कैसे कांग्रेस के साथ जाना शिवसेना को पड़ेगा भारी?
शिवसेना हिंदुओं की पार्टी मानी जाती रही है जिसकी धर्मनिरपेक्ष पार्टी कांग्रेस से कभी बनी नहीं। या यूं कहें कांग्रेस के विरोध में ही बाला साहब ठाकरे ने शिवसेना की नींव रखी थी। बाला साहब ठाकरे के विचारों के विपरीत शिवसेना ने वर्ष 2019 में मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाया था। उस समय इसके समर्थकों में काफी नाराजगी देखने को मिली थी। इसका प्रभाव बीएमसी चुनावों में देखने को मिल सकता है। इसके अलावा,कांग्रेस का साथ शिवसेना के आने से यूपी में भाजपा के लिए अवसर
पिछले कुछ समय से शिवसेना पार्टी अपने कोर हिन्दू वोट बैंक के साथ-साथ मुस्लिमों को भी लुभाने के प्रयास करती दिखाई दी है।महाराष्ट्र (Maharashtra) के बाहर शिवसेना का रिकार्ड खराब
उत्तर प्रदेश और गोवा में शिवसेना कुछ खास कमाल शायद ही दिखा सके। शिव सेना का इतिहास देखें तो महाराष्ट्र के बाहर उसका रिकार्ड काफी खराब रहा है। ऐसा नहीं है कि शिवसेना आज ही महाराष्ट्र के बाहर अपने हाथ-पाँव मार रही है।Uttar Pradesh Assembly Elections 2022 में अब छड़ी भांजते नजर आएंगे सुभासपा अध्यक्ष ओपी राजभर
क्या कहा शिवसेना ने ?
बता दें कि शिवसेना (Shiv Sena) के सांसद संजय राउत (Sanjay Raut) ने बुधवार को नई दिल्ली (Delhi) में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने घोषणा करते हुए कहा, “हम उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और गोवा (Goa) में एक साथ काम करने पर विचार कर रहे हैं।”गोवा (Goa) और यूपी में भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए शिवसेना कांग्रेस के साथ हाथ मिला रही है। यहाँ शिवसेना का उद्देश्य भाजपा को हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर घेरना है। अब शिवसेना का ये कदम उसे यूपी में कितना फायदा पहुंचता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा ।