राजनीति

पश्चिम बंगाल में ISF के ऐलान से खिले वाम और कांग्रेस के चेहरे, TMC और एआईएमआईएम की बढ़ी चिंता

West Bengal बढ़ रहा सियासी पारा
ISF के ऐलान ने बढ़ाई टीएमसी और एआईएमएम की चिंता
मुस्लिम वोटों पर नजर गढ़ाए बैठे राजनीतिक दलों को लिए बढ़ी चुनौती

Feb 26, 2021 / 09:06 am

धीरज शर्मा

आईएसएफ के ऐलान ने बढ़ाई टीएमसी और एआईएमआईएम की चिंता

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में विधानसभा ( West Bengal Assembly Election ) चुनाव का वक्त जैसे जैसे नजदीक आ रहा है। वैसे-वैसे राजनीतिक दलों की धड़कने भी बढ़ती जा रही है। जोड़-तोड़ के जरिए हर दल खुद की जमीन मजबूत करने में जुटा है। अपने वोट बैंक को लुभाने के लिए हर राजनीतिक दल दिन रात कड़ी मेहनत कर रहा है। वोट बैंक की बात करें को पश्चिम बंगाल के चुनाव में मुस्लिम वोटों ( Muslim Vote ) का खासा महत्व है। यही वजह है कि हर दल की नजर मुस्लिम वोटों पर टिकी हुई है।
इस बीच नवगठित इंडियन सेक्युलर फ्रंट ( ISF ) के वाम-कांग्रेस गठबंधन में आने का ऐलान करके तृणमूल कांग्रेस के साथ-साथ एआईएमआईएम को भी तगड़ा झटका दिया है। मुस्लिम वोटों में सेंध इन दोनों ही दलों को लिए बड़ी चुनौती साबित होगी।
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पश्चिम बंगाल में बीजेपी की दमदार दस्तक के चलते आगामी विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोटों की अहमियत बढ़ गई है। एक तरफ जहां तृणमूल कांग्रेस का सारा दारोमदार मुस्लिम वोटों पर टिका है, वहीं कांग्रेस-वाम गठबंधन और एआईएमआईएम भी इनमें सेंध लगाने के लिए तैयार बैठा है।
ऐसे में आईएसएफ के वाम-कांग्रेस के साथ जाने के ऐलान ने मुस्किल वोटों पर नजर गढ़ाए बैठे टीएमसी और एआईएमआईएम को तगड़ झटका दिया है।

एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी इंडियन सेक्युलर फ्रंट की मदद से राज्य में शानदार एंट्री करना चाहते थे। फ्रंट के प्रमुख फुरफुरा शरीफ के मौलाना अब्बास सिद्दीकी से उनकी वार्ता भी चल रही थी।
लेकिन वाम-कांग्रेस गठबंधन ने फ्रंट को लपक लिया। बस अब सिर्फ गठबंधन के दलों में सीटों का बंटवारा होना बाकी है।

मुस्लिम वोटों का विभाजन होता है या नहीं, यह कहना अभी मुश्किल है। लेकिन इतना तय है सेक्युलर फ्रंट के रुख से ओवैसी की राह अब आसान नहीं है।
हालांकि फ्रंट ने कहा है कि जिन सीटों पर ओवैसी की पार्टी चुनाव लड़ेगी, वहां वह अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करेगा लेकिन वहां लेफ्ट या कांग्रेस का उम्मीदवार खड़ा हो जाएगा।

ऐसे में एआईएमआईएम को इससे कोई राहत नहीं मिलने वाली। फ्रंट का मकसद है कि वो किसी मुस्किल पार्टी का विरोध करता ना दिखाई दे।
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100 से ज्यादा सीटों पर नजर
बंगाल में 100-110 सीटें ऐसी हैं जिन पर यदि मुस्लिम वोट एकजुट होकर पड़ते हैं तो वह हार-जीत तय कर सकते हैं। मुस्लिम तृणमूल का एक बड़ा वोट बैंक रहा है। हालांकि, जिस तरह से बीजेपी ने हिन्दुत्व का एजेंडा चलाया है, उससे तृणमूल को मुस्लिम वोटों के एकजुट होकर मिलने की उम्मीद है।
हालांकि उनकी इस उम्मीद को मुस्लिम वोटों में सेंध लगाकार आईएसएफ झटका दे सकती है।

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