यह शैलचित्र स्वयं पांडवों ने उत्कीर्ण किए या महाभारत कथाओं से प्रेरित होकर गुफा मानवों द्वारा प्रारंभिक ऐतिहासिक काल में बनाए गए होंगे, यह कह पाना कठिन है लेकिन यहां पुरातत्व विभाग से सर्वे और वैज्ञानिक अध्ययन की आस है। जिससे इनकी वास्तविकता का पता चल सके।
इस तरह ढूंढे गए हैं ये शैलचित्र
जिले के पर्यावरणविद् मंगल मेहता ने जंगल में कुछ शैलचित्र ढूंढे हैं। इनमें एक में आगे एक महिला व उसके पीछे पांच पुरुष चल रहे हैं। संभावना जताई जा रही है कि यह चित्र पांडवों के अज्ञातवास को दर्शा रहा है क्योंकि इसमें एक चित्र स्त्री का है, अगुआई करने वाले ज्येष्ठ पुरुष हाथ में एक पात्र लिए हुए हैं और चार मानव उनका अनुगमन कर रहे हैं। महाभारत की कथा में आया है कि सूर्यदेव ने युधिष्ठिर को एक अक्षय पात्र के रूप में वरदान दिया था। संभवत: वहीं पात्र धारण किए हुए शैलचित्र में दिख रहे हैं। इसी तरह की मूर्तियां दक्षिण भारत के मंदिर की दीवारों पर बनाई गई है। कांठल क्षेत्र के जंगलों में पांडवों के पदार्पण से जुड़ी कहानियों का प्रचार लोक जनजीवन में वर्षों से प्रचलित है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह चित्र पांडवों का हो सकता है।
अनुकूल वातावरण में पनपती सभ्यताएं
पुरातत्वविदें के अनुसार, नदियों, जंगलों के समीप विकसित हुई प्राचीन सभ्यताएं, विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताएं नदियों किनारे जंगलों के समीप विकसित हुई। जहां भोजन और सुरक्षित आवास उपलब्ध रहे हो। यहां भी नदी-नालों के किनारे आदिमानव आश्रय स्थल पाए गए है। यहां गुफाओं में शैल चित्र प्राप्त हुए हैं एवं इनके आसपास कई किलोमीटर दूर तक कुछ प्रागैतिहासिक चिन्ह, मूर्तियां, भित्ति चित्र, उपकरण, कप माक्र्स, चारदीवारी युक्त आवास, भूमिगत चेंबर, कुई, बावड़ी, स्टोन एज के मोर्टार, ओखली रिंग स्टोन, विचित्र से मिट्टी के पात्र के टुकड़े इन साइट्स के आसपास देखे गए हैं।