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राजनीति

1951 में भारत ने हासिल की यह सफलता, चौंक गए थे अमरीका और रूस, जानिए क्यों?

देश के पहले लोकसभा चुनाव पर टिकी थी पूरी दुनिया की नजर
भारत में सबसे पहले लागू हुआ वयस्क मताधिकार का अधिकार
नेहरू के सामने जनता का नेता साबित करने की थी चुनौतियां

 

May 10, 2019 / 08:45 am

Dhirendra

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नई दिल्ली। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीका और रूस दो ताकतवर राष्ट्र के रूप में विश्‍व मानचित्र पर उभरकर सामने आए। उसकेे बाद साम्यवादी और पूंजीवादी व्यवस्था में बेहतर कौन इस बात को लेकर पूरी दुनिया दो खेमों में बंट गई। इसी दौरान भारत एक आजाद मुल्क के रूप में विश्व मानचित्र पर अवतरित हुआ। आजादी की घोषणा होते ही अमरीका और रूस की राजनीति हमारे ऊपर हावी होने लगी। ऐसे में दो ताकतवर मुल्कों के सहयोग के बिना भारत ने दुनिया में सबसे पहले सार्वभौंमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर सफलतापूर्व चुनाव कराकर अमरीका और रूस सहित पूरी दुनिया को चौंका दिया था।
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भारत में पहले आम चुनाव की सफलता को देखकर पश्चिमी राजनैतिक विश्लेषक भी हैरान और परेशान थे। उन्हें इस बात का भरोसा नहीं था कि नवोदित नवोदित राष्‍ट्र भारत ऐसा कर पाएगा। ऐसा इसएिल कि उस समय भारत में अशिक्षा, गरीबी, भाषाई, क्षेत्रीय, सांप्रदायिक समस्याएं सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ींं थींं। लेकिन इन सभी समस्याओं से पार पाते हुए भारत ने दुनिया के सामने पहला लोकसभा चुनाव कुशलतापूर्वक संपन्न कराकर एक मिसाल पेश कर सभी को चौंकाने वाला काम किया था।
नेहरू के सामने थी खुद को साबित करने की चुनौती

दरअसल, आजाद होने के बाद 1950 में भारत ने खुद को गणतंत्र घोषित कर दिया था। एशियाई देश राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहे थे। चीन साम्यवाद की जकड़ में आ गया था। जॉर्डन और ईरान के प्रधानमंत्रियों का कत्ल हो चुका था। दूसरी तरफ कश्मीर को लेकर भारत में भी विद्रोह की स्थिति बनी हुई थी। आजादी की घोषणा होते ही पंडित जवाहरलाल नेहरू कहने को प्रधानमंत्री नियुक्त हो गए थे, पर देश ने उन्हें चुना नहीं था। नेहरू के सामने आम चुनाव कराकर खुद को जनता का नेता साबित करने की चुनौतियां मुंह बाए खड़ी थी।
क्या भारत में स्थापित हो पाएगा लोकतंत्र?
इस असमंजस की स्थिति में सबके सामने पहला यक्ष प्रश्न यह था कि भारत गणतंत्र तो बन गया लेकिन देश लोकतंत्र कब बनेगा? इस बात को लेकर सभी की नजरें देश के मुखिया नेेहरू पर पर टिकी थीं। नेहरू को भी देश को लोकतंत्र बनाने की जल्दी थी। नतीजतन भारत चुनावी महाकुंभ की तैयारी करने लगा और 1951 में इसकी चुनावी महाकुंभ की प्रक्रिया भी शुरू हो गई।
रूस और अमरीका की थी भारत पर गिद्ध दृष्टि

ऐसे समय में कम्युनिस्ट देशों के अगुवा सोवियत संघ (वर्तमान में रूस) नेहरू पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा था तो पूंजीवादी देशों का अगुवा अमरीका भी भारत को अपने पक्ष में करने में जुटा था। नेहरू की सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि दोनों में से किसको साथ दें और किसका नहीं। एक नवोदित राष्ट्र का नेता होने के कारण उनके लिए इस बात का निर्णय लेना सबसे कठिन काम था। ऐसा इसलिए कि वैश्चिक मंचों पर भारत की आजादी की मांग का दोनों ताकतवर मुल्कों ने समर्थन किया था। इन परिस्थितियों में नेहरू ने एक तटस्थ और मिश्रित अर्थव्यवस्था पर आधारित लोकतांत्रिक देश रूप में आगे बढ़ने का निर्णय लिया जो दोनों मुल्कों को पंसद नहीं था।
वयस्क मताधिकार के अधिकार

आम चुनाव की अहमियत इसलिए भी थी कि भारत ने खुद को एक लोकतांत्रिक होने की घोषणा की थी। इसलिए पहला आम चुनाव बाकी बातों के अलावा जनता का विश्वास हासिल करने का जंग भी था। नेहरू के लिए हर हाल में यह जंग जीतना जरूरी था। उस समय यूरोप और अमरीका तक में वयस्क मताधिकार के सीमित मायने थे। मसलन औरतों को इस अधिकार से वंचित रखा गया था। वहीं इसके उलट हिंदुस्तान ने देश के सभी वयस्क लोगों को मताधिकार सौंप दिया था। ये बात विकसित देशों के लिए चौंकाने वाली थी। ऐसा इसलिए कि जिस समय पहला आम चुनाव हुआ उस सयम बामुश्किल देश को आजाद हुए पांच साल हुए थे।
कांग्रेस का विघटन और प्रधानमंत्री के कई दावेदार

कहते हैं कि कांग्रेस में रसूख रखने वाले ज्‍यादातर राजनेताओं को गांधी द्वारा नेहरू को अपनी राजनैतिक विरासत सौंपे जाने से कुछ हद तक बैचनी थी। आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू के बीच तनातनी तो जग जाहिर ही थी। लेकिन पटेल का देहांत हो जाने से पार्टी के भीतर नेहरू सबसे बड़ी चुनौती समाप्त हो गई थी। इसी दौरान सोशलिस्ट पार्टी के जयप्रकाश नारायण का भी तेजी से उभार हो रहा था। दूसरी तरफ इंडियन नेशनल कांग्रेस को छोड़कर श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की और पहले आम चुनाव में अपनी दावेदारी ठोक दी?। जनसंघ ने हिंदू वोट बैंक को अपना मुख्य आधार माना था। उस समय कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के श्रीपाद अमृत डांगे भी बड़े सपने देख रहे थे।
अंबेडकर ने पेश की सियासी चुनौती
अंबेडकर ने भी कांग्रेस छोड़कर शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन बना ली थी जो बाद में रिपब्लिकन पार्टी बनी। उनके इस कदम ने नेहरू को चौंका दिया था। अंबेडकर चुनावी सभाओं में सीधे-सीधे तौर पर नेहरू पर यह कहकर निशाना साध रहे थे कि वे नीची कही जाने वाली जातियों के लिए उन्‍होंंने कुछ नहीं किया। इसलिए अंबेडकर ने मान लिया था कि कांग्रेस समाज की सबसे निचले पायदान के लिए कुछ नहीं कर रही है।
1951-52 की सबसे बड़ी घटना
इन परिस्थितियों में वयस्क मताधिकार के आधार पर आम चुनाव कराने का निर्णय दुनिया भर के देशों के लिए चौंकाने वाली थी। ऐसा इसलिए कि जिस देश में सदियों से राजशाही रही हो, जहां शिक्षा का स्तर महज 20 फीसदी हो, उस देश की पूरी आबादी को अपना शासन चुनने का अधिकार मिलना शायद पूरे विश्व के लिए 1951 की सबसे बड़ी घटना थी।
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नेहरू के लोकप्रियता की हुई जीत

इन सब कयासों के बीच भारत में पहला लोकसभा चुनाव हुआ और जवाहरलाल नेहरू की अपार लोकप्रियता ने आल इंडिया कांग्रेस पार्टी को बहुमत से जीत दिलाई। कांग्रेस संसद की 489 में से 324 सीटें जीतने में कामयाब रही और जवाहरलाल नेहरू सब पर भारी पड़े।
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