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Bihar Election : 2015 में जिन सीटों पर हारी थी बीजेपी, वीआईपी को मिली उन्हीं को जीतने की चुनौती

 

एनडीए में बीजेपी कोटे से वीआईपी को चुनाव लड़ने के लिए मिली 11 सीटें।
इन सीटों पर 2015 के चुनाव नतीजे एनडीए के पक्ष में नहीं रहे थे।

Oct 08, 2020 / 01:30 pm

Dhirendra

एनडीए में बीजेपी कोटे से वीआईपी को चुनाव लड़ने के लिए मिली 11 सीटें।

नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव ( Bihar Assembly Election ) में महागठबंधन से नाराज होकर बीजेपी से हाथ मिलाने वाली विकासशील इंसान पार्टी ( VIP ) के मुकेश सहनी ( Mukesh Sahni ) उर्फ सन ऑफ मल्लाह के लिए चुनावी राह आसान नहीं है। वह एनडीए में बीजेपी से जरूर हाथ मिला चुके हैं लेकिन जो सीटें वीआईपी के लिए आवंटित की गई हैं, उन पर जीत हासिल करना मुकेश सहनी के लिए आसान नहीं होगा।
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इन 11 सीटों में से 10 पर हार का सामना करना पड़ा था। केवल सुगौली सीट बीजेपी जीत पाई थी।

इन सीटों पर वीआईपी लड़ेगी चुनाव
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एनडीए में शामिल होने के बाद मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी को बीजेपी ने अपने कोटे से 11 सीटें आवंटित की हैं। इन सीटों में बोचहा, सुगौली, सिमरी बख्तियारपुर, मधुबनी, केवटी, साहेबगंज, बलरामपुर, अलीनगर, बनियापुर, गौड़ा बौराम और ब्रह्मपुर शामिल हैं। इनमें से केवल 7 सीटों पर बीजेपी दूसरे नंबर पर रही और सिर्फ एक सीट उसके खाते में आई। 11 में से 3 सीटें जेडीयू और एक सीपीआई माले के खाते में गई थीं।
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11 में से 6 सीटों पर आरजेडी को मिली थी जीत

2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मधुबनी, केवटी, साहेबगंज, बलरामपुर, अलीनगर, बनियापुर और ब्रह्मपुर सीट पर करारी हार का सामना करना पड़ा था। इनमें से अधिकतर सीटों पर लालू और नीतीश के महागठबंधन के उम्मीदवारों ने शानदार जीत दर्ज की थी। इस बार के चुनाव में ये सीटें वीआईपी को दी गई हैं।
इस बार लोजपा चूंकि एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में ‘सन ऑफ मल्लाह’ के लिए लोकसभा चुनाव की ही तरह विधानसभा का सियासी रण भी आसान नहीं होगा।

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मल्लाह समाज के उत्थान के लिए लौटे बिहार

बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मुकेश साहनी ने राजनीति में इंट्री ली थी। मुंबई में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अच्छा-खासा कारोबार चला रहे मुकेश साहनी, मल्लाह समाज से आते हैं। इस समाज के पिछड़ापन को दूर करने के मकसद से वे चुनाव मैदान में उतरे थे।
लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में होने का उन्हें फायदा नहीं मिला। इसके बावजूद सालभर तक वे तेजस्वी यादव, कांग्रेस और अन्य दलों के गठबंधन के साथ बने रहे। 2020 के विधानसभा चुनाव के ऐलान के बाद जब महागठबंधन में उन्हें मन-मुताबिक सीटें नहीं मिलीं, तब उन्होंने एनडीए का दामन थाम लिया।

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