वामपंथी दलों को तवज्जो इसके साथ ही वीआईपी मुकेश सहनी और आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा आरजेडी द्वारा तवज्जो न मिलने से अंदर खाते नाराज हैं। इसके बदले आरजेडी ( RJD ) ने वाम पंथी पर्टियों ( Left Parties ) को तवज्जो देने का संकेत दे रही है। अगर ऐसा हुआ तो महागठबंधन ( Mahaathbandhan ) में दलित, महादलित, ओबीसी, मल्लाह, पासवान, कोयरी, और गरीब तबके के मतदाताओं का बिखराव होगा। इसका खामियाजा महागठब्ंधन को हो सकता है। जबकि इस तबके के मतदाता बिहार में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
Boder Dispute : पैंगोंग झील के पास भारत और चीन के सैनिकों के फिर हुई झड़प, घुसपैठ की कोशिश नाकाम लोकसभा चुनाव का अनुभव खराब दरअसल, बिहार महागठबंधन के प्रमुख दलों आरजेडी और कांग्रेस ( Congress ) के नेता नए सिरे से सियासी समीकरण बिठाने में जुटे हैं। लोकसभा चुनाव 2019 का अनुभव से सीख लेकर दोनों पार्टियों के नेताओं ने छोटी पार्टियों को ज्यादा तवज्जो न देने का मन बनाया है। ऐसा इसलिए कि लोकसभा चुनावों में आरजेडी, कांग्रेस, RLSP, VIP और HAM ने महागठबंधन किया था और एक साथ चुनाव मैदान में उतरे थे। इसके बावजूद बिहार की 40 में से केवल एक सीट गठबंधन में शामिल कांग्रेस ने जीती थी।
वोट ट्रांसफर न होना आरजेडी नेताओं को लगता है कि उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी और जीतनराम मांझी की पार्टी को गठबंधन में महत्व दिए जाने के बाद भी वो अपनी जाति के वोटों को ट्रांसफर करने में सक्षम नहीं नजर आए। आरजेडी नेताओं के मुताबिक लोग इन नई पार्टियों के चुनाव चिन्ह को नहीं पहचानते हैं। इससे मतदाताओं में भ्रम पैदा होता है।
Bihar Assembly Election : शरद यादव जेडीयू में कर सकते हैं वापसी, इस रणनीति पर काम कर रहे हैं नीतीश जीत अहम न कि सीटों की संख्या इस बात को ध्यान में रखते हुए आरजेडी ने कांग्रेस के सामने दो विकल्प रखे हैं। पहला, इन दलों को आरजेडी और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहिए। दूसरा, वो अपनी सीटों की संख्या को कम से कम 10 से 12 के आसपास कर लें। आरजेडी का कहना है कि सीट शेयरिंग में ‘जीत की योग्यता’ का मापदंड जरूरी है न कि कौन कितने सीटों पर चुनाव लड़ता है।