राजनीति

लोकसभा चुनाव 2019: राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़ में कमजोर हुई भाजपा, अब ओडिशा फ़तह की तैयारी

राजस्थान, एमपी औऱ छत्तीसगढ़ में भाजपा पहले से कमजोर
तीन राज्यों के नुकसान की भरपाई ओडिशा से करने की कोशिश
धर्मेंद्र प्रधान साबित हो सकते हैं भाजपा का तुरूप का इक्का

Apr 19, 2019 / 03:27 pm

Manoj Sharma

लोकसभा चुनाव 2019: राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़ में कमजोर हुई भाजपा, अब ओडिशा फ़तह की तैयारी

नई दिल्ली। लोकसभा चुनावों के मतदान का दूसरा चरण अप्रैल 18 को समाप्त हो चुका है। तीसरे चरण के मतदान को देखते हुए सभी राजनीतिक दल अपने प्रचार में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहते। इन दलों में भाजपा भी शामिल है। हाल ही में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में हुई पराजय के बाद भाजपा थिंकटैंक चिंता में पड़ा है। वह इस जुगत में लगा है कि यदि लोकसभा चुनावों में भी इन राज्यों में 2014 लोकसभा जैसी विराट सफलता नहीं मिली, तो वे कौन से राज्य हैं, जहां से क्षतिपूर्ति की जा सकती है। यही वजह है कि पिछले कुछ समय से ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भाजपा की सक्रियता काफी बढ़ गई है।
ओडिशा में भाजपा के लिए विस्तार की अपार संभावनाएं

ओडिशा में भाजपा कभी राजनीतिक रूप से एक बड़ी ताकत नहीं रही। यहां लोकसभा की 21 सीटें हैं और 2014 में प्रचंड मोदी लहर के बावजूद भाजपा के पास केवल एक सीट है। विधानसभा में भी भाजपा की हालत दयनीय ही कही जा सकती है। ओडिशा विधानसभा में 147 सीटें है, जिनमें से भाजपा के पास केवल 10 हैं। इसी में भाजपा थिंकटैंक को अपार संभावनाएं नजर आती हैं, क्योंकि ओडिशा में भाजपा विस्तार कर सकती है, जबकि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे राज्यों में उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती 2014 में मिली सीटों को बरकरार रखने की है।
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एक दशक पहले भाजपा थी नवीन पटनायक की दोस्त

करीब एक दशक पहले तक भाजपा और ओडिशा के सत्ताधारी राजनीतिक दल बीजू जनता दल (BJD) में गहरी दोस्ती हुआ करती थी। कांग्रेस के खिलाफ दोनों ने गठबंधन किया हुआ था। आज भी ओडिशा में भाजपा से ज्यादा सीटें कांग्रेस के पास हैं। कुछ वर्ष पूर्व तक ओडिशा में भाजपा नेताओं को बहुत कम लोग जानते थे। वहां पटनायक परिवार का ही बोलबाला था। लेकिन अब नवीन पटनायक के साथ-साथ ओडिशा में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी काफी ज्यादा हो गई है।
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धर्मेंद्र प्रधान ने किया ओडिशा में भाजपा का कायापलट

ओडिशा में भाजपा की कमजोर राजनीतिक हैसियत को एक ताकतवर राजनीतिक शक्ति में बदलने का श्रेय बहुत हद तक धर्मेंद्र प्रधान को जाता है। धर्मेंद्र प्रधान को मोदी मंत्रिमंडल में भी जगह मिली। इसके साथ ही वह ओडिशा के राजनीतिक मानचित्र पर भाजपा को स्थापित करने में भी जुट गए। ओडिशा में 2014 में मोदी लहर के बावजूद भाजपा को मिली करारी शिकस्त की प्रमुख वजह थी प्रदेश में पार्टी का कमजोर संगठनात्मक ढांचा। धर्मेंद्र प्रधान ने ओडिशा के अन्य नेताओं के साथ मिलकर संगठन को मजबूत करने का काम शुरू किया।
मोदी, शाह की जोड़ी ने की दो दर्जन से ज्यादा रैलियां

ओडिशा को भाजपा नेतृत्व कितना महत्व दे रहा है यह इसी बात से पता चलता है कि पिछले पांच साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य के करीब 30 रैलियां कीं। पीएम मोदी ने हजारों करोड़ रुपए की केंद्रीय योजनाओं का वहां अनावरण किया। अमित शाह ने जिलास्तर के नेताओं के साथ बार-बार मुलाकात की और भाजपा संगठन को पोलिंग बूथ स्तर तक मजबूत करने पर बल दिया। समाज के हर वर्ग को पार्टी से जोड़ा। यही वजह है कि ओडिशा में जहां पहले कुछ वर्ष पूर्व तक केवल नवीन पटनायक के ही होर्डिंग नजर आते थे, अब नरेंद्र मोदी के भी उतने ही बैनर और होर्डिंग आपको आसपास ही मिल जाएंगे। करीब 19 साल से ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और पांच साल से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के होर्डिंग भले करीब-करीब दिख जाएं, लेकिन कभी गठबंधन में रहे ये दोस्त अब ओडिशा फतह का युद्ध लड़ रहे हैं।
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