कौन है अदिति सिंह? कैसे भाजपा के लिए हैं महत्वपूर्ण ? अदिति सिंह पहली बार 2017 में यूपी विधानसभा जीतकर विधायक बनी थीं। अदिति पांच बार विधायक रहे दिवंगत अखिलेश सिंह की बेटी हैं। अखिलेश सिंह कांग्रेस से काफी लंबे समय तक जुड़े रहे हैं और रायबरेली सदर से 5 बार विधायक भी रहे थे। इस क्षेत्र में अखिलेश सिंह का प्रभाव कितना है इस बात का अंदाज आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मोदी लहर में भी वो अपनी बेटी को इस सीट से चुनाव जीतवाने में सफल रहे थे। केवल अखिलेश सिंह ही नहीं, बल्कि उनकी बेटी ने भी इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाया है। ये अखिलेश सिंह और अदिति सिंह का ही प्रभाव है कि वर्ष 2019 के चुनाव में सोनिया गांधी को रायबरेली सदर सीट से 1 लाख 23 हजार 43 वोट मिले थे। हालांकि, अपने पिता की तरह अदिति सिंह का भी कांग्रेस सरकार से विवाद हो गया। कांग्रेस में रहते हुए भी अदिति सिंह भाजपा के समर्थन में कई अवसरों पर बोल चुकी हैं, और मुखरता से कांग्रेस की आलोचना भी की है। अब जब वो भाजपा में शामिल हो गई हैं तो यहाँ से भाजपा की तरफ से अदिति सिंह ही उम्मीदवार के तौर पर खड़ी हो सकती हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए यहाी जीत पाना कठिन हो जाएगा।
रायबरेली कांग्रेस से छीनने की तैयारी भाजपा अमेठी में कांग्रेस को हराने के बाद से उसे उसके दूसरे गढ़ रायबरेली से साफ करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इस दिशा में भाजपा को तब बड़ी सफलता मिली जब यूपी में जिला पंचायत चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस को उसके ही गढ़ रायबरेली में हरा दिया। अब दूसरी सफलता अदिति सिंह के शामिल होने से मिलने की संभावना है।
इसके साथ ही सरकार रायबरेली में बुनियादी विकास पर जोर दे रही है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार और केंद्र में मोदी सरकार रायबरेली में परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ा रही है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना हो या रायबरेली से गंगा एक्सप्रेसवे का पास होना हो और रेलवे परियोजनाएं ही क्यों न हो, भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ रही। रायबरेली की पूर्व जिला मजिस्ट्रेट नेहा शर्मा ने भी इसपर प्रकाश डालते हुए कहा था कि फिलहाल यहाँ कोई स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट तो नहीं, लेकिन कई शहरी विकास से जुड़े प्रोजेक्ट्स पर स्थानीय स्तर पर तेजी से काम हो रहा है। अमृत मिशन, नमामि गंगे एम्स जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स पर पहले से ही काम जारी है। इसके अलावा मोदी सरकार रेल कोच निर्माण में रायबरेली को हब के तौर पर विकसित करने की दिशा में काम कर रही है।
जनाधार वाले सियासी नेता हुए दूर, कमजोर हुई पुरानी पार्टी रायबरेली में कांग्रेस कS कमजोर होते जनाधार का कारण जनाधार वाले सियासी नेताओं का पार्टी से दूर होना भी है। इस क्षेत्र में हर जाति को अपने पक्ष में करने के लिए पार्टी के पास अलग-अलग नेता हुआ करते थे। उदाहरण के लिए, क्षेत्रीय बिरादरी के लिए कुंवर हरनारायण सिंह और हरपाल सिंह, ब्राह्मण बिरादरी के लिए रमेश शुक्ला, उमाशंकर मिश्रा, कुर्मी समाज के लिए कमलनयन वर्मा, दलितों को जोड़े रखने के लिए शिव बालक पासी और मुस्लिम चेहरे के तौर पर हाजी वसीम साहब जैसे नेता कभी पार्टी के बड़े चेहरे हुआ करते थे। अब ये नेता पार्टी से दूर दिखाई देते हैं। अदिति सिंह और अखिलेश सिंह जैसे बड़े चेहरे भी पार्टी से दूर हो चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस में ऐसा कोई राजनीतिक जनाधार वाला नेता दिखाई नहीं देता जो रायबरेली में जातीय और सामाजिक समीकरण साध सके।
हालांकि, भाजपा ने कांग्रेस की खामियों को अपनी ताकत बनाने का काम किया और असन्तुष्ट नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करने का प्रस्ताव तक रखा। इसके साथ ही भाजपा ने विकास परियोजना से लेकर जमीनी स्तर पर आम जनता से जुड़ाव तक भाजपा रायबरेली में विधानसभा चुनावों में जीत करने के लिए प्रयासरत है। अब अदिति सिंह के भाजपा में शामिल होने से पार्टी के लिए जीत की दावेदारी और मजबूत हो गई है।