राजनीति

बिहार में NDA के फ्रेम से गायब JDU, क्या ‘सुशासन बाबू’ ने मोदी के सामने टेक दिए घुटने?

अंतिम दौर में लोकसभा का चुनाव
जेडीयू ने अभी तक नहीं जारी किया मेनिफेस्टो
कुछ मुद्दों पर भाजपा-जेडीयू के बीच नहीं बनी सहमति

May 07, 2019 / 10:59 am

Prashant Jha

बिहार में NDA के फ्रेम से गायब JDU, क्या ‘सुशासन बाबू’ ने मोदी के सामने टेक दिए घुटने?

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) का पांचवां चरण 6 मई को संपन्न हो गया। छठे दौर के साथ ही तीन चौथाई से ज़्यादा चुनावी यात्रा पूरी हो जाएगी। दिल्ली की सत्ता के लिए सियासी पार्टियों ने एड़ी चोटी का जोर लगाया हुआ है। लेकिन सबसे चौंकाने और हैरान करने वाली बात ये है कि बिहार में NDA के सहयोगी और सत्तारुढ़ दल जेडीयू ने अभी तक अपना घोषणापत्र जारी नहीं किया। सू्त्रों की मानें तो इसके पीछे भाजपा और जेडीयू में कुछ मुद्दों को लेकर अनबन है। ऐसे में सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड बिहार में NDA के फ्रेम से गायब होता नजर आ रहा है। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस चुनाव में सुशासन बाबू का चेहरा धूमिल पड़ता जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार इतने मजबूर हो चुके हैं कि उनका सियासी कद बिहार में भाजपा के सामने छोटा पड़ रहा है

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बिहार में 24 सीटों पर मतदान संपन्न

दरअसल पांचवें चरण के साथ ही बिहार की कुल 40 सीटों में से 24 सीटों पर मतदान खत्म हो गया। यानी 16 सीटों पर दो चरणों में चुनाव होना बाकी है। उसमें 11 सीटों पर जनता दल (यू) के प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद है। अब सिर्फ 6 सीटों पर ही JDU प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होना है। छठे चरण में वाल्मीकि नगर, गोपालगंज, सिवानी में वोटिंग होगी। वहीं सातवें चरण में- नालंदा, जहानाबाद, काराकाट में मतदान होगा। ऐसे में जेडीयू बिना घोषणा पत्र के ही चुनाव मैदान में है। ऐसा पहली बार हुआ कि जेडीयू बिना घोषणा पत्र के चनाव लड़ रहा है।

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चुनाव प्रचार में नीतीश की नहीं दिखी चमक!

पूरे चुनाव के दौरान नीतीश कुमार खुद सियासी रणभूमि से करीब-करीब गायब नजर आए। हालांकि कुछ जगहों पर प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करते दिखे हैं। सियासी गलियारों में नीतीश कुमार एंड कंपनी को लेकर अटकलें तेज है कि अपने सहयोगी के दबाव में है।। सूत्रों की मानें तो नीतीश कुमार भाजपा के दबाव के चलते अपना मैनिफेस्टो जारी नहीं कर पाए। हालांकि जदयू के नेता केसी त्यागी ने पहले भाजपा के दबाव वाले बयानों का खंडन किया था और कहा था कि जल्द ही घोषणा पत्र जारी करेंगे। वहीं पांचवें चरण के बाद जब उनसे संपर्क किया, तो नाराज होते हुए उन्होंने कहा कि हां मैं दबाव में हूं और घोषणा पत्र जारी नहीं किया। आप खुश हैं ना। इतना कहते हुए उन्होंने फोन काट दिया।

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भाजपा और जेडीयू के बीच नहीं बन रही सहमति

दरअसल दिल्ली की सत्ता के लिए भाजपा ने बिहार में जदयू के साथ बड़ा समझौता करते हुए पहली बार बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था। भाजपा-जेडीयू के बीच 17-17 सीटों पर गठबंधन है। वहीं 6 सीटों पर लोजपा ने अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। जदयू के कारण भाजपा रालोसपा के बीच सीट बंटवारे को लेकर गठबंधन तक टूट गया था। बिहार में जिस जदयू को लेकर भाजपा ने इतना बड़ा दांव खेला उसी के कारण पांच चरणों के मतदान के बाद प्रदेश में एनडीए लड़खड़ाते हुए नजर आ रहा है। जबकि भाजपा ने जदयू के लिए अपनी कुछ पारंपरिक सीटें तक बदल डाली थीं। इतना ही नहीं कद्दावर नेताओं का टिकट तक काट दिया था। लेकिन सियासी अटकलें हैं कि कुछ मुद्दों को लेकर भाजपा और जेडीयू के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। जिसमें राम मंदिर, धारा 370 और कॉमन सिविल कोड शामिल है। भाजपा और जेडीयू इन मुद्दों पर अलग-अलग स्टैंड लेकर चल रहा है।

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घोषणा पत्र हमारे लिए कभी मुद्दा नहीं- जेडीयू

जेडीयू का मेनिफेस्टो अभी तक जारी न होने के सवाल पर जेडीयू के प्रवक्ता अजय आलोक ने कहा कि घोषणा पत्र हमारे लिए कभी मुद्दा नहीं रहा है, नीतीश कुमार के चेहरे और विकास के मुद्दे पर हम चुनाव लड़ते आ रहे हैं और इस बार भी हम चुनाव जीतेंगे। हालांकि उन्होंने कहा कि हम जल्द घोषणा पत्र जारी कर देंगे। अजय आलोक कहते हैं कि राम मंदिर, धारा 370 जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर हमारा स्टैंड साफ है । भाजपा इस बात को अच्छी तरह समझती है। इसे घोषणापत्र से जोड़कर देखने की जरूरत नहीं है।

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इन मुद्दों पर दोनों दलों में नहीं है एक राय

दरअसल बिहार की राजनीति में MY समीकरण (मुस्लिम-यादव ) की अहम भूमिका है। लालू यादव को इस समीकरण का भरपूर लाभ मिलता रहा है। लेकिन 2005 में जब नीतीश कुमार सत्ता में आए तो उन्होंने इसमें सेंध लगा दी। उसके बाद जेडीयू पर यह समीकरण मेहरबान होने लगा। चूंकि नीतीश कुमार खुद ओबीसी समुदाय से आते हैं। यह वर्ग भी बिहार में अच्छी संख्या में है। वैसे नीतीश कुमार को सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त रहा है। फारवार्ड वोट भी उन्हें मिलता रहा है। भाजपा ने इस बार अपने घोषणा पत्र में कश्मीर से धारा 370 खत्म करने, कॉमन सिविल कोड लागू करने और राम मंदिर निर्माण की चर्चा विस्तृत तौर पर की है। सियासी सूत्रों की मानें तो भाजपा जदयू से भी यही उम्मीद कर रही है। लेकिन जेडीयू ऐसा करने में हिचकिचा रहा है । नीतीश कुमार को अल्पसंख्यकों का भी समर्थन रहा है। ऐसे में जदयू इन मुद्दों को चुनाव से अलग रखकर चल रहा है। इसी को लेकर एनडीए गठबंधन में तकरार की स्थिति है। हालांकि दोनों दलों के नेता इस पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।

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जेडीयू पर किसी तरह का दबाव नहीं-बीजेपी

वहीं बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकिशोर यादव ने कहा कि भाजपा पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं वह बेबुनियाद और निराधार है। जेडीयू पर किसी तरह का दबाव नहीं है। यह उनकी पार्टी का अंदरूनी मामला है।

जेडीयू भाजपा के आगे झुकी- राजद

जेडीयू का मेनिफेस्टो जारी नहीं होने पर राष्ट्रीय जनता दल ने चुटकी ली है। दरअसल आरजेडी अपना घोषणापत्र ‘प्रतिबद्धता पत्र’ के नाम से जारी कर चुका है। आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि जेडीयू ने सत्ता का मजा लेने के लिए गठबंधन तो कर लिया, लेकिन भाजपा के सामने अब घुटने टेक दिए हैं। बिहार की 11 करोड़ जनता अच्छी तरह जानती है कि नीतीश कुमार ने उन्हें छला है। अब लोग एनडीए से हटकर महागठबंधन के साथ आ रहे हैं।

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जेडीयू की ये हैं सीटें

जनता दल युनाइटेड(जेडीयू) के प्रत्याशी इन सीटों पर लड़ रहे चुनाव- सीतामढ़ी , बाल्मीकि नगर, झंझारपुर , सुपौल , किशनगंज , कटिहार ,पूर्णिया , मधेपुरा , भागलपुर , बांका , मुंगेर, नालन्दा ,गोपालगंज , सिवान , काराकाट , जहानाबाद और गया सीट है।

23 मई को तस्वीर होगी साफ

बिहार में 7 चरणों में चुनाव हैं। सिर्फ दो चरणों का चुनाव बचा हुआ है। ऐसे में नीतीश का सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला महागठबंधन के खिलाफ कितना सफल होता है यह तो 23 मई को नतीजे के बाद ही साफ हो पाएगा।

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