राजनीति

Jammu Kashmir: 5 अगस्त के बाद पहली बार घाटी में राजनीति के खुले नए रास्ते, BJP की जीत दे रही अहम संदेश

Jammu Kashmir डीडीसी चुनाव में बीजेपी ने रचा इतिहास
5 अगस्त के बाद घाटी में खुले राजनीति के नए रास्ते
आतंक को जनता के जवाब के साथ विकास की राजनीति का संदेश

Dec 23, 2020 / 09:58 am

धीरज शर्मा

डीडीसी चुनाव में घाटी की राजनीति में बड़ा संदेश

नई दिल्ली। जिला विकास परिषदों ( DDC Election ) के चुनावों के परिणाम जम्मू-कश्मीर की राजनीति में नए रास्ते को दर्शाने वाले साबित हुए। यहां नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व में बने गुपकर गठबंधन ने भले ही सबसे बड़े दल का दर्जा हासिल किया हो, लेकिन अमित शाह की रणनीति के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। इसके साथ ही ये चुनाव एक बड़ा संदेश भी दे गया।
एक तरफ लोगों ने विकास की राजनीति को वोट देकर आगे का संकेत दिया वहीं अमित शाह के उन मुद्दों को ठेंगा भी दिखा दिया, जिसमें रोशनी एक्ट और पीडीपी युवा विंग के अध्यक्ष वाहिद पारा की गिरफ्तारी लोगों पर असर नहीं डाल पाई और नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ ही वाहिद ने भी जेल से चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की।
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बीजेपी ने जम्मू डिवीजन में 10 में से 6 सीटों पर कब्जा जमाया, लेकिन कश्मीर डिवीजन में 10 में से 9 पर गुपकर गठबंधन की जीत हुई। यानी घाटी में चुनाव के परिणाम अहम संदेश दे रहा है। ये संदेश है स्थानीय मुद्दों के साथ विकास को तरजीह देने वाली सरकार की चाह।
5 अगस्त के बाद बदली फिजा
5 अगस्त को घाटी में आर्टिकल 370 और 35ए हटने के बाद जम्मू कश्मीर में पहली बार हुए इस चुनाव ने कई अहम संदेश दिए हैं। राज्य में विभाजन और पतन के बीच इसकी विशेष स्थिति समाप्त हो गई।
केंद्र की मोदी सरकार कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों समेत पूरे विपक्ष के निशाने पर रही। शुरुआत में तो वहां के सियासी दलों ने लोकतंत्र के इस पर्व में हिस्सा लेने से ही इनकार कर दिया। लेकिन बाद में राजनीतिक अस्तित्व को ध्यान में रखते हुए इन्हीं पार्टियों ने यूटर्न लिया और बीजेपी के खिलाफ गुपकार गठबंधन बनाया। यानी पिछले वर्ष 5 अगस्त के बाद घाटी में राजनीति की फिजा बदली।
आतंक को जनता का जवाब
डीडीसी चुनाव के दौरान पाकिस्तान की ओर से अप्रत्यक्ष रूप से कई बार अशांति फैलाने की कोशिश की गई। हिंसा भड़काने से लेकर आतंकी घटनाओं तक कई बार मुश्किल बढ़ाने का प्रयास हुआ, लेकिन घाटी की जनता ने अपने वोट के जरिए पाकिस्तान के साथ-साथ आंतक को भी कड़ा जवाब दिया।
विकास पर फोकस
370 के बाद केंद्र सरकार ने घाटी में बदलाव की शुरुआत की। इसी वर्ष जम्मू-कश्मीर में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की व्यवस्था को लागू किया था। इस व्यवस्था ने जनता के मन में विकास को लेकर नई उम्मीद जगाई। रोजगार से लेकर संपत्ति खरीदने और कारोबार के लिए आवाम के मन में आशाएं जगीं।
ठंड में भी दिखा हौसला
घाटी में कड़ाके की ठंड के बीच जनता ने बढ़चढ़कर चुनाव में हिस्सा लिया। ये दर्शाता है कि लोग अब नया कल चाहते हैं। नतीजों में बीजेपी को मिली बंपर जीत ने घाटी की राजनीति में नए रास्ते खोले हैं।
धार्मिक रचना के आधार पर हुई वोटिंग
जम्मू डिवीजन और कश्मीर डिवीजन अब अपनी आंख से आंख नहीं मिला रहे लेकिन उपराज्यपाल मनोज सिन्हा उन्हें केंद्र शासित प्रदेश की “दो आंखें” के रूप में संदर्भित करते हैं। जम्मू ने अपने मतदाताओं की धार्मिक रचना के आधार पर मतदान किया है।
मुख्य रूप से हिंदू क्षेत्रों में भगवा पार्टी के लिए भारी मतदान हुआ है। वहीं मुस्लिम बहुल इलाकों में गुपकर गठबंधन को जीत हासिल हुई।

नेशनल कांफ्रेंस की उदारवादी आवाज ने मतदाताओं से अपील की। यह जम्मू डिवीजन में तीन डीडीसी – राजौरी, रामबन और किश्तवाड़ में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
अगर कांग्रेस एनसी के साथ चुनाव बाद गठबंधन में प्रवेश करती है, तो इन तीनों में बहुमत हासिल कर सकती थी।

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बीजेपी ने कश्मीर जीता दिल
बीजेपी ने कश्मीर डिविजन में जीत का परचम लहराया है। कश्मीर हमेशा से बीजेपी के कोर एजेंडे में रहा है और घाटी में उसकी जीत इस बात की ओर इशारा करती है कि देर से ही सही लेकिन बीजेपी यहां लोगों का दिल जीत लिया।
वास्तव में बीजेपी ने उत्तरी कश्मीर (बांदीपोर) और मध्य कश्मीर (श्रीनगर) में भी एक सीट जीती है। यह पार्टी को घाटी के लोगों के करीब ला रही है। इसका असर राजनीति पर भी पड़ सकता है।
डीडीसी चुनावों के महत्व को बताते हुए, एल-जी सिन्हा ने इसे जम्मू और कश्मीर में प्रतिनिधित्व की राजनीति को वापस लाने के लिए एक महत्वपूर्ण वाहन कहा था। मंगलवार के परिणाम उस दिशा में एक अस्थायी और महत्वपूर्ण कदम है कि किस तरह ये स्थापना नई उम्मीदों का प्रबंधन करेगी।

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