यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राहुल कुमार व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। मामले में यूपी सरकार द्वारा 2018 में जारी किए गए 69 हजार पदों पर शिक्षकों की भर्ती का उल्लेख किया गया था। सभी पदों पर भर्ती केबाद सरकार ने 6800 अतिरिक्त उम्मीदवारों की सूची जारी की थी। हाईकोर्ट के समक्ष भारती पटेल और पांच अन्य द्वारा दायर एक याचिका में इस फैसले को चुनौती दी गई। सरकार की ओर से तर्क दिया गया था कि कुछ आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों ने 2020 में हाईकोर्ट केसमक्ष याचिका दायर कर 2018 के विज्ञापन के अनुसार 69 हजार पदों पर की गई नियुक्ति को चुनौती दी थी।
एकल पीठ के आदेश को दी गई थी चुनौती मामले में आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों का तर्क था कि उन्होंने सामान्य श्रेणी के लिए कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए हैं, इसलिए वे अनारक्षित पदों के लिए विचार करने और चुने जाने केे हकदार हैं। इसलिए राज्य ने आरक्षण नीति के कार्यान्वयन पर फिर से विचार किया और 68 सौ उम्मीदवारों के नाम वाली एक नई चयन सूची जारी करने का निर्णय लिया।
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने सुनवाई के बाद यूपी सरकार के फैसले पर रोक लगा दी। वर्तमान मामले में एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई नियुक्ति रिक्तियों के विज्ञापन के बिना करने की मांग की जाती है तो वह संविधान के अनुच्छेद-16 समान अधिकार का उल्लंघन होगा।