नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने परिसीमन के प्रस्ताव पर कहा, “यह बेहद निराशाजनक है कि आयोग ने भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को अपनी सिफारिशों में शामिल करने की अनुमती दी, आंकड़ों को महत्व नहीं दिया गया जिसपर वास्तव में विचार किया जाना चाहिए था। ये साइंटिफिक नहीं, बल्कि “राजनीतिक” दृष्टिकोण से प्रेरित है।”
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उन्होंने आगे कहा, ‘जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग द्वारा पेश किया गया प्रस्ताव अस्वीकार्य है। इसके अनुसार 6 जम्मू और केवल 1 सीट कश्मीर के लिए विधानसभा क्षेत्रों को फिर से निर्धारित करने के तहत प्रस्तावित किया गया है। ये 2011 की जनगणना के आंकड़ों के खिलाफ है।’
जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन (Sajjad Lone) ने परिसीमन आयोग पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होना चाहिए। उसी मापदंड का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जो आप पूरे भारत में उपयोग करते हैं। मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि ऐसा किया जा रहा है। ये जम्मू कश्मीर की जनता के साथ भेदभाव है।”
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इसके बाद सज्जाद लोन की पार्टी जम्मू कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेंस ने गुपकार गठबंधन से दूरी बना ली है। पूर्व मंत्री अल्ताफ बुखारी की पार्टी ने भी आयोग के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है और इसका विरोध किया है।
वहीं, नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि उनकी पार्टी 31 दिसंबर को आयोग के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देगी।इतनी आलोचनाओं के बावजूद केन्द्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा है कि नेशनल कांफ्रेंस आयोग के निर्णय से संतुष्ट है।
अब ये परिसीमन क्या है? (Delimitation meaning)
परिसीमन (Delimitation) का अर्थ सीमाओं का फिर से निर्धारण करना है। किसी भी राज्य की लोकसभा हो या विधानसभा उसकी सीमाओं को जनसंख्या, जिलों के भूगोल और सामाजिक संतुलन को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत केंद्र सरकार हर जनगणना के बाद ही परिसीमन आयोग का गठन करती है।
गुपकार गैंग लगातार परिसीमन के खिलाफ बैठकें करता रहा है। सोमवार को भी इन नेताओं की बैठक हुई थी और 21 दिसम्बर को भी इस गठबंधन की बैठक है। इन नेताओं का ये भी कहना है कि किसी भी नतीजे तक पहुँचने से पहले क्षेत्रीय दलों के नेताओं से भी चर्चा की जानी चाहिए।
अब सवाल ये है कि आखिर इसका विरोध क्यों किया जा रहा है?
बता दें कि सोमवार को परिसीमन आयोग की बैठक में जम्मू में 6 और कश्मीर में 1 विधानसभा सीट बढ़ाने के लिए प्रस्ताव रखा गया। इस प्रस्ताव से जम्मू कश्मीर में कुल विधानसभा सीट 90 हो जाएंगी। जम्मू का प्रभाव भी प्रदेश की राजनीति में बढ़ जाएगा क्योंकि इस क्षेत्र की सीटें 37 से सीधे 43 हो जाएंगी। इसके अलावा कहा जा रहा है कि इस प्रस्ताव में 9 सीटें ST और 7 सीटें SC समुदाय के लिए भी प्रस्तावित हैं।
क्षेत्रीय दलों को डर है कि कहीं जम्मू का प्रभाव बढ़ने से भाजपा जम्मू कश्मीर में अपनी राजनीतिक पकड़ और मजबूत न करले। अबतक कश्मीर में सबसे बड़ी पार्टी के नेता ही मुख्यमंत्री पद पर विराजमान होते थे जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 98.3 फीसदी है जबकि जम्मू में ये आंकड़ा लगभग 61 फीसदी है।