राजनीति

तो कांग्रेस-जेडीएस के पास नहीं है कर्नाटक क्राइसिस का तोड़, इसलिए बेफिक्र हैं बागी विधायक

Congresss-JDS का Karnataka Crisis से बाहर निकलना मुश्किल
चेतावनियों के बावजूद बेफिक्र हैं Rebellion MLAs
सियासी दुष्‍चक्र में बुरी तरह फंसी कुमारस्‍वामी सरकार

Jul 10, 2019 / 01:01 pm

Dhirendra

तो कांग्रेस-जेडीएस के पास नहीं है कर्नाटक क्राइसिस का तोड़, इसलिए बेफिक्र हैं बागी विधायक

नई दिल्‍ली। पिछले पांच दिनों से कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन ( Congress-JDS Coalition ) की सरकार कर्नाटक क्राइसिस ( karnataka crisis ) में फंसी हुई है। इस संकट से पार्टी को न तो दिल्‍ली में बैठे वरिष्‍ठ नेता बाहर निकाल पा रहे हैं और न ही प्रदेश के क्षत्रप या कांग्रेस के संकटमोचक डीके शिवकुमार।
हालांकि कर्नाटक कांग्रेस के दिग्‍गज नेता व कबीना मंत्री डीके शिवकुमार ( dk shivkumar ) ने अभी हार नहीं मानी है। पार्टी को इस संकट से बाहर निकालने के लिए वह मुंबई स्थित रेनिसंस होटल पहुंच गए हैं। लेकिन उन्‍हें अभी अंदर जाने की अनुमति नहीं मिली है।
 

नहीं देखी ऐसी बेफिक्री

सियासी जंग के बीच अहम सवाल यह है कि कर्नाटक विधानसभा के अध्‍यक्ष द्वारा इस्‍तीफा स्‍वीकार नहीं करने और पूर्व सीएम व विधानसभा में पार्टी के नेता सिद्धारमैया द्वारा दल-बदल कानून के तहत छह साल के लिए चुनाव पर रोक लगाने की मांग के बाद भी बागी विधायक इतने बेफिक्र क्‍यों हैं? क्‍या उन्‍हें दल चुनाव लड़ने पर रोक और पार्टी से निष्‍काषित होने का भी डर नहीं लगता?
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बागियों की सधी चाल

दरअसल, ये बात नहीं है। कांग्रेस-जेडीएस गंठबंधन (Congress-JDS Coalition) बागी विधायकों ने इस बार सोच समझकर पार्टी हाईकमान के खिलाफ मोर्चा खोला है। उन्‍होंने विधायी और दल-बदल कानूनों की तकनीकी पहलुओं के हिसाब से कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के खिलाफ मोर्चा खोला है।
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मजबूर सरकार

बागी विधायकों को पता है कि जिस रणनीति के तहत उन्‍होंने विद्रोह का बिगुल फूंका है, उसके तहत वर्तमान परिस्थितियों में पार्टी निष्‍काषित करना हाईकमान के लिए संभव नहीं है। न तो विधानसभा की सदस्‍यता समाप्‍त की जा सकती है और न ही आगामी चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाना।
यही वजह है कि अब कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन (Congress-JDS Coalition) वाली सरकार बागी विधायकों से हर स्‍तर पर समझौता करने को तैयार है।

 

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क्या है दल-बदल कानून?

बता दें कि आयाराम गयाराम राजनीति समाप्त करने के लिए दल-बदल कानून 8वें लोकसभा चुनाव के बाद राजीव गांधी सरकार ने 24 जनवरी, 1985 को 52वां संविधान संसोधन विधेयक के जरिए लोकसभा में पेश किया था। 30 जनवरी को लोकसभा और 31 जनवरी को राज्यसभा में विधेयक पारित राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद दल-बदल अधिनियम अस्तित्व में आया।
इस कानून के जरिए अनुच्छेद 101, 102, 190 और 191 में बदलाव किया गया। संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई। यह संसोधन 1 मार्च, 1985 से लागू हो गया है।

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दल-बदल के तहत क्‍या हैं प्रावधान?

1. कोई सदस्य सदन में पार्टी व्हिप के विरुद्ध मतदान करे या गैरहाजिर रहे तो सदस्यता जाएगी, लेकिन जिस दल से वो जुड़ा है वो 15 दिन के भीतर सदस्य को माफ करे तो विधानसभा की सदस्यता बची रहेगी।
2. यदि कोई सदस्य स्वेच्छा से त्यागपत्र दे दें तो विधानसभा की सदस्यता चली जाएगी।
3. कोई निर्दलीय विधायक चुनाव जीतने के बाद किसी दल में चला जाए तो सदस्यता चली जाएगी।
4. यदि मनोनीत सदस्य कोई दल ज्वाइंन कर ले तो भी उसकी सदस्‍यता चली जाएगी।
 

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सरकार गिरने का डर

इन मानदंडों के हिसाब से देखें तो बागी विधायकों ( Rebellion MLAs ) ने अभी तक ऐसा कोई अपराध नहीं या जिसके आधार पर उनके खिलाफ दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई हो। ऐसा इसलिए बागी विधायकों ने खुद सदन की सदस्‍या से त्‍यागपत्र की सूचना विधानसभा स्‍पीकर और राज्‍यपाल को दे चुके हैं। पार्टी के व्हिप का उल्‍लंघन नहीं हुआ है। बागी विधायकों ने नए राजनीतिक दल की सदस्‍यता ग्रहण नहीं की है।
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यही कारण है कि पार्टी के बागी विधायक ( Rebellion MLAs ) सभी तरह की चेतावनियों के बावजूद बेफिक्र हैं। उन्‍हें पता है कि जिस कदर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन (Congress-JDS Coalition) की सरकार सियासी दुष्‍चक्र में फंसी है उसमें पार्टी की सदस्‍यता से बर्खास्‍त करना और विधानसभा की सदस्‍यता समाप्‍त करना भी संभव नहीं है। ऐसा करने पर कुमारस्‍वामी की सरकार अल्‍पमत आज जाएगी और उसे इस्‍तीफा देना पड़ सकता है।

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