ऐसे में राज्य में शिवसेना लगभग सरकार बनाने की ओर है। इस बीच शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे और उनकी विचारधारा एक बार फिर लोगों की जुबान पर है।
बाल ठाकरे ने आज ही के दिन दुनिया को अलविदा कहा था।
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बाल ठाकरे ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को न केवल अपना गढ़ बनाया महाराष्ट्र की राजनीति के किंग मेकर भी बनकर उभरे।
खास बात यह है कि बाल ठाकरे जीवन में न तो कभी चुनाव लड़ा और न कभी कोई राजनीतिक पद स्वीकार किया। बावजूद इसके सत्ता की डोर उनके हाथों में रही।
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अब जबकि शिवसेना के गठन के 53 साल बीत चुके हैं तो बाल ठाकरे के पौत्र व पार्टी चीफ उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने के रूप में पहली बार परिवार के किसी शख्स ने चुनाव लड़ा।
आदित्य मुंबई की वर्ली विधानसभा सीट से विधायक चुने गए।
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दरअसल, 23 जनवरी 1926 को एक मराठी परिवार में जन्मे बाल ठाकरे का असली नाम बाल केशव ठाकरे था। अपने समर्थकों और चाहने वालों के बीच वह हिंदू हृदय सम्राट के नाम से भी मशहूर थे।
किसी ने कभी नहीं सोचा था कि एक अखबार में बतौर कार्टूनिस्ट नौकरी करने वाला यह मराठी शख्स कभी राजनीति का बेताज बादशाह बन जाएगा।
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बाल ठाकरे ने अपने कैरियर की शुरुआत मुंबई के एक अंग्रेजी दैनिक ‘द फ्री प्रेस जर्नल’ के साथ की। 1960 में बाल ठाकरे ने कार्टूनिस्ट की नौकर अपना राजनीतिक साप्ताहिक अखबार निकाला शुरू किया।
19 जूल 1966 को बाल ठाकरे ने शिवसेना का गठन किया।
दरअसल, शिवसेना का शाब्दिक अर्थ ‘शिव की सेना’ है। यहां शिव का मतलब मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी से जुड़ा है।
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शिवसेना के गठन के बाद बाल ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र के रूप में ‘सामना’ और हिंदी अखबार ‘दोपहर का सामना’ का संपादन शुरू किया। बाल ठाकरे की पत्नी का नाम मीना ठाकरे था।
बाल ठाकरे के लिए 1996 का साल बहुत दुख और पीड़ा लेकर आया। इस दौरान उनकी पत्नी मीना का निधन हो गया।
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जबकि दूसरा झटका बाल ठाकरे को उनके बेटे बिंदुमाधव ठाकरे की मौत के रूप में लगा। बिंदुमाधव की 20 अप्रैल 1996 को मुंबई-पुणे एक्सप्रेस पर एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई।
ठाकरे के तीन बेटों में वह सबसे बड़े थे। 17 नवंबर 2012 को राजनीति का यह सितारा अस्त हो गया।