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राजनीति

कूटनीति के माहिर खिलाड़ी हैं एस जयशंकर

– मोदी सरकार की विदेश नीति को आकार देने वाले चेहरे के रूप में जाने जाते हैं 6 भाषाओं के जानकार एस जयशंकर
– चीन से डोकलाम गतिरोध दूर करमो और अमेरिका से न्यूक्लियर डील में निभा चुके हैं अहम भूमिका

नई दिल्लीJun 26, 2024 / 01:48 pm

Navneet Mishra

नवनीत मिश्र

नई दिल्ली। भारतीय विदेश सेवा के अफसर के तौर पर देश की कूटनीति को 4 दशक तक धार देने वाले एस जयशंकर को जब पिछली प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश मंत्री का ओहदा दिया तो सरकार में इसे सरप्राइज एंट्री माना गया था। विदेश मंत्री की नई पारी में जयशंकर पिछले 5 साल में अपनी कूटनीति से कई मौकों पर देश और दुनिया को सरप्राइज कर चुके हैं। हाजिर जवाब हैं ओर दो टूक बातों के लिए जाने जाते हैं। उनकी खरी-खरी कूटनीतिक बातों के वीडियो दुनिया के दूसरे देशों के राजनयिक भी सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं। एस जयशंकर को एक बार फिर मोदी सरकार में विदेश मंत्री की कमान संभाली है। हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, रूसी, जापानी सहित 6 से अधिक भाषाओं के जानकार एस जयशंकर की पहचान मोदी सरकार की विदेश नीति को आकार देने वाले चेहरे के रूप में होती है। अफसर से नेता बन जाने के बावजूद जयशंकर खुद को डिप्लोमेट ही मानते हैं। एक बार कह चुके हैं- आज मैं पॉलिटिशियन ज्यादा हूं, पर 40 साल जो डिप्लोमेट की ट्रेनिंग है न, वो जाती नहीं।
तमिल मूल के एस जयशंकर 9 जनवरी 1955 को दिल्ली में पैदा हुए और यहीं एयरफोर्स स्कूल दिल्ली और मिलिट्री स्कूल बेंगलुरु से शुरुआती पढ़ाई के बाद सेंट स्टीफेंस कॉलेज दिल्ली से ग्रेजुएशन किए और जेएनयू से राजनीति विज्ञान में पीएचडी करने के साथ न्यूक्लियर डिप्लोमेसी में विशेषज्ञता भी हासिल की। 1977 में भारतीय विदेश सेवा में चयन के बाद जयशंकर विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी कूटनीति का लोहा मनाने लगे। विदेश सचिव बनने से पहले एस जयशंकर 2014-15 के बीच अमेरिका में भारत के राजदूत भी रहे थे।

चीन से टाला टकराव

एस जयशंकर चीन में सर्वाधिक 2009-13 तक भारत के राजदूत रहे। चीन में कार्य का अनुभव का लाभ देश को तब हुआ, जब चीन से 2017 में डोकलाम विवाद हुआ तो गतिरोध दूर करन में इन्होंने अहम भूमिका निभाई। डोकलाम ने दोनों देशों को युद्ध की कगार पर पहुंचा दिया था। इससे पूर्व बीजिंग में तैनाती के दौरान जयशंकर ने भारत और चीन के साथ व्यापार, सीमा और सांस्कृतिक संबंधों में सुधार की कई पहलें भी कीं।

मिल चुका पद्मश्री

जयशंकर की कूटनीतिक सेवाओं से देश को पहुंचे लाभ को देखते हुए मोदी सरकार ने रिटायरमेंट के बाद उन्हें 2019 में देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा था। 29 जनवरी 2015 को भारत के 30 वें विदेश सचिव के रूप में नियुक्त होने के बाद जनवरी 2018 तक कार्रत सर्वाधिक समय तक विदेश सचिव रहने वाले आईएफएस के रूप में जाने जाते हैं। रिटायरमेंट के बाद जयशंकर निजी कंपनी टाटा संस में वैश्विक कॉर्पोरेट मामलों के प्रमुख के रूप में जुड़ गए थे। बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरी बार सरकार बनने पर उन्हें बतौर विदेश मंत्री कैबिनेट में शामिल किया। विदेश सचिव के रूप में अमेरिका, चीन सहित आसियान के महत्‍वपूर्ण कूटनीतिक मुद्दों को सुलझाने में सफल रहे। सोवियत संघ के विघटन के पूर्व मास्को में और श्रीलंका में भारतीय सेनाओं के शांति मिशन के दौरान भी तैनात रहे।

न्यूक्लियर डील में निभाई भूमिका

मनमोहन सरकार में 2007 में हुए अमेरिका से न्यूक्लियर डील में एस जयशंकर ने अहम भूमिका निभाई थी। इस डील में भारत की तरफ से वार्ता करने वाली टीम के वे अहम सदस्य थे। खास बात है कि आइएफएस बनने के बाद जयशंकर ने पहले 1979 में रूसी अध्ययन किया, जिसका उन्हें 1981 में मास्को में तैनाती के दौरान लाभ हुआ। सोवियत संघ के लिए द्वितीय और तीसरे सचिव के रूप में कार्य किया। 1985-1988 में वह वाशिंगटन डी. सी. स्थित भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव थे।

चुनौतियां

सीमा पार आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखना

चीन के साथ सीमा तनाव दूर करना

अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में भारत के हितों की रक्षा

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