अब जानते हैं कि आखिर ये वन नेशन-वन इलेक्शन है क्या और इसे लागू करने में किस तरह का फायदा या नुकसान है। साथ ही पहली इसकी चर्चा कब शुरु हुई।
क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन?
वन नेशन-वन इलेक्शन एक ऐसा सिस्टम है, जिसके तहत पूरे हिंदुस्तान में एक साथ चुनाव कराए जाएंगे। अभी देखें तो ऐसा लगता है कि देश हमेशा चुनावी मूड में रहता है। हर छह महीने में किसी ना किसी राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहे होते हैं। इससे देश की अर्थव्यवस्था और विकास को धक्का लगता है। लेकिन जब लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे, तब आचार संहिता एक तय समय तक ही लागू होगी और पांच साल तक देश की अर्थव्यवस्था खुलकर सांस ले सकेगी।
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कैसे आया वन नेशन-वन इलेक्शन का आइडिया ?
वन नेशन-वन इलेक्शन कोई नई खोज नहीं है। आजाद भारत का पहला लोकसभा चुनाव भी इसी तर्ज पर हुआ था। 1952, 1957, 1962 और 1967 का चुनाव इसी अवधारणा पर कराए जा चुके हैं। आधिकारिक तौर पर चुनाव आयोग ने पहली बार 1983 में इसे लेकर सुझाव दिया था। आयोग ने कहा था देश में ऐसे सिस्टम की जरूरत है जिससे लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकें।
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वन नेशन-वन इलेक्शन के पक्ष में तर्क – एक साथ चुनाव कराए जाने पर सरकारी खजाने पर पड़ने वाला भार बहुत कम हो जाएगा। – चुनाव आयोग को बार बार चुनाव की तैयारियां नहीं करनी पड़ेगी। इससे वे चुनावों को और बेहतर और पारदर्शी बनाने के लिए काम कर सकेगा।
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वन नेशन-वन इलेक्शन क्षेत्रियों दलों को क्या आपत्ति
राज्य का विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाता है। इन मुद्दों के लिए सीधे तौर पर विधायक और उससे ऊपर मुख्यमंत्री जवाबदेह होता है। वहीं लोकसभा चुनाव पर राष्ट्रीय मुद्दे हावी होते हैं। ऐसे में अगर दोनों चुनाव एक साथ होंगे, तो संभव है कि राष्ट्रीय मुद्दों के आगे स्थानीय मुद्दे गायब हो जाएंगे।
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उदाहरण: लोकसभा चुनाव 2019 को सत्तारूढ़ बीजेपी ने राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे पर लड़ा। अगर इसके साथ देश के सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होते तो शायद यूपी में शिक्षा मित्रो की भर्ती और बुंदेलखंड में पानी की किल्लत पर चर्चा नहीं होती। कर्नाटक-तमिलनाडु का जल विवाद और जलीकट्टू जैसे छोटे भी कहीं गुम हो जाते। यानि बेहद जरूरी लेकि स्थानीय होने की वजह से इन मुद्दों पर चुनाव नहीं हो पाता।
संविधान में होगी संशोधन की आवश्यकता
अगर देश में वन नेशन-वन इलेक्शन के तर्ज पर चुनाव कराना है तो संविधान में संशोधन की जरुरत होगी। इसके लिए संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से सहमति की आवश्यकता होगी। इस संशोधन के बगैर राज्य सरकारों को भंग करना और एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं हो पाएगा।