2014 लोकसभा चुनाव बनाम 2019 लोकसभा चुनाव – बदलते समीकरण लोकसभा चुनाव 2019 के पहले दो चरणों के मतदान हो चुके हैं। बिहार की बात करें, तो अब मधेपुरा, अररिया, झंझारपुर, सुपौल और खगड़िया में 23 अप्रैल तीसरे चरण के मतदान होंगे। पिछले लोकसभा चुनावों में जो राजनीतिक समीकरण यहां देखने में आए थे, अब वे पूरी तरह से बदल चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में
एनडीए के घटक दलों में भाजपा ने झंझारपुर और एलजेपी ने खगड़िया सीटें जीती थीं, जबकि यूपीए के घटक दलों कांग्रेस ने सुपौल औऱ राजद ने मधेपुरा और अररिया सीटों पर फतह पाई थी। इस बार हालात बदल गए हैं। अब एनडीए के घटक दलों में जेडीयू तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि एलजेपी एक पर।
निषाद वोटबैंक के सहारे सीटें जीतने की जुगत यूपीए ने इस बार मुकेश साहनी को अपने गठबंधन में शामिल किया है, जो निषाद समुदाय के एक प्रभावशाली नेता माने जाते हैं। उनका प्रभाव बिहार की कई सीटों पर पड़ सकता है, क्योंकि निषाद समुदाय की जनसंख्या उन सीटों पर जीत और हार का प्रभाव पैदा करने वाली है। यही वजह है कि यूपीए के घटक दलों में राजद तीन सीटों पर ताल ठोक रही है, जबकि कांग्रेस और बोटमैन की पार्टी विकास इन्सान पार्टी एक-एक सीट पर भाग्य आजमाएंगी।
बिहार में भी एनडीए का प्रमुख चेहरा पीएम मोदी, नीतीश खामोश बिहार में यूपीए गठबंधन का एक चेहरा नहीं है। राहुल गांधी, लालू यादव, तेजस्वी के साथ-साथ कई छोटे दल स्थानीय स्तर पर यूपीए का चेहरा बने हुए हैं। इसके उलट एनडीए में बिहार के मुख्यमंत्री तक को खामोश रहना पड़ रहा है। एनडीए नेता
नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं। तो कुल मिलाकर देखा जाए, तो बिहार में 2019 के लोकसभा चुनावों ने मोदी बनाम राहुल गांधी, लालू यादव एंड कंपनी का रूप अख्तियार कर लिया है। अपने चुनावी भाषणों में मोदी विरोधी गठबंधनों पर हमला करते हुए उन्हें महामिलावट का नाम भी दे रहे हैं। लड़ाई बिहार में ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतने की है, ताकि केंद्र की सत्ता पर दावा मजबूत बन सके। अब 23 मई को यह देखना दिलचस्प रहेगा कि बिहार के सियासी गठबंधन क्या प्रदेश में मोदी की हार की वजह बन सकेंगे।