उन्होंने कहा कि हम सबकुछ बदल सकते हैं। सभी विचारधाराएं बदली जा सकती हैं, लेकिन सिर्फ एक चीज नहीं बदली जा सकती, वह यह कि ‘भारत एक हिंदू राष्ट्र है’।
आपको बता दें कि भागवत ने यह घोषणा यहां एक किताब के विमोचन के दौरान की।
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आरएसएस प्रमुख ने हिंदुत्व का जिक्र करते हुए कहा कि हनुमान, शिवाजी और आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के नाम एक सांस में लिए।
हिंदू राष्ट्र के दावे के बावजूद जब संस्था के प्रमुख समलैगिकता पर बात करते हैं तो लगता है कि आरएसएस अपनी गंभीर छवि बदलने में लगा हुआ है।
भागवत ने कहा कि इस मुद्दे को चर्चा के जरिए सुलझाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि महाभारत, प्राचीन सेनाओं में उदाहरण रहे हैं, वेदों में नहीं।
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यह पहला मौका नहीं है, जब भागवत ने समलैंगिता पर संघ के रुख में बदलाव के संकेत दिए हैं। उन्होंने 2018 में तीन दिवसीय महा आयोजन ‘भारत का भविष्य -आरएसएस का दृष्टिकोण’ के दौरान कहा था कि समलैंगिक हैं और समाज को समय के साथ बदलने की जरूरत है।
भागवत का अधिकांश भाषण आरएसएस के एक उदार चेहरे को पेश करने पर था, लेकिन उन्होंने असहमति के महत्व पर जोर दिया उन्होंने कहा कि हमारे यहां मतभेद हो सकता है, मनभेद नहीं।