इसके बावजूद सीएम कुमारस्वामी को चमत्कार की उम्मीद है। सीएम को लगता है कि व्हिप और अध्यक्ष के क्षेत्राधिकार को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट से कोई न कोई रास्ता निकल आएगा।
इस उम्मीद में सीएम शीर्ष अदालत की ओर हसरत भरी नजरों से देख रहे हैं। उन्हें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट विधानसभा में बागी विधायकों की भूमिका तय सकता है। ये भी हो सकता है कि बागी विधायकों की भूमिका गठबंधन के पक्ष में तय हो जाए। लेकिन ऐसा होने की उम्मीद बहुत कम है।
शीर्ष अदालत से नरमी की अपेक्षा कम दूसरी तरफ भाजपा सरकार में पूर्व मंत्री सुरेश कुमार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के रुख से स्थिति में परिवर्तन की गुंजाइश बहुत कम है। अगर सुरेश कुमार का अनुमान सही रहा तो तय है कि कर्नाटक का राजनीतिक संकट अब संवैधानिक संकट बन गया है।
सुप्रीम कोर्ट की ताकत को चुनौती कर्नाटक में जारी सियासी संकट को संवैधानिक समस्या मानने के पीछे दो वजह हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों की योग्यता और इस्तीफे को लेकर स्पीकर केआर रमेश से साफ कह दिया था कि इस बारे में वो अपने हिसाब से निर्णय ले सकते हैं।
शीर्ष अदालत केवल यह देखना चाहती है कि वो नियमानुसार निर्णय लेते हैं या नहीं। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने पार्टी व्हिप से संभावित नुकसान से बागी विधायकों को छूट भी दी थी जो कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन पर भारी पड़ गया।
राज्यपाल की सलाह की अवहेलना राज्यपाल वजुभाई वाला ने गुरुवार और शुक्रवार को मुख्यमंत्री कुमारस्वामी से विधानसभा मेंं विश्वासमत हासिल करने को कहा था। हालांकि, मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने राज्यपाल के सुझाव को अनसुना करते हुए विश्वासमत पर सोमवार को मतदान कराने का फैसला लिया।
कानूनी सवाल 1. क्या राज्यपाल को विधायिका के कामकाज में दख़ल देने की शक्तियां प्राप्त हैं? ख़ासतौर पर तब जब मुख्यमंत्री ने विश्वासमत का सहारा लिया हो। इस मामले पर सोमवार या मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने की संभावना है।
2. सवाल यह है कि क्या राज्यपाल मौजूदा हालात को संवैधानिक तंत्र की विफलता करार देकर विधानसभा को निलंबित करने या राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करेंगे। कर्नाटक संकटः डीके शिवकुमार बोले- राज्यपाल वजूभाई वाला केंद्र के इशारे पर कर रहे हैं काम
क्या कहते हैं विशेषज्ञ फैसला लेने का अधिकार राज्यपाल के पास है कर्नाटक ( Karnataka Crisis ) के पूर्व एडवोकेट जनरल अशोक हरनाहल्ली के मुताबिक सीएम कुमारस्वामी ने विश्वासमत हासिल करने के लिए राज्यपाल द्वारा तय दो समय-सीमाओं का पालन नहीं किया। दूसरी तरफ राज्यपाल को इस बात की पुख्ता सूचना है कि गठबंधन सरकार अपना बहुमत खो चुकी है।
ऐसी स्थिति में राज्यपाल सोमवार तक विश्वासमत पर मतदान का इंतज़ार कर सकते हैं। उसके बाद राज्यपाल राष्ट्रपति शासन या विधानसभा को निलंबित करनेे के मुद्दे पर अंतिम फैसला ले सकते हैं। राज्यपाल ऐसा नहीं कर सकते
कर्नाटक के एक अन्य सेवानिवृत्त एडवोकेट जनरल रवि वर्मा के अनुसार चूंकि सीएम कुमारस्वामी विश्वासमत हासिल करने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं। ऐसे में राज्यपाल को विधायिका में दख़ल देने का कोई हक नहीं है। ऐसा इसलिए कि वो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि भर हैं।
हालांकि राष्ट्रपति शासन व विधानसभा को निलंबित करने को लेकर राज्यपाल केंद्र सरकार को सलाह दे सकते हैं। लेकिन विश्वासमत हासिल करने की प्रक्रिया ही एकमात्र तरीका है जिससे तय होगा कि मुख्यमंत्री ने विश्वास खोया है या नहीं।
VIDEO: जानिए विधानसभा वेल में रात भर क्यों सोए भाजपा नेता येदियुरप्पा स्पीकर ने बनाया मामले को पेचीदा पिछले सप्ताह बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर केआर रमेश को बागी विधायकों के बारे में नियमानुसार निर्णय लेने को कहा था। साथ ही गुरुवार को विश्वासमत पर मतदान कराने को भी कहा था।
स्पीकर ने न तो बागी विधायकों की योग्यता और इस्तीफे में किसी भी मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लिया, न ही विश्वासमत पर मतदान कराया। उनके इस रुख ने मामले को और पेचीदा बना दिया।
कर्नाटक: राज्यपाल की दूसरी चिट्ठी से मची खलबली, कुमारस्वामी बोले- एक और लव लेटर अब आगे क्या वर्तमान हालात में राज्यपाल सोमवार या मंगलवार तक इंतजार करने के बाद अंतिम फैसला ले सकते हैं।
ऐसा भी हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को दोनों पक्षों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई होने के बाद कोई रास्ता निकल जाए। या कुमारस्वामी सरकार को कुछ दिनों की मोहलत मिल जाए।
ये भी हो सकता है कि कुमारस्वामी को विश्वामत पर मतदान कराने के लिए सोमवार को बाध्य होना पड़े और सरकार खतरे में आ जाए।