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आलेख: शरद पवार का महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य होने का दर्प चकनाचूर

शरद पवार के प्रति अजित पवार के मन में लंबे समय से असंतोष उफान मार रहा था। जब 2011 में अजित पवार ने सुबह -सकारे देवेंद्र फडणवीस के साथ उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब जिस अंदाज में शरद पवार ने उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को रौंदा था, हर कोई मान रहा था अजीत पवार कभी भी शरद पवार को धोखा दे सकते हैं। पढि़ए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ल का आलेख-

Jul 03, 2023 / 03:50 pm

Navneet Mishra

शरद पवार का महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य होने का दर्प चकनाचूर

प्रेम शुक्ल

महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायक दल के नेता अजित पवार ने जिस अप्रत्याशित ढंग से एकनाथ शिंदे की सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया उससे महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य होने का शरद पवार का दर्प चकनाचूर हो गया है। शरद पवार के प्रति अजित पवार के मन में लंबे समय से असंतोष उफान मार रहा था। जब 2011 में अजित पवार ने सुबह -सकारे देवेंद्र फडणवीस के साथ उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। तब जिस अंदाज में शरद पवार ने उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को रौंदा था, हर कोई मान रहा था अजीत पवार कभी भी शरद पवार को धोखा दे सकते हैं ।

महाराष्ट्र के राजनीतिक जानकारों की दृष्टि में शरद पवार अपने राजनीतिक कौशल के लिए प्रख्यात रहे हैं। उसके चलते कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि उनके तमाम विश्वस्त लोगों को भी अजित पवार तोड़ने में कामयाब हो जाएंगे। जिन प्रफुल्ल पटेल को कुछ दिन पहले ही शरद पवार ने अपनी पुत्री सुप्रिया सुले के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था वह भी पवार का साथ छोड़ देंगे, यह किसी के लिए भी विश्वास करने जैसा नहीं था। पटेल जितने ही पवार के करीबियों में दिलीप वलसे पाटिल की भी गिनती होती थी। दिलीप वलसे पाटील को पवार ने तमाम महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी दी थी। छगन भुजबल जब से शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे का साथ छोड़ कर आए थे तब से पवार को ही अपना राजनीतिक गॉडफादर घोषित किए पड़े थे।

पिछड़ों के नेता के रूप में छगन भुजबल एनसीपी समेत महाराष्ट्र की राजनीति में संस्थापित रहे हैं। हसन मुश्रीफ एनसीपी के मुस्लिम चेहरे रहे हैं। धर्मोबाबा आत्राम आदिवासी, संजय बनसोडे अनुसूचित जाति और अनिल पाटील लेवा पाटील समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। धनंजय मुंडे वंजारी समाज से आते हैं तो आदिति तटकरे और सुनील तटकरे एनसीपी के कोकण अंचल के चेहरे हैं। अजित पवार ने शरद पवार की पार्टी का नियंत्रण करते समय जाति और आंचलिक समीकरणों का संतुलन भी जबरदस्त ढंग से साधा है। शरद पवार अपनी आत्मकथा में शिवसेना के पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे की राजनीतिक समझ को लेकर सवाल खड़ा कर रहे थे। उनका मानना रहा है कि बारंबार संकेत के बावजूद उद्धव ठाकरे ने जिस तरह की राजनीतिक अपरिपक्वता दिखाई उसी के चलते शिवसेना पर एकनाथ शिंदे को कब्जा करने में सफलता हासिल हुई। अब लोग शरद पवार के चातुर्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे हैं। जिन शरद पवार को उद्धव ठाकरे की शिवसेना में होने वाली उठापटक का ज्ञान था, वही शरद पवार अपनी ही पार्टी में अपने ही भतीजे और विश्वस्त साथियों को नियंत्रित क्यों नहीं कर सके? वह क्यों नहीं भांप पाए कि उनकी पुत्री सुप्रिया सुले का नेतृत्व उनके अपने साथियों को स्वीकार नहीं ! कुछ दिनों पहले ही सुप्रिया सुले ने बयान दिया था कि महाराष्ट्र में दो बड़े राजनीतिक भूकंप आने वाले हैं। सुप्रिया सुले के इस बयान को लोगों ने माना कि संभवत: एकनाथ शिंदे की सरकार को खतरा है और अजित पवार के राजनीतिक भविष्य पर भी संकट उमड़ेगा। जब सर्वोच्च न्यायालय ने एकनाथ शिंदे की सरकार को संवैधानिक करार दे दिया तो पहली संभावना का अस्त हो गया। कुछ दिन बाद जब शरद पवार ने सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया तब लोगों को लगा शरद पवार ने मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है और अजीत पवार एनसीपी की राजनीति में हाशिए पर चले गए हैं। इसी के चलते जब अजित पवार ने शरद पवार को १ जुलाई तक संगठन के संदर्भ में निर्णय लेने की चेतावनी दी तो उनकी इस चेतावनी को शरद पवार समेत महाराष्ट्र के राजनीतिक विशेषज्ञों ने भी हल्के में लिया।

रविवार 2 जुलाई की सुबह भी सुप्रिया सुले के साक्षात्कार मराठी समाचार चैनलों पर प्रसारित हो रहे थे और अजित पवार द्वारा बुलाई गई विधायक दल की बैठक को शरद पवार स्वयं पत्रकार सम्मेलन लेकर खारिज कर रहे थे। शरद पवार का पत्रकार सम्मेलन समाप्त होते ही खबरें आने लगी की अजीत पवार कुछ विधायकों के साथ राजभवन के लिए रवाना हुए हैं। तब तक भी कोई अजित पवार के बल को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं था। कुछ मिनटों में ही राजभवन पूरे देश के राजनीतिक आकर्षण का केंद्र बन गया। जब शरद पवार के लगभग सभी प्रमुख साथी अजित पवार के साथ शपथ लेने की मुद्रा में दिखाई दिए तब लोगों को अजित पवार के राजनीतिक अभियान का महत्व ध्यान में आया। महत्वपूर्ण नेताओं में सिर्फ एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटील और जितेंद्र आव्हाड ही पवार के पाले में बचे. अजित पवार के इस फैसले से महाराष्ट्र की राजनीति में निश्चित तौर पर क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। शरद पवार जब पटना गए थे तब से महागठबंधन की राजनीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका सुर्खियों में थी। शिमला की बजाए महागठबंधन की अगली बैठक बेंगलुरु में होने की घोषणा भी शरद पवार ने ही की। संजय राउत समेत पवार के कई समर्थक एक अरसे से महागठबंधन का नेतृत्व शरद पवार को सौंपने की मांग करते रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि महाराष्ट्र और बिहार में अगर भाजपा को रोक दिया जाए तो संभव है कि 2024 में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को लगाम लगाई जा सके. बिहार में जद( यू) ,राजद और कांग्रेस का गठबंधन इसी तर्क से पोषित है। महाराष्ट्र में मोदी विरोधी कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के गठबंधन को अपराजेय बता रहे थे। साल भर पहले जब शिवसेना पर एकनाथ शिंदे ने नियंत्रण स्थापित कर लिया तब भी तर्क दिया जा रहा था कि भले ही विधायक शिंदे के साथ चले गए हों पर कैडर अभी उद्धव ठाकरे के साथ है। इसीलिए तीनों विपक्षी दलों की महाआघाडी पर सतत चर्चा हो रही थी। इस राजनीतिक रथ के सारथी शरद पवार थे। अब शरद पवार ना केवल पार्टी गंवा बैठे हैं बल्कि यह भी लगभग निश्चित हो गया है कि महागठबंधन में अब उनकी भूमिका गौड़ होगी। राजनीति भावनाओं की बजाए शक्ति पर आधारित होती है। शरद पवार के लिए वर्तमान परिस्थिति में अपनी पुत्री सुप्रिया सुले की सीट बारामती बचा पाना भी चुनौतीपूर्ण है।

अब प्रधानमंत्री पद का ख्वाब उनकी आंखों में सुहाने से रहा। पिछली बार एनसीपी के 4 लोकसभा सदस्य चुनकर आए इनमें से केवल सुप्रिया सुले ही पवार के साथ दिखाई दे रही हैं। यदि बारामती से भी पवार को संघर्ष झेलना पड़े तो क्या यह शरद पवार के राजनीतिक अवसान का प्रमाण नहीं! महाराष्ट्र में कांग्रेस के पास एकमेव सीट चंद्रपुर की थी, उसके सांसद सुरेश धानोरकर कुछ दिनों पहले ही दिवंगत हुए हैं। एक सीट एआईएमआईएम के पास है । शेष 41 सीटों पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को सफलता मिली थी. जिसमें शिवसेना के १८ सांसद चुने गए थे, 13 सांसद एकनाथ शिंदे के साथ आ चुके हैं चुनाव घोषित होने के पहले संभव है शिवसेना के अन्य कई सांसद भी शिंदे के साथ आ जाएं। क्या महागठबंधन महाराष्ट्र में खाता खुलवाने की भी स्थिति में है ? बिहार में पहले ही भारतीय जनता पार्टी से दूर जाते ही नीतीश कुमार के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह और संसदीय बोर्ड के नेता उपेंद्र कुशवाहा उनका साथ छोड़कर मोदी के नेतृत्व को स्वीकार चुके हैं। जितेंद्र राम मांझी सरकार छोड़कर राजग की तरफ आ चुके हैं। जो नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए सामने खड़ा होता है उसका पतन प्रारंभ हो जाता है .नीतीश कुमार और शरद पवार इसके ताजा उदाहरण हैं। उद्धव ठाकरे का कुनबा मोदी विरोध की मार झेल रहा है। ज्योतिष में गजकेसरी योग के प्रताप का वर्णन है। नरेंद्र मोदी राजनीति के गजकेसरी सिद्ध हुए हैं. जो उन से टकराता है उसका राजनीतिक बल चूर – चूर हो जाता है।

(राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा)

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