राजनीति

पंजाब के कैप्टन की राह में हैं कई कांटे, विरोधियों के साथ अपनों से भी पाना होगा पार

सीएम अमरिंदर सिंह को सता रहा है पार्टी नेताओं की ओर भीतरघात का डर
कांगेस नशाबंदी के वादे को लागू करने में पूरी तरह से साबित हुई विफल
शिरोमणि अकाली दल और भाजपा की कांग्रेस को चुनावी मात देने की है तैयारी

Apr 29, 2019 / 10:40 am

Dhirendra

पंजाब के कैप्टन की राह में हैं कई कांटे, विरोधियों के साथ अपनों से भी पाना होगा पार

नई दिल्‍ली। दो साल पहले पंजाब विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत से जीत हासिल कर सत्ताधारी पार्टी बनी कांग्रेस की नजर अब लोकसभा चुनाव 2019 में बड़ी जीत पर है। लेकिन इस बार पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह की राह आसान नहीं है। ऐसा इसलिए कि कैप्‍टन साहब को पंजे की बदशाहत बरकरार रखने के लिए कई मोर्चों पर एक साथ लड़ना होगा । लोकसभा चुनाव में केवल विरोधियों से ही नहीं बल्कि अपनों का विरोध भी उन्‍हें झेलना पड़ सकता है। फिर पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी में टूट के बाद बदले समीकरण ने तो उनकी नींद पहले से उड़ा दी है।
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कैप्‍टन से नाराज हैं सिद्धू

जहां तक अपनों की बात है तो पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू और सीएम अमरिदंर के बीच जारी सत्‍ता संघर्ष जगजाहिर है। फिर अमृतसर से नवजोत कौर को लोकसभा का टिकट न देकर उन्‍हें बटिंडा से चुनाव लड़ने के लिए बाध्‍य करने की बात से सिद्धू और जयादा खफा हैं। इसके साथ ही कैप्‍टन साहब ने जो विधानसभा चुनाव के दौरान वादे किए थे वो अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। न तो नशाबंदी पर रोक लगी है और न ही युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर मिले हैं। बताया जाता है कि पार्टी के कुछ विधायक भी उनसे नाराज चल रहे हैं। ये विधायक सिद्धू के करीबी बताए जाते हैं।
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विधायक जीरा बनेंगे गले की फांस

सिद्धू के अलावा पार्टी के विधायक कुलबीर सिंह जीरा भी उनसे नाराज चल रहे हैं। जीरा कैप्‍टन साहब की चुनावी रणनीति को पलीता लगा सकते हैं और लोकसभा चुनाव के दौरान उनके लिए घाटे का सौदा साबित हो सकते हैं। कुछ महीने पहले कुलबीर सिंह जीरा ने उनके खिलाफ मोर्चा खोलते हुए पुलिस प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाया था कि नशे के सौदागरों के साथ पुलिस के आला अफसर मिले हुए हैं। इस बयान के आधार पर उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया था। इतना ही नहीं नशे पर पाबंदी को लेकर गठित जोहरा सिंह कमिशन और रंजीत सिंह आयोग भी अभी तक कुछ नहीं कर पाई है जो कैप्टन सरकार गले की फांस बनी हुई है।
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तीसरा मोर्चा भी कम नहीं

दूसरी मुसीबत ये है कि लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने से पहले पंजाब में आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के टूटने के बाद नए सियासी समीकरण खड़े हो गए हैं। सूबे में जहां 2014 के बाद से कांग्रेस, भाजपा, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और आम आदमी पार्टी (आप) को मुख्य राजनीतिक पार्टी के रूप से देखा जाने लगा था। लेकिन शिअद से टूट कर बना शिअद (टकसाली) और आम आदमी पार्टी से टूट कर बनी पंजाबी एकता पार्टी ने मिलकर तीसरे मोर्चे के रूप में महागठबंधन का ऐलान कर दिया है। इस मोर्चे में पंजाब के कई प्रभावी नेता शामिल हैं जो कईयों का गणित बिगाड़ सकते हैं। यानि अमरिंदर सिंह को 17वीं लोकसभा चुनाव में शिअद-भाजपा गठबंधन, शिअद (टकसाली) और पंजाब एकता पार्टी का गठजोड़, सहित आम आदमी पार्टी से एक साथ पार पाना होगा।
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नशाबंदी: सबसे बड़ा मुद्दा

जहां तक चुनाव के दौरान मुद्दों की बात है तो नशे और बेअदबी के मामले में कांग्रेस एक बार फिर धुर विरोधी भाजपा-शिअद और आप के निषाने पर है। विधानसभा चुनाव से पहले सीएम कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने गुटका साहिब की सौगंध खाकर कहा था कि वह पंजाब से चार हफ्तों में नशा खत्म कर देंगे। दो साल बाद भी उस वादों को पूरा करने की स्थिति में कांग्रेस आज भी नहीं है। इस मुद्दे पर भाजपा और शिरोमणि अकाली दल की कांग्रेस को घेरने की तैयारी है।
 

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