यतींद्रानंद गिरी ने कहा कि उप्र में बाह्रमणों की संख्या 18 प्रतिशत है ऐसे में इसको किसी पार्टी नजरअंदाज नहीं कर सकती। जिसने भी इस समाज की उपेक्षा की वहीं सत्ता से बेदखल हुआ। कांग्रेस से लेकर सपा तक इसके उदाहरण हैं। इतिहास उठाकर देख लिया जाए। केंद्रीय गृहमंत्री अमितशाह के साथ जाट नेताओं की बैठक पर उन्होंने सवाल उठाए। कहा कि क्या गृहमंत्री अमितशाह ब्राहमण समाज के साथ बैठक नहीं कर सकते। जाटों के वोटों के लिए उन्होंने पूरी मेहनत की है। जबकि ब्राहमण समाज को दरकिनार कर दिया गया है। महामंडलेश्वर ने कहा कि अगर ब्राहमण समाज भाजपा से अलग हुआ तो भाजप का बुरा हाल होगा।
यह भी पढ़े : UP Election 2022: सत्ता पक्ष और विपक्ष का पश्चिमी यूपी साधने पर पूरा जोर, नेता घर-घर जाकर मांग रहे हैं वोट उन्होंने कहा कि ब्राहमण होने के नाते भाजपा को सुनील भराल को टिकट देना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। महामंडलेश्वर ने कहा कि अब भाजपा में भी जाट,गुर्जर,दलित और वैश्यों की बातें हो रही है। ऐसे में ब्राह्मण कहां जाएगा यह अब समाज को तय करना है। उन्होंने कहा कि ब्राहमण कहता नहीं है बस करता है और जब वह करता है तो उसका परिणाम सबसे सामने होता है। महामंडलेश्वर ने उत्तराखंड का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां पर भाजपा ने संतों का अर्शिवाद लिया तो फिर से वहां पर भाजपा की सरकार 2017 में बनी थी। अब ऐसे ही 2022 में होगा। जिसे भी ब्राहमणों का और संतों का अर्शिवाद मिला उसी को सत्ता सुख भोगने को मिला।