सोशल टैबू की वजह से महिलाओं ने सर्वेयर को नहीं बताए नाम दरअसल, पहला लोकसभा चुनाव कराने से पहले चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय स्तर पर मतदाता सूची तैयार कराने का काम किया था। आयोग के प्रतिनिधियों ने मतदाता सूची तैयार करने के लिए देशभर के गांवों का दौरा किया। ऐसा कर आयोग के प्रतिनिधियों ने मतदाताओं के नाम, उम्र, लिंग, पता आदि का विवरण हासिल किया। उसी के आधार पर 1951 में नियमानुसार 21 साल के लोगों को मतदाता माना गया। लेकिन सर्वे के दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं ने चुनाव आयोग के प्रतिनिधियों को अजनबी मानकर उनसे अपना नाम साझा करने से इनकार कर दिया। उन्होंने खुद की पहचान किसी की पत्नी, मां, बेटी, बहन या विधवा के रूप में किया। बार-बार पूछे जाने पर भी सोशल टैबू की वजह से महिलाओं ने चुनाव अधिकारियों को अपना नाम बताने से इनकार कर दिया।
एक झटके में सुकुमार सेन ने सबका दावा कर दिया खारिज जब यह डेटा चुनाव आयोग के पास पहुंचा तो आयोग यह जान पाने में सक्षम नहीं था कि मतदाता सूची में शामिल 28 लाख महिलाओं के नाम क्या हैं? चुनाव आयोग के लिए यह एक ऐसी समस्या थी जिसका समाधान निकाले बगैर चुनाव कराना संभव नहीं होता। यह समस्या इसलिए उठ खड़ी हुईं थी कि बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपना नाम लिखवाने से इनकार कर दिया था। इसलिए देश के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन 28 लाख मतदाताओं की दावेदारी को मानने से इनकार कर दिया और मूल नाम लिखवाने का आदेश दिया। परिणाम यह हुआ कि पहले लोकसभा चुनाव में करीब 28 लाख महिलाएं मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाईं। हालांकि बाद के चुनावों में अधिकांश महिलाओ ने अपना सही नाम पंजीकृत कराया।
सुप्रीम कोर्ट ने सुष्मिता देव की याचिका पर सुनवाई से किया इनकार, मोदी और शाह को मिली राहत मतदाता जागरूकता अभियान चुनाव आयोग ने 3 हजार से अधिक सिनेमा हॉलों में वृत्तचित्रों की स्क्रीनिंग की, जिसके जरिए वयस्क मताधिकार के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाया गया। यानि 21 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति मतदान कर सकता था। अभियान ने इस विचार पर केंद्रित किया कि यह लोगों को अपनी सरकार का चुनाव करने वाला बेहतर अवसर है। हजारों सिनेमा हॉलों में डाक्यूमेंट्री कई महीनों तक इसलिए चलाया गया कि उस समय करीब 85 फीसद से ज्यादा लोग निरक्षर थे।
चन्नी तहसील का था पहला मतदाता लोकसभा में वोट डालने वाले पहले भारतीय हिमाचल प्रदेश के चन्नी तहसील अब किन्नौर जिला में रहने वाले बौद्ध थे। सर्दियों की बर्फवारी से बचने के लिए 25 अक्टूबर, 1951 को यहां चुनाव हुआ था। इस चुनाव में कांग्रेस ने 489 लोकसभा सीटों में से 364 सीटें जीतीं थी और नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
5 महीनों में संपन्न हुआ था पहला लोकसभा चुनाव आजाद भारत का पहला लोकसभा चुनाव अक्टूबर, 1951 से फरवरी 1952 के दौरान हुआ था। पहला लोकसभा चुनाव कराने में पांच महीने लगे थे। आम चुनाव के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी उद्योग मंत्री बने थे। वे राजनीति में दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते थे। इसी प्रकार संविधान निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डॉ. भीम राव आंबेडकर जिन्होंने अनुसूचित जाति फेडरेशन बनाया था और बाद में रिपब्लिकन पार्टी का गठन किया था। इसके बावजूद नेहरू ने उन्हें कानून मंत्री बनाया था।
85 प्रतिशत लोग निरक्षर 1951-52 में पहले लोकसभा चुनाव के समय 85 प्रतिशत लोग निरक्षर थे। लगभग 40 करोड़ की आबादी में केवल 15 प्रतिशत जानते थे कि एक भाषा में कैसे पढ़ना और लिखना है।
सरकार खजाने के बचाए 4.5 करोड़
पहले चरण के चुनाव में यूज में आए बैलेट बॉक्स को तत्कालीन चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने दूसरे आम चुनाव के लिए बचा कर रख लिए थे। इस तरह उन्होंने 35 लाख बैलेट बॉक्स बचाकर सरकारी खजाने के 4.5 करोड़ रुपए बचा लिए।
लोकसभा चुनाव 2019ः पश्चिम बंगाल में 150 साल पुराना है खूनी खेल का चुनावी इतिहास आजाद भारत का पहला लोकसभा चुनाव: तथ्य एक नजर में 1. पहला लोकसभा चुनाव कराने में पांच महीने लगे।
2. अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 तक चला मतदान।
3. लोकसभा और विधानसभा की 45 सौ सीटों के लिए हुए थे चुनाव।
4. 18 हजार प्रत्याशियों ने आजमाई थी अपनी किस्मत।
5. 17.6 करोड़ मतदाताओं का हुआ था पंजीकरण।
6. 3.8 लाख पेपर रिम्स का उपयोग बैलेट पेपर बनाने के लिए किया गया।
7. 3.90 लाख स्याही के पैक का उपयोग मतदाताओं की उंगलियों पर निशान लगाने को किया गया था।
8. मतदान के लिए 20 लाख बैलेट बॉक्स का निर्माण किया गया।
9. बैलेट बॉक्स बनाने में लगा 8200 टन स्टील।
10. 2.24 लाख मतदान केंद्र बनाए गए।
11. 16,500 लोगों को 6 महीने के अनुबंध पर मतदान कराने के लिए नियुक्त किया गया था।
12. 56 हजार अधिकारियों को चुनाव निगरानी ड्यूटी पर तैनात किया गया।
13. 2.8 लाख स्वयंसेवक भी मतदान कराने के कार्य में दे रहे थे सहयोग।
14. चुनाव संबंधी जानकारी देने के लिए 3 हजार फिल्म पूरे भारत में दिखाए गए।
15. सुकुमार सेन सेन ने बचा लिए थे 4.5 करोड़ रुपए।
सुप्रीम कोर्ट में VVPAT पर अहम सुनवाई आज, 50% पर्ची मिलान की मांग अड़े हैं विपक्षी दल सुकुमार सेन की देखरेख में हुआ था चुनाव भारतीय नागरिक सेवा के अधिकारी सुकुमार सेन मुख्य चुनाव आयुक्त बनने से पहले पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव थे। उनकी देखरेख में 1952 और 1057 का चुनाव संपन्न हुआ। नवोदित लोकतांत्रिक देश भारत में लगातार सफल चुनाव कराने वाले सुकुमार सेन को सूडान सरकार ने अपने यहां होने वाले प्रथम चुनाव की निगरानी की जिम्मा सौंपा था।
1951 में लोग इस बात को लेकर हुए थे हैरान बता दें कि 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ। 1951 में जब भारत ने लोकसभा के लिए चुनाव शुरू किया तो लोग यह जानकर हैरान रह गए कि वो अपनी सरकार का चुनाव खुद कर सकते हैं। करीब 70 साल पहले सरकार चुनने का ख्याल सभी के लिए अजूबा अहसास कराने वाला था। इस विचार को जानकर कि वो अपने शासकों का चुनाव खुद मतदान के जरिए कर सकते हैं, दंग थे। उस समय देश के मतदाता खुद पर ऐतबार नहीं कर पा रहे थे कि चुनाव में ज्यादा वोट हासिल कर सरकार बनाने वाला व्यक्ति ही देश चलाएगा, न कि वंश प्रणाली पर आधारित कोई व्यक्ति।
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