डरने की आवश्यकता नहीं सरकार है साथ दरअसल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सोमवार को कैराना के दौरे पर पहंचे और यहां उन पीड़ित परिवारों से मुलाकात की जो विशेष समुदाय के गुंडा राज के कारण पलायन करने को विवश हो गये थे और अब जाकर वो अपने घर वापस लौट रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने शामली के कैराना में मौजूदा कानून व्यवस्था का जायजा लिया और जनता को भरोसा दिलाया कि सरकार पूरी तरह से उनके साथ है, डरने की कोई बात नहीं है। इस दौरान सीएम योगी ने एक जनसभा को भी संबोधित किया जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि यूपी में तालिबानी मानसिकता स्वीकार नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा, “पिछले साढ़े चार साल में हमने इस तरह का माहौल बना दिया, जिससे अपराधी सिर उठाकर चलने के लायक भी नहीं रह गया है। जिसने भी व्यापारियों या निर्दोष लोगों पर गोली चलाई उसकी छाती में गोली मारकर दूसरे लोक की यात्रा करा दी।” योगी ने दंगाइयों को चेताते हुए कहा, “जो भी अराजकता करने की कोशिश करेगा, दंगा करेगा, उसकी आने वाली पीढ़ियां भूल जाएंगी कि कैसे दंगा होता है।”
उन्होंने तालिबानी मानसिकता पर प्रहार करते हुए कहा, “जब मुजफ्फरनगर में दंगा होता है तो कुछ लोग खुश होते हैं, कैराना से पलायन पर खुश होते हैं। तालिबान के शासन पर नारे लगाते हैं, तालिबानी मानसिकता नहीं चलने देंगे।”
इस दौरान योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि उनके शासनकाल में अपराधियों को हौसले पस्त हुए हैं और कानून व्यवस्था मजबूत हुई है, परंतु कैराना के दौरे को लेकर विपक्ष ने योगी सरकार पर सांप्रदायिकता की राजनीति करने के आरोप लगाये हैं। स्पष्ट है कि भाजपा कैराना में हिंदुओं के पलायन के मामले को लेकर राजनीतिक स्कोर सेट कर रही है।
कैराना से क्यों करना पड़ा था हिंदुओं को पलायन? वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर इस्लामिक चरमपंथ के उन्माद से दहल उठा था, इस दंगे की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि इससे सटे कैराना से वर्ष 2016 में हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा सामने आया था। कैराना में हिन्दुओं के पलायन की बड़ी वजह जनसंख्या समीकरण को भी माना जाता है। वर्ष 2016 में हिन्दुओं के पलायन के मामले की जांच में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) की चार सदस्यों की टीम ने भी पाया था कि हिंदू परिवार वास्तव में विशेष समुदाय के कारण पलायन करने को विवश हुए थे।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कैराना से सैकड़ों हिंदू परिवार पलायन कर चुके थे और इसका कारण कैराना की आबादी के अनुपात में बदलाव है। इस रिपोर्ट में माना गया था कि कैराना में कुछ मुस्लिम युवक हिंदुओं की बहू-बेटियों के साथ छेड़छाड़ करते हैं। इन युवकों के डर से कुछ पीड़ित परिवार पुलिस में शिकायत नहीं करते थे, और कुछ मामलों में तो स्थानीय पुलिस ने परिजनों की शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं की। आयोग ने 20 प्वाइंट में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में यूपी सरकार को कई सुझाव भी दिए थे, परंतु तत्कालीन सपा सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
बता दें कि साल 20011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश के कैराना की कुल आबादी 89,000 थी, जिसमें 16,320 (18.34%) हिंदू थे और 71,863 (80.74%) मुसलमान थे, अब तक तो ये अंतर और बढ़ गया होगा। यही कारण है कि वर्ष 2016 में सहारनपुर के पूर्व सांसद राघव लखनपाल ने दावा किया था कि कैराना में अब 92% मुस्लिम जबकि हिन्दू केवल 8% ही रह गए हैं।
कश्मीर के बाद कैराना में हिंदुओं का पलायन शर्मसार कश्मीर से हिंदुओं के पलायन के बाद कैराना का यह पलायन भारत के लिए किसी शर्मनाक स्थिति से कम नहीं था। वोट बैंक की राजनीति के कारण हिंदू समुदाय ने न्याय की उम्मीद ही छोड़ दी थी। कश्मीर के हिंदुओं ने भी राजनेताओं की सत्ता की लालसा के कारण दशकों तक अन्याय का दंश झेला था। सपा के मुस्लिम वैटबैंक के मोह ने, फिर भाजपा शासन की सुस्ती के कारण कैराना के हिंदुओं को न्याय मिलने में देरी हुई। हालांकि, अब कैराना में स्थिति बदल रही है।
वैटबैंक की राजनीति पलायन पर पड़ी भारी वैसे ये भाजपा के पूर्व सांसद स्वर्गीय हुकुम सिंह ही थे जिन्होंने कैराना में हो रहे बड़े पैमाने पर हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था और वर्ष 2016 में 346 हिन्दू परिवारों के पलायन की सूची भी जारी की थी। हुकुम सिंह ने कैराना में बढ़ते अपराध और अपराधियों को दिये जा रहे राजनीतिक संरक्षण पर भी प्रकाश डाला था। उत्तर प्रदेश में तब विधानसभा चुनाव पास थे और समाजवादी पार्टी ने वोटबैंक की राजनीति के लिए इस मामले को ज्यादा महत्व नहीं दिया था। उस समय भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और सत्ता विरोधी लहरों पर सवार हो भाजपा ने यूपी के विधानसभा चुनाव 2017 में जीत दर्ज की, परंतु बीजेपी यह सीट 2017 के विधानसभा चुनाव में नहीं जीत पाई थी। शायद यही कारण है कि हिन्दुओं के पलायन की समस्या को सुलझाने में भाजपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले का समय चुना।
अब जब 2022 के विधानसभा चुनाव पास हैं तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शामली के जनपद कैराना का दौरा किया और उन परिवारों से मुलाकात की, जो सांप्रदायिक दंगों के बाद यहां से पलायन कर गए थे, परंतु अब वो सभी वापस लौट रहे हैं। यही नहीं सीएम योगी ने सोमवार को कैराना में PAC कैंप, यूपी रोडवेज बस स्टैंड सहित करोड़ों रुपये की 114 विकास परियोजनाओं का लोकार्पण व शिलान्यास भी किया। स्पष्ट है भाजपा इस सीट को साधना चाहती है और अब विपक्ष ने भी योगी आदित्यनाथ के कैराना दौरे और पलायन के मुद्दे को हल करने की टाइमिंग को लेकर भाजपा पर वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है।
बता दें कि कैराना पश्चिम उत्तर प्रदेश के शामली जिले की 3 विधानसभा सीटों में से एक है और हुकुम सिंह ने कैराना विधानसभा का सबसे अधिक समय तक प्रतिनिधित्व किया है। हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद भाजपा इस सीट को जीतने में असफल रही, परन्तु इस बार भाजपा एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। हालांकि, यूपी चुनाव में भाजपा का कैराना का दांव सफल होगा या नहीं ये तो आने वाला समय ही बतायेगा, परन्तु योगी आदित्यनाथ इस सीट पर भाजपा की दावेदारी को मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।