इससे पहले पश्चिमी उप्र West Up के 11 जिलों की 58 सीटों पर पहले चरण में मतदान first phase voting हो चुके हैं। पहले चरण के बाद दूसरे चरण को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हालांकि अभी तक मतदाताओं ने न अपने पत्ते खोले हैं और न चुप्पी तोड़ी है। इन 55 विधानसभा सीटों assembly seats पर दलित और मुस्लिम आबादी की बहुलता को देखते हुए पहले चरण की तुलना में यह चरण दलों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इन 55 सीटों में 20 सीटों से अधिक पर दलित मतदाता निर्णायक भूमिका में है। जबकि 25 से अधिक सीटों पर मुसलमान मतदाता है। इस लिहाज से दलित और मुस्लिम मतदाताओं Dalit and Muslim voters की संख्या इस दूसरे चरण के मतदान में काफी निर्णायक साबित होगी। इस बार यहां पर गठबंधन यानी सपा और रालोद SP & RLD की स्थिति मजबूत मानी जा रही है। ये 9 जिले किसान बाहुल्य भी हैं। इन जिलों में किसान भाजपा से नाराज दिखाई दे रहा है। जिसका परिणाम भाजपा को नुकसान के रूप में झेलना पड़ सकता है।
यह भी पढ़े : UP Assembly Elections 2022 : सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशियों ने मतगणना स्थल पर सुरक्षा को लेकर सरकार पर उठाए सवाल बात वर्ष 2017 में हुए चुनाव की करें तो उस दौरान इन 55 विधानसभा सीटों से 11 मुस्लिम प्रत्याशी विधायक Muslim candidate MLA बने थे। ये सभी सपा के प्रत्याशी SP candidate थे और उसके टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। भाजपा लहर BJP wave में भी 2017 में मुरादाबाद Muradabad जैसे जिले की छह सीटों में चार सपा SP के खाते में गई थी। जबकि भाजपा BJP दो पर जीती थी। भाजपा और मोदी लहर Modi Lahar के बावजूद भी सपा का यह गढ नहीं ढह पाया था और इन 55 सीटों में से सपा SP के खाते में 27 सीटें गई थी। जबकि भाजपा को 13 और बसपा BSP को 11 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। उससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां पर सपा को बंपर सफलता मिली थी। सपा ने इन 55 में से 27 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि भाजपा BJP के खाते में मात्र 8 सीटे ही आई थी।
यह भी पढ़े : UP Assembly Election 2022 : Valentine Day के दिन ईवीएम में बंद होगा 586 प्रत्याशियों का भाग्य, 9 जिलों की 55 सीटों पर होगा मतदान 2017 में पश्चिमी उप्र में मोदी लहर Modi Lahar चली थी। जिसका नतीजा हुआ था कि भाजपा की आंधी में सभी दल उड़ गए थे। भाजपा ने 2017 में कैराना पलायन kairaana palaayan और मुज्जफरनगर दंगे को मुद्दे के रूप में सामने लाकर साप्रदायिक ध्रुवीकरण कर दिया था। जिससे हिन्दू वोट भाजपा की ओर चले गए थे। लेकिन इस चुनाव में स्थिति बिल्कुल अलग है। इस बार न तो मोदी Modi का जादू है न योगी Yogi सरकार के काम का कोई असर दिख रहा। चुनाव में फसल की खरीद न होने और गन्ना बकाया भुगतान में जैसा मुददा काफी छाया हुआ है। जिससे किसान भाजपा सरकार BJP government से नाराज है। थाना स्तर पर फैले भ्रष्टाचार से लोग परेशान हो चुके हैं। युवक को नौकरी नहीं मिल रही। जिससे बेरोजगारी Unemployment अहम मुददा बन गया है। किसान आंदोलन Kissan Andolan का असर इस 55 सीटों पर देखा जा रहा है।