इन तीनों उम्मीदवारों ने 30 सितंबर तक कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए अपना-अपना नामांकन दाखिल कर दिया हैं। अब देखना यह होगा कि इस रेस का आधिकारिक रूप से विजेता कौन होता है? लेकिन इससे पहले ही मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत तय मानी जा रही है।
आइए जानते हैं क्या है पूरा गणित, जिसके आधार पर माना जा रहा है कि, मल्लिकार्जुन खड़गे इस रेस के विनर होंगे।
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नामांकन तो तीन दाखिल हुए हैं, लेकिन अध्यक्ष पद की कुर्सी पर खड़गे का ही बैठना लगभग तय है। दरअसल थरूर और त्रिपाठी के प्रस्तावकों में जहां इक्का-दुक्का लीडर्स थे वहीं, खड़गे के प्रस्तावकों की लिस्ट में 30 बड़े नेताओं के नाम शामिल है।
इनमें जी-23 के बड़े चेहरे आनंद शर्मा और मनीष तिवारी के भी शामिल होने से उनकी दावेदारी को और मजबूती मिली है। खड़गे के साथ नेताओं के हुजूम की तस्वीर यह साफ कर रही है कि नॉमिनेशन के साथ ही नतीजे लगभग तय हैं।
आइए जानते हैं क्या है पूरा गणित, जिसके आधार पर माना जा रहा है कि, मल्लिकार्जुन खड़गे इस रेस के विनर होंगे।
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नामांकन तो तीन दाखिल हुए हैं, लेकिन अध्यक्ष पद की कुर्सी पर खड़गे का ही बैठना लगभग तय है। दरअसल थरूर और त्रिपाठी के प्रस्तावकों में जहां इक्का-दुक्का लीडर्स थे वहीं, खड़गे के प्रस्तावकों की लिस्ट में 30 बड़े नेताओं के नाम शामिल है।
इनमें जी-23 के बड़े चेहरे आनंद शर्मा और मनीष तिवारी के भी शामिल होने से उनकी दावेदारी को और मजबूती मिली है। खड़गे के साथ नेताओं के हुजूम की तस्वीर यह साफ कर रही है कि नॉमिनेशन के साथ ही नतीजे लगभग तय हैं।
– नामांकन के दिन वरिष्ठ नेताओं और G-23 का समर्थन खड़गे के लिए साफ दिखाई पड़ रहा था।
– खड़गे गांधी परिवार के सबसे ज्यादा करीबी माने जाते हैं। ऐसे में उन्हें कांग्रेस का आधिकारिक उम्मीदवार भी माना जा रहा है।
– प्रस्तावकों की बात करें तो कई नेताओं ने उनका खुले तौर पर समर्थन किया है
– दिग्विजय सिंह ने जहां खड़गे का नाम सामने आने के बाद नामांकन दाखिल करने से इनकार कर दिया था तो वहीं, अशोक गहलोत ने भी साफ-साफ कह दिया है कि उनका और कई वरिष्ठ नेताओं का समर्थन खड़गे के ही साथ है।
आकाकमान और वरिष्ठ नेताओं के सहयोग से खड़गे का अध्यक्ष बनना करीब तय माना जा रहा है। अगर खड़गे अध्यक्ष बनते हैं तो बाबू जगजीवन राम के बाद ये दूसरे दलित अध्यक्ष होंगे।
खड़गे दक्षिण भारत (कर्नाटक) से आते हैं और दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। बाबू जगजीवन राम के बाद से अब तक किसी दलित नेता ने पार्टी का नेतृत्व नहीं किया है। वह 1970-71 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे।
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