खास बात यह है कि हाल में जेपी नड्डा दो दिन का बंगाल दौरा कर चुके हैं और 19 तारीख से गृहमंत्री अमित शाह दो दिन के दौरे पर हैं, लेकिन इन सबके बीच मोहन भागवत के बंगाल जाने से सियासी हलचल और तेज हो गई है।
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राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत 12 दिसंबर से पश्चिम बंगाल के दो दिवसीय दौरे पर है। दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद मोहन भागवत का बंगाल में ये पांचवा दौरा है।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत 12 दिसंबर से पश्चिम बंगाल के दो दिवसीय दौरे पर है। दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद मोहन भागवत का बंगाल में ये पांचवा दौरा है।
युवा प्रतिभाओं से करेंगे मुलाकात
आरएसएस चीफ अपने कोलकाता दौरे के दौरान सूबे के युवा मेधावियों से मुलाकात करेंगे। इस दौरान राज्य के युवाओं से मिलेंगे जो स्पेस रिसर्च, नासा, माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल साइंस के क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल कर वापस भारत लौटकर, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान में अहम योगदान दे रहे हैं।
आरएसएस चीफ अपने कोलकाता दौरे के दौरान सूबे के युवा मेधावियों से मुलाकात करेंगे। इस दौरान राज्य के युवाओं से मिलेंगे जो स्पेस रिसर्च, नासा, माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल साइंस के क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल कर वापस भारत लौटकर, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान में अहम योगदान दे रहे हैं।
अगस्त 2019 से भागवत के बंगाल दौरे
इससे पहले वह 2019 में 1 अगस्त, 31 अगस्त,19 सिंतबर और 2020 में 22 सिंतबर को बंगाल की यात्रा कर चुके हैं। संगठन को मजबूती है मकसद
लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में बेहतर प्रदर्शन ने बीजेपी और आरएसएस को बड़ी राहत दी और इसी के साथ पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत का लक्ष्य तैयार कर लिया। लिहाजा दिग्गजों ने प्रदेश में सक्रियता बढ़ा दी। भागवत भी इस कड़ी का अहम हिस्सा हैं। उनका मकसद संगठन को ब्लॉक स्तर पर मजबूत करना है।
इससे पहले वह 2019 में 1 अगस्त, 31 अगस्त,19 सिंतबर और 2020 में 22 सिंतबर को बंगाल की यात्रा कर चुके हैं। संगठन को मजबूती है मकसद
लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में बेहतर प्रदर्शन ने बीजेपी और आरएसएस को बड़ी राहत दी और इसी के साथ पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत का लक्ष्य तैयार कर लिया। लिहाजा दिग्गजों ने प्रदेश में सक्रियता बढ़ा दी। भागवत भी इस कड़ी का अहम हिस्सा हैं। उनका मकसद संगठन को ब्लॉक स्तर पर मजबूत करना है।
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आपको बता दें कि संघ का बंगाल में दखल तो रहा लेकिन खास करिश्मा नहीं दिखा पाया। संघ की मौजूदगी 1939 से बंगाल में रही है, लेकिन वामपंथ के 34 साल के कार्यकाल में संघ का प्रभाव व्यापक नहीं हो पाया है।
आपको बता दें कि संघ का बंगाल में दखल तो रहा लेकिन खास करिश्मा नहीं दिखा पाया। संघ की मौजूदगी 1939 से बंगाल में रही है, लेकिन वामपंथ के 34 साल के कार्यकाल में संघ का प्रभाव व्यापक नहीं हो पाया है।
2011 में वामपंथी सरकार जाने के बाद और 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से संघ लगातार बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की जुगत में लगा हुआ है।