंढ़े क्योंकि एक नेता एक हीरो और एक चैम्पियन आपको अंदर ही है। उन्होंने नौजवानों की ऊर्जा को मानवता की रक्षा और कल्याण में लगाने की बात कही है।
बेटियों ने गुलामी के बंधनों को तोड़ दिया
कैलाश सत्यार्थी ने कहा विश्वविद्यालय की बेटियों ने 5000 साल के गुलामी के बंधनों को आज तोड़ दिया है। आज बेटियों के सपने पूरे होने का दिन है। नए संकल्पों की शुरुआत का दिन है। आपके माता.पिता के आशाओं आकांक्षाओं पर खरे उतरने का दिन है। पूरे राष्ट्र में यूनिवर्सिटी का नाम रोशन करने के संकल्प का दिन है। आप लोगों के कंधों पर पहले से बड़ी जिम्मेदारी है।प्रयागराज की हजारों साल की पुरानी सभ्यता संस्कृति और कला को इन हवाओं में महसूस कर रहा हूं। इस विश्वविद्यालय का महान इतिहास रहा है। यहाँ से पड़ोसी देशों के लिए भी प्रधानमंत्री दिया है। कहा कि चंद्रशेखर आजाद को श्रद्धा सुमन अर्पित करके बड़ी शांति का अहसास हुआ।कुछ लोगों ने मुझे कहा कि वह हिंसा के रास्ते से आजादी चाहते थे।लेकिन मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि देश भक्ति के सही मायने कुछ समझना है तो इन शहीदों के चरणों को नमन करना होगा।आजाद भारत का सपना इन्होंने देखा और आज हम आजाद है।
कुलपति ने दीक्षान्त समारोह को बेहद खुशी का पल बताया
कुलपति प्रो रतन लाल हांगलू ने दीक्षान्त समारोह को बेहद खुशी का पल बताया है। उन्होंने 22 साल बाद आयोजित दीक्षान्त समारोह को अब नियमित रुप से आयोजित करने की भी बात कही है। कुलपति ने विश्व विद्यालय में जल्द ही बच्चों के अधिकारों के लिए जल्द एक केन्द्र की स्थापना किए जाने की भी घोषणा की है। जबकि दीक्षान्त समारोह में मानद उपाधि से सम्मानित पूर्व राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने कहा है कि दीक्षान्त समारोह एक पक्षीय नहीं होता है, इसलिए इसका आयोजन हर साल होना चाहिए। उन्होंने कहा है कि ये दीक्षा का कार्यक्रम है और विद्यार्थी यहां से कुछ लेकर जाता है। दीक्षान्त समारोह के आयोजित किए जाने से विद्यार्थियों में साल भर उत्साह बना रहेगा और आपस में कुछ अच्छा करने की प्रतिस्पर्धा भी बनी रहेगी। उन्होंने कहा है कि दीक्षान्त समारोह का मतलब केवल डिग्री बांटने से नहीं है। बल्कि इसका सम्बन्ध छात्र.छात्राओं के बहुआयामी विकास से भी है।
मेधावियों ने इसे जीवन भर न भूलने वाला पल बताया
वहीं दीक्षान्त समारोह में मेडल और डिग्री हासिल करने वाले छात्र.छात्रायें बेहद उत्साहित हैं। डिग्री लेकर जहां कोई वैज्ञानिक बनना चाहता है तो कई शिक्षक बनकर देश के निर्माण में सहयोग करने का जज्बा रखता है। दीक्षान्त समारोह में शान्ति से के लिए नोबल पुस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी को अपने बीच पाकर छात्र.छात्राओं में उत्साह और ख़ुशी रही मेधावियों ने इसे जीवन भर न भूलने वाला पल करार दे रहे हैं। इविवि को वर्ष 2005 में केंद्रीय विवि का दर्जा मिला था। इस लिहाज से केंद्रीय विवि का यह पहला दीक्षान्त समारोह कई मायनों में यादगार बन गया। इस दीक्षान्त समारोह में जहां शान्ति के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी का दीक्षान्त भाषण छात्र.छात्राओं को सुनने का मौका मिला। वहीं 22 वर्षों के अंतराल के बाद एक बार से इस विश्वविद्यालय में दीक्षान्त समारोह की परम्परा शुरु हुई है। इलाहाबाद विवि में आखिरी बार 1996 में इविवि में दीक्षांत समारोह आयोजित हुआ था।