राजनीति

Congress Crisis: क्या पार्टी में कलह पंजाब और छत्तीसगढ़ को ‘कांग्रेस मुक्त’ कर देगी?

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, सभी प्रदेशों में अंदरुनी कलह की बड़ी वजह पार्टी नेतृत्व का कमजोर होना है। एक के बाद एक चुनावी हार से संगठन के अंदर पार्टी नेतृत्व की पकड़ कम हुई है।
 

Sep 01, 2021 / 03:47 pm

Ashutosh Pathak

नई दिल्ली।
कांग्रेस नेताओं के बीच कलह के साथ-साथ पार्टी की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं। कश्मीर हो या केरल, गुजरात हो या असम हर जगह कांग्रेस पार्टी में नेताओं के बीच मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं। फिलहाल पंजाब और छत्तीसगढ़ की स्थिति ज्यादा खराब है। यहां हालात ऐसे हैं कि जल्द सुधार नहीं हुआ, तो पार्टी सत्ता से दूर हो जाएगी।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, सभी प्रदेशों में अंदरुनी कलह की बड़ी वजह पार्टी नेतृत्व का कमजोर होना है। एक के बाद एक चुनावी हार से संगठन के अंदर पार्टी नेतृत्व की पकड़ कम हुई है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व को अपनी साख बचानी है, अनुशासनहीन नेताओं से सख्ती से निपटना होगा।
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच सरकार चलाने के लिए ढाई-ढाई साल के फार्मूले का विवाद बढ़ता जा रहा है। इसका कोई हल पार्टी हाईकमान भी नहीं निकाल पा रहा। दोनों नेताओं के बीच मतभेद अब खुलकर सामने आ गए हैं। राहुल गांधी और खुद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी भी इसमें दखल दे चुकी हैं, मगर ऐसा कोई संकेत अभी तक देखने को नहीं मिल रहा कि यह विवाद सुलझ गया है।
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पार्टी सूत्रों की मानें तो यह जरूर है कि टीएस सिंहदेव को इस वक्त सीएम पद की जिद छोडऩे के लिए मना लिया गया है, लेकिन यह भी डर सता रहा है कि वे कभी भी इस पर फिर मुखर हो सकते हैं। वहीं, भूपेश बघेल अब भी खुद को राज्य में ताकतवर साबित करने में लगे हुए हैं और समर्थकों की ताकत गाहे-बगाहे दिखा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की तरह पंजाब में भी हालात खराब होते जा रहे हैं। यहां पहले सिद्धू बनाम कैप्टन था और अब उसमें हरीश रावत की एंट्री भी हो गई है। किसी न किसी वजह से रावत अक्सर विवाद में आ रहे हैं। हाल यह है कि दिल्ली से मामला हल नहीं हुआ तो समस्या सुलझाने के लिए राहुल गांधी को पंजाब तक जाना पड़ा। मगर मतभेद खत्म हो रहे हैं, ऐसा कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहा।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस इस समय मजबूत नेतृत्व के संकट से जूझ रहा है। शायद यही वजह है कि पार्टी कोई सख्त और प्रभावी फैसला नहीं कर पा रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, नेतृत्व खुद भी कमजोर स्थिति में है और इसी का फायदा अलग-अलग राज्यों में नेता उठा रहे हैं। शायद यही वजह है कि इस समय तमाम नेता बगावती तेवर अपनाए हुए हैं।
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पार्टी के कुछ नेता दबी जुबान में ही सही, मगर स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बगावत की समस्या हाईकमान की वजह से ही है, क्योंकि राजस्थान में सचिन पायलट और छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव से सीएम बनाने का वादा किया गया था। वैसे, पार्टी में कमजोर नेतृत्व का खुलासा ग्रुप-23 में शामिल कांग्रेस नेताओं ने कर दिया था। सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष जरूर हैं, मगर मतभेदों को सुलझाने या फैसलों के लिए वह बहुत कम सामने आती हैं।
पार्टी के कई नेता इसका एक कारण बताते हैं कि सोनिया गांधी स्वास्थ्य कारणों से ज्यादा सक्रिय नहीं रह पा रही हैं, जबकि राहुल गांधी अब भी पार्टी नेतृत्व के लिए खुद को तैयार नहीं मान रहे। खासकर, जब से अहमद पटेल की मृत्यु हुई है, तब से सलाह मशविरा और सटीक फैसलों का दौर खत्म होता दिख रहा है। ऐसे में चर्चा यह भी है कि जब हाईकमान पार्टी नहीं संभाल पा रहा है, तो वह देश कैसे संभालेगा।
पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध के बाद भी नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर लड़ाई खत्म करने की कोशिश की गई, लेकिन अब मांग कुछ और हो गई। असंतुष्ट गुट चाहता है कि वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में नहीं हो बल्कि, इस बार चेहरा बदल लिया जाए। ऐसे में जब पार्टी के नेता और कार्यकर्ता आपस में लड़ रहे हैं तो वह चुनाव में किस तरह विपक्ष का मुकाबला कर पाएंगे।
किसान आंदोलन में अच्छी और सक्रिय भूमिका के बाद माना जा रहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति बेहतर हो सकती थी, मगर कैप्टन और सिद्धू के बीच जारी जंग को देख लग रहा है कि कहीं यहां कांग्रेस पहले की जगह तीसरे या चौथे पायदान पर न पहुंच जाए।

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