कब हुई घटना? मणिपुर में शनिवार को घात लगाकर बैठे उग्रावादियों ने कायराना हमला किया जिसमें कमांडिंग ऑफिसर कर्नल विप्लव त्रिपाठी समेत अर्धसैन्य बलों के चार सैनिक शहीद हो गए। मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के सिंघट इलाके में ये हमला तब हुआ जब 46 असम राइफल के कमांडिंग ऑफिसर विप्लव त्रिपाठी एक पोस्ट को विजिट कर के बाद अपने काफिले के साथ लौट रहे थे। इस दौरान उनका परिवार भी साथ था। घात लगाकर बैठे उग्रवादियों ने काफिले पर IED अटैक किया, फिर गोलीबारी की जिसमें कर्नल की पत्नी और बच्चे की भी मौत हो गई। हमले में घायल सैनिकों से मिलने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह पूरे राज्य में सर्च ऑपरेशन चलवा रहे हैं ताकि इस हमले के पीछे जिनका हाथ है उनको सबक सिखाया जा सके। जहां हमला हुआ है वो इलाका म्यांमार बॉर्डर के पास है इसलिए अब बॉर्डर पर निगरानी को बढ़ा दिया गया है। पीपल लिबरेशन आर्मी (PLA)और मणिपुर नागा पीपल्स फ्रंट (MNPF) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है।
PLA चाहता है अलग देश इस कायराना हमले के पीछे चीन से फंडिंग पाने वाली पीपल लिबरेशन आर्मी को लेकर काफी चर्चा है, जिसका गठन एन. बिशेश्वर सिंह के नेतृत्व में 25 सितंबर 1978 में हुआ था। बता दें कि इस संगठन में मुख्यतौर पर पंगल और मेइतेई (Meitei) समुदाय के लोग हैं, जबकि मणिपुर के ही नागा, कुकिस और अन्य जनजातियाँ इस समूह के साथ नहीं हैं। ये उग्रवादी संगठन मणिपुर को अलग देश बनाना चाहता है। हालांकि, ये संगठन अन्य जनजातियों को एकजुट करने के लिए लगातार प्रयासरत है ताकि मणिपुर को अलग देश बनाने के अपने लक्ष्य को पूरा कर सके। इस उग्रवादी संगठन में लगभग 4000 लड़ाके हैं और ये मणिपुर के चार क्षेत्रों में सक्रिय है।
सुरक्षाबल रहे हैं निशाने पर पीपल लिबरेशन आर्मी अपने गठन के बाद से ही ये संगठन राज्य में भारतीय सेना, अर्धसैनिक बलों और पुलिस को निशाना बनाता आया है। ये संगठन 80 के दशक में तब कमजोर पड़ गया था जब 6 जुलाई, 1981 में एन. बिशेश्वर सिंह की गिरफ्तारी हुई थी और 1982 में PLA के प्रमुख थॉडम कुंजबेहारी की मौत हुई थी। इसके बाद 1989 में इस उग्रवादी संगठन ने अपना एक राजनीतिक फ्रंट बनाया, जिसका नाम रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट रखा। इसके बाद 1990 में इसने राज्य पुलिस के जवानों पर हमला न करने की घोषणा की थी।
चीन ट्रेनिंग के साथ करा रहा हथियार मुहैया इस हमले को लेकर भारतीय खुफिया एजेंसियों का दावा है कि चीन लद्दाख भारत से मिली हार का बदला पूर्वोत्तर भारत को अस्थिर करके ले रहा है। मणिपुर में चीन उग्रवादी संगठनों को बड़े पैमाने पर हथियार मुहैया करा रहा है और इनके उग्रवादी नेताओं चीन में ट्रेनिंग तक दे रहा है।
बीते वर्ष ही सुरक्षा एजेंसियों ने मोदी सरकार को चेतावनी दी थी और कहा था कि भारत के सबसे वॉन्टेड उग्रवादी नेताओं में से चार नेता अक्टूबर में चीन के कुनमिंग शहर गए थे, जहां इन्हें ट्रेनिंग दी गई थी। यही नहीं चीन पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों को हथियार बड़ी मात्र में उपलब्ध करवा रहा है जिसमें चीनी कॉम्पनियां उसका पूरा साथ दे रही हैं। चीन नियमित रूप से पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादी संगठनों को AK-47, AK-56, हैंड ग्रेनेड, नाइट विज़न डिवाइस और गोलीबारूद जैसे खतरनाक हथियार उपलब्ध करा रहा है।
म्यांमार और बांग्लादेश के रास्ते भारत पहुंचते हैं हथियार चीन इन सभी आरोपों से इंकार करता आया है, लेकिन इसके कई साक्ष्य मिले हैं जिससे ये साबित हुआ है कि इन उग्रवादियों को चीन से हथियार मिलते हैं जो म्यांमार और बांग्लादेश के रास्ते भारत पहुंचते हैं।
स्वयं खुफिया एजेंसियों ने जानकारी दी थी कि मणिपुर में सक्रिय उगवादी गिरोहों रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (RPF), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी फॉर मणिपुर (PLAM) और यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) को म्यांमार के चिन राज्य के सेनम और बुआलकुंग में चल रहे शिविरों में भारी मात्रा में अत्याधुनिक हथियार उपलब्ध करा रहा है। यही नहीं, वर्ष 2012 में NIA ने भी पूर्वोत्तर भारत मे माओवादियों के चीनी कनेक्शन का खुलासा किया था।
चीन के नेटवर्क को तोड़ने की आवश्यकता है मणिपुर के चंदेल जिले में इसी वर्ष जुलाई में घात लगाकर किए गए हमले में असम राइफल्स के 4 सैनिक शहीद हो गए थे और चार घायल हुए थे। ये वही इलाका है जब 6 साल पहले 4 जून 2015 में भारतीय सेना पर इतिहास के सबसे बड़े हमलों में से एक हमला हुआ था, जिसमें सेना के 18 जवान शाहिद हो गए थे और 15 जवान घायल हो गए थे। उस समय भी हमले के पीछे चीनी आर्मी का हाथ सामने आया था। तब भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी जिसके बाद से ये उग्रवादी संगठन ठंडे पड़ गए थे, परंतु एक बार फिर से चीन की शह पर ये सक्रिय हो गए हैं। आप इसी से अंदाज लगा सकते हैं कैसे चीन पूर्वोत्तर भारत को अस्थिर करने पर लगा हुआ है।
अगर आप गौर करें तो भारत और चीन के रिश्तों जैसे जैसे खटास आई है पूर्वोतर राज्यों के उग्रवादी घटनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिली है। चीन उग्रवादी नेताओं का इस्तेमाल भारत के खिलाफ पूरे ज़ोर शोर से कर रहा जिससे भारत आंतरिक मुद्दों मे उलझ कर रह जाए। एक तरफ पाकिस्तान कश्मीर को अस्थिर करने में लगा है, वहीं, चीन लद्दाख में जोर आजमा रहा, और अब पूर्वोत्तर में बढ़ते उग्रवादी हमले ने देश की चिंता बढ़ा दी है।
जिस तरह से कोरोना काल में भारत तेजी से बड़ी अर्थव्यवस्था बन रहा उससे चीन चिढ़ा हुआ है और वो भारत को आंतरिक मुद्दों मे उलझाना चाहता है। चीन हमेशा से भारत को अपनी विस्तारवादी नीतियों के बीच सबसे बड़ी बाधा मानता है। चाहे डोकलाम विवाद में भारत की जीत हो, या नेपाल में चीन के मंसूबों पर पानी फिरना हो या ताइवान को एक देश के रूप मे मान्यता देने की दिशा में भारत के प्रयास हो, ये सभी चीन को आक्रोशित करने के लिए पर्याप्त हैं। ऊपर से चीन की कम्पनियों का भारत की ओर रुख करना भी चीन को व्यथित कर रहा और लद्दाख में क्या हो रहा वो तो सभी देख रहे। ऐसे में चीन जानबूझकर उत्तर-भारत में उग्रवाद को बढ़ावा दे रहा।
ऐसे में भारत सरकार को चीन के इस नेटवर्क को कमजोर करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए ,अन्यथा चीन पूर्वोत्तर राज्यों में भारत के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर देगा।