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सिद्धू की ताजपोशी में शामिल होने के मायने! फिलहाल, पंजाब के नव नियुक्त कांग्रेस अध्यक्ष की ताजपोशी में शामिल होने के फैसले को सीएम की ओर से विरोधियों के लिए वेट एंड वाच का संकेत माना जा रहा है। ऐसा इसलिए कि अपने अंदाज में कैप्टन अमरिंदर सिंह आलाकमान के फैसले का अभी भी विरोध कर रहे हैं। ये बात अलग है कि पंजाब कांग्रेस कमेटी के वर्किंग प्रेसिडेंट कुलजीत नागरा और संगत सिंह गिलजियां के साथ एक दिन पहले मुलाकात के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ताजपोशी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राजी हो गए हैं। अपने इस रुख की पुष्टि करते हुए उन्होंने सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं को कल पंजाब भवन में चाय पर बुलाया भी है। माना जा रहा है कि कैप्टन सभी के साथ वहीं से नवजोत सिंह सिद्धू की ताजपोशी कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए रवाना होंगे।ा तल्खी कम होने की उम्मीद कम दूसरी तरफ कैप्टन की ओर से न्योता स्वीकार करने के बाद अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या अब सीएम और सिद्धू में तल्खी कम होगी? इस पर पार्टी के नेता अलग-अलग राय रखते हैं। सीएम समर्थक नेताओं का कहना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की सिद्धू नापसंदगी के बावजूद सिद्धू को कांग्रेस में लाया गया था। हाल ही में अमरिंदर सिंह ने कहा था कि वो सिद्धू से तब तक नहीं मिलेंगे जब तक वो अपने ‘अपमानजक ट्वीट्स’ के लिए उनसे माफ़ी नहीं मांग लेते। इसके बावजूद कांग्रेस हाईकमान ने विधानसभा चुनाव 2022 से 8 माह पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह को 18 बिंदुओं वाली थमा दी। इन घटनाक्रमों को कैप्टन अमरिंदर सिंह के वफादार नेता अपमानित करने वाला फैसला मानते हैं। ऐसे नेताओं को लगता है कि केंद्रीय नेतृत्व की ओर से विरोधी खेमों में मेलजोल कराने और पार्टी की छवि बदलने की कोशिश वाला फैसला, चुनाव से ठीक पहले बेअसर भी साबित हो सकती है।
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वर्चस्व की लंबी लड़ाई की शुरुआत वहीं एक गुट मानता है कि नवजोत सिंह सिद्धू की पंजाब कांग्रेस चीफ के रूप में नियुक्ति से राज्य की पार्टी इकाई में संकट का समाधान नहीं हुआ है, बल्कि यह वर्चस्व की लंबी लड़ाई की शुरुआत है। ऐसा इसलिए कि कैप्टन के समर्थक पीसीसी प्रमुख के रूप में सिद्धू की ताजपोशी को शाही वंशज को नीचे दिखाने की कोशिश मानता है। फिर सिद्धू के पाकिस्तान जाने और वहां के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को गले लगाने के बाद अपनी आलोचनाओं को सीएम अमरिंदर सिंह अभी भूले नहीं हैं। आलाकमान का जोखिम भरा फैसला पार्टी के अंदर इस बात की भी चर्चा है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने जो फैसला लिया है उसे 79 वर्षीय अमरिंदर सिंह नाराजगी के बावजूद भी स्वीकार कर लेंगे। इस तरह की राय पर सहमत दिखने वाले नेताओं का कहना है कि इस उम्र में उनमें लड़ने का कितना माद्दा रह गया होगा? इस उम्र में एक नई पारी शुरू करना आसान नहीं होता। फिर राजनीति करने वाले लोग उगते सूरज को सलाम किया करते हैं। फिर, आलाकमान ने इतना बड़ा फैसला लेने से पहले सबसे बुरे परिणाम पर भी गौर किया होगा। यानि 2022 में पंजाब में कांग्रेस की जीत जो अभी पक्की दिख रही है वह हार में तब्दील हो सकती हैं।