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चुनाव प्रचार से दूर रहने वाले आठ बार के सांसद ‘गुरुजी’ को नहीं है पीएम मोदी से डर

आठ बार के सांसद ने कहा आखिरी दम तक लड़ेंगे चुनाव।
झारखंड मुक्ति मोर्चो के संस्थापक हैं शिबू सोरेन।
रोजाना लोगों से दो बार मुलाकात करते हैं सोरेन।

शिबू सोरेन (फाइल फोटो)

शिबू सोरेन (फाइल फोटो)

रांची। जहां लोकसभा चुनाव में जीत के लिए राजनीतिक दल पूरी ताकत लगाए हुए हैं, एक पार्टी ऐसी भी है जिसने ना तो ढेरों होर्डिंग लगाई हैं और कुछ ही पोस्टर। यह पार्टी है झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और इसे प्रचार करने की जरूरत भी नहीं है। पूर्वी झारखंड के ग्रामीण इलाकों में राजनीति और चुनाव से जुड़ी सारी चर्चा केवल एक शब्द ‘गुरुजी’ पर ही टिकी रहती है।
गुरुजी (Guruji) यानी शिबू सोरेन। दुमका से आठ बार सांसद रहने वाले शिबू तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। यहां पर इस लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण यानी 19 मई को मतदान होगा। हैरानी की बात है कि 16वीं लोकसभा के सदस्य शिबू सोरेन ने अपने मौजूदा कार्यकाल में न तो सदन में सवाल पूछा, न ही किसी बहस में हिस्सा लिया और न ही किसी बिल का प्रस्ताव रखा।
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अपने राजनीतिक सफर में लंबी पारी खेलने वाले शिबू सोरेन (Shibu Soren) अपनी पार्टी के सबकुछ हैं। एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में शिबू सोरेन कहते हैं, “यहां पर मोदी हमारा कुछ नहीं कर सकते। चुनाव की तैयारी करने का इकलौता तरीका है कि लोगों के बीच जाओ और उनसे मिलो। इसके अलावा कुछ मायने नहीं रखता।” गुरुजी अपना घर खुला रखते हैं और दिन में दो बार लोगों से मिलते हैं। यहां तक की कुछ दिन पहले जब फानी चक्रवात जमीन पर उतर आया था लोगों से घरों के भीतर ही रहने की घोषणा की गई थी, कम से कम 100 लोग तब भी उनके दरवाजे पर मौजूद थे।
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शिबू सोरेन के बारे में पार्टी के महासचिव विनोद पांडेय कहते हैं, “गुरुजी एक राजनेता से कहीं ज्यादा हैं। उन्होंने आदिवासियों को आवाज दी है।” गुरुजी अब पार्टी की गतिविधियां या कार्यों को नहीं देखते। कुछ मिनटों से ज्यादा वह बैठकों को भी संबोधित नहीं करते। पार्टी के पदाधिकारी बार-बार उनके स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्हें आराम की जरूरत बताते हैं। वह पार्टी के कार्यक्रमों में शामिल तो होते हैं, लेकिन ज्यादातर वक्त शांत ही रहते हैं।
शिबू की सक्रियता कम होने से क्या वह अब सत्ता छोड़ देंगे के सवाल पर वह जवाब देते हैं, “नहीं, जब तक मैं जिंदा हूं चुनाव लड़ता रहूंगा।”

वहीं, इस बार उनकी प्रमुख भूमिका में कमी आने के बारे में उनके बेटे हेमंत कहते हैं, “यह, आप अपने लोगों के साथ कैसे पेश आते हैं, की बात से जुड़ा है। भाजपा ने ‘मार्गदर्शक मंडल’ के नाम पर अपने वरिष्ठ नेताओं के लिए कोल्ड स्टोरेज बना दिया है। हम ऐसा नहीं करते। दशकों तक गुरुजी ने वोट खोजे और हमारे नेता बने रहे। इस बार, हमनें सोचा कि हमें बाहर जाकर उनके लिए वोट मांगने चाहिए।” हेमंत (43) फिलहाल पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष हैं और झारखंड विधानसभा में विपक्षी दल के नेता है।
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हेमंत उनके आकस्मिक वारिस हैं। जो भी शिबू सोरेने से मिलने आता है, हेमंत एक-एक कर उनसे मिलते हैं और तसल्ली से उनकी बात सुनते हैं। वह कहते हैं, “मैं संयोगवश राजनीति में आया। मेरे बड़े भाई (दुर्गा) राजनीति में सक्रिय थे, लेकिन वह मार दिए गए। ठीक उसी वक्त पिता की तबीयत खराब हो गई। सबकुछ ढह रहा था। चीजें तेजी से भाग रही थीं और जब तक मैं समझता, मैं सांसद (राज्य सभा) बन चुका था। लोगों के लिए राजनीति की सीढ़ियां चढ़ने में वर्षों लगतेे हैं लेकिन मैंने काफी कम वक्त में यह हासिल कर लिया।”
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भूतपूर्व मुख्यमंत्री हेमंत मानते हैं कि शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत वास्तव में पारिवारिक नहीं हो सकती यहां तक की समर्थन वाली भी नहीं। वह कहते हैं, “किसी के पास भी गुरुजी जैसी ताकत नहीं है। अब मैं ढूंढ़ूगा कि कैसेे कुछ ताकत मुझमें समा जाए।”
शिबू सोरेन ने जेएमएम को एक आदिवासी पार्टी के रूप में खड़ा किया और अपने शुरुआती दिनों में बाहरी लोगों के खिलाफ अभियान चलाया। हेमंत की दृष्टि अलग है। वह कहते हैं, “जेएमएम न केवल आदिवासियों बल्कि हासिये पर पड़े दबे-कुचलों के लिए काम करती है। भाजपा के अंतर्गत तमाम समुदायों को निशाना बनाया गया। हम उनके साथ खड़े हैं।”
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पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को कड़ी टक्कर दी थी और गुरुजी केवल 39 हजार वोटों से ही जीत सके थे। इस पर हेमंत कहते हैं, “जेएमएम ने उन्हें (2004 तक सुनील पार्टी में थे) बनाया। झारखंड में अपनी पहचान बनाने वाला हर नेता यहीं पर बना। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।”
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