Randeep Surjewala ने कांग्रेस मुख्यालय पर मीडिया से बात करते हुए कहा कि भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के बिना क्या कोई विश्वास मत संसद की स्थापित प्रक्रिया और संवैधानिक नियमों के अनुरूप हो सकता है? उन्होंने कहा कि कोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन में पांच समस्याएं उभरकर आई हैं।
1. जब व्हिप खत्म कर दी गई, तो क्या फ्लोर टेस्ट हो सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि ‘असेंबली के 15 सदस्यों को विधानसभा के जारी सत्र की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए और उन्हें यह विकल्प मिलना चाहिए कि वो इस कार्यवाही में भाग लें या फिर इससे बाहर रहें।’
परिणामस्वरूप, व्हिप जारी करने या उसे लागू करने का कांग्रेस पार्टी का अधिकार स्वतः निरस्त हो गया। यह बात आज तब सामने आई जब बागी विधायकों ने कोर्ट के आदेश का फायदा उठाकर फ्लोर टेस्ट में हिस्सा नहीं लिया।
अगर विधायकों को संविधान में व्हिप का अनुपालन करने से छूट दे दी जाए, तो कांग्रेस संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत व्हिप जारी करने के अपने अधिकार का उपयोग कैसे कर सकती है?
कर्नाटक: येदियुरप्पा बोले- घर नहीं जाएंगे, रातभर विधानसभा में सोएंगे BJP के MLA
2. क्या कांग्रेस को एक ऐसे अदालती फैसले से बाध्य किया जा सकता है, जिसमें वह पार्टी ही नहीं?
सुप्रीम कोर्ट का आदेश कांग्रेस पार्टी को संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत व्हिप जारी करने के अपने अधिकार का उपयोग करने से रोकता है। यह बिल्कुल गलत है, क्योंकि न तो कांग्रेस और न ही असेंबली में पार्टी लीडर सुप्रीम कोर्ट के सामने सुने जा रहे इस मामले में कोई पक्षकार थे। तब कांग्रेस पार्टी को एक ऐसे निर्णय से कैसे बांधा जा सकता है, जिसमें वह पक्षकार ही नहीं थी?
3. जब दसवीं अनुसूची अप्रभावी कर दी गई, तो क्या विश्वास मत हो सकता है ?
व्हिप जारी करने में असमर्थ होने के बाद संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत दण्ड लगाने और अयोग्य घोषित करने का अधिकार निरर्थक हो जाता है। दसवीं अनुसूची उन विधायकों को दण्डित करती है, जो जनादेश के साथ विश्वासघात करते हैं और इसके दण्डस्वरूप बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
संविधान की दसवीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने में असमर्थ होकर संविधान द्वारा दी गई गारंटी और संसदीय प्रक्रियाओं के अभाव में क्या निष्पक्ष और स्वतंत्र विश्वासमत हो सकता है?
कर्नाटक का नाटक: विधानसभा की कार्यवाही कल तक स्थगित, आज विश्वास मत पर वोटिंग नहीं
4. शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत में क्या हमने अपवाद की अनुमति नहीं दे डाली?
यह सिद्धांत न्यायपालिका, कार्यकारिणी और विधायिका को पृथक कर उनके द्वारा एक दूसरे के काम में हस्तक्षेप करने को प्रतिबंधित करता है। शक्ति का पृथक्करण मौलिक संरचना (केशवानंद भारती बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 1973) का हिस्सा है। इसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
लोकतंत्र के एक अंग द्वारा दूसरे अंग के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप को रोकने के लिए यह एक आवश्यक चेक एण्ड बैलेंस है। क्या न्यायपालिका इस संबंध में अपने नियम और शर्तें लागू कर सकती है कि एक फ्लोर टेस्ट कैसे होना चाहिए और क्या वह विधायिका की कार्यवाही को नियंत्रित कर सकती है?
5. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश से पहले विधानसभा भंग करने के सोचे समझे और षडयंत्रकारी कोशिशों एवं इतिहास पर विचार किया?
यह पहली बार नहीं कि बीजेपी ने पैसे और बाहुबल के बूते जनादेश को पलटने की कोशिश की है। गोवा, मणिपुर, त्रिपुरा, उत्तराखंड, मेघालय, बिहार और जम्मू-कश्मीर के बाद, कर्नाटक इस श्रेणी में सबसे ताजा उदाहरण है, जो बीजेपी की सेल्फ-सर्विंग फिलॉसफी का शिकार हुआ है।
जहां जनादेश ने बीजेपी को खारिज कर दिया था, लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी इच्छा के खिलाफ उन पर बीजेपी का शासन थोप दिया गया।
ये सब सत्ता हथियाने की कोशिश हैं, फिर चाहे जनादेश और संविधान कुछ भी क्यों न कहे। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय प्रतिद्वंदी विचारों को संतुलित करने और ‘संवैधानिक संतुलन बनाए रखने’ के लिए दिया। लेकिन संवैधानिक नियमों को खारिज कर किसी भी कीमत पर सत्ता हथियाने के बीजेपी के उतावलेपन के कारण इसका बिल्कुल विपरीत परिणाम निकल सकता है।