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राजनीति

क्या हैं पूर्वांचल में सत्ता संघर्ष के मायने, आजमगढ़ और गोरखपुर के रास्ते आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं योगी और अखिलेश

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों से पहले ही यहाँ सियासी गर्मी बढ़ गई है और अब सपा और बसपा एक दूसरे के गढ़ को पाने मे जुट गए हैं। भाजपा आजमगढ़ में अपनी स्थिति को मजबूत कर सपा को उसके गढ़ से बेदखल करना चाहती है, तो वहीं अखिलेश यादव ने योगी के गढ़ में पार्टी की बिसात मजबूत करने मे लगे हैं।
 

Nov 15, 2021 / 02:17 pm

Mahima Pandey

यूपी विधानसभा चुनावों में अभी समय है, परंतु राजनीतिक दल अभी से मतदाताओं को साधने के लिए तैयारियों मे जुट गए हैं। एक तरफ भाजपा अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में सेंधमारी करने में व्यस्त है, तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव की निगाहें गोरखपुर पर फोकस दिखाई दे रही हैं। इन नेताओं की रैली और अलग-अलग जगहों पर इनकी उपस्थिति ने सियासी पारा बढ़ा दिया है और ये राजनीतिक टकराव दिलचस्प दिखाई दे रहा है। क्या है इनकी रणनीति ? आखिर अपने गढ़ को कैसे बचाएंगे भाजपा और सपा ? या किसी एक को मिलेगा जीत का स्वाद ओर दूसरे को हार ?
गोरखपुर में अखिलेश, मोदी देंगे एक्सप्रेसवे की सौगात

गोरखपुर से विजय रथ यात्रा निकाल पूर्वांचाल मे पार्टी की बिसात को मजबूत करने में अखिलेश यादव जुट गए हैं, वो भी तब जब यहां 16 नवंबर को पीएम मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यूपी को पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का तोहफा देने वाले हैं। स्पष्ट है भाजपा इसके जरिए पूर्वांचाल को साधना चाहती है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 14 नवंबर को योगी के गढ़ गोरखपुर में समाजवादी पार्टी के विजय रथयात्रा का तीसरा चरण शुरू किया। इस दौरान अखिलेश यादव ने महंगाई का मुद्दा उठाया और किसानों की स्थिति को लेकर भाजपा पर निशान साधा। इस दौरान अखिलेश यादव ने कहा, ‘भाजपा को 2024 की चिंता नहीं करनी चाहिए, बल्कि उन्हें 2022 में जनता के सवाल का जवाब देना चाहिए। देश में महंगाई क्यों बढ़ी, पेट्रोल-डीज़ल के दाम क्यों बढ़े, किसानों की आय अब तक क्यों नहीं बढ़ी, प्रदेश के युवाओं को रोजगार क्यों नहीं मिले, इस तरह के सवालों के जवाब देने चाहिए।’
अखिलेश यादव ने इस दौरान योगी आदित्यनाथ के डिजिटल स्किल्स पर सवाल भी उठाया और कहा कि योगी आदित्यनाथ मुखिया बनने के लायक नहीं है। बता दें कि ये वही क्षेत्र है जहां समाजवादी पार्टी 2017 के चुनावों में खाता भी नहीं खोल सकी थी। गोरखपुर की 9 विधानसभा सीटों में से 8 पर भाजपा ने कब्जा जमाया था, जबकि एक सीट बसपा के हाथ गई थी।
अखिलेश ने गोरखपुर में भाजपा को घेरा

इस बार अखिलेश यादव गोरखपुर के साथ ही पूरे पूर्वांचाल को लेकर काफी गंभीर दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने रैली में कहा, ‘जनसैलाब देखकर लग रहा है कि जनता बदलाव चाहती है। जनता पर भरोसा है और यकीन है कि यहां से बीजेपी का सफाया हो जाएगा। बीजेपी ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, जो हुई नहीं। आमदनी और मुनाफा घट गया, आय बढ़ाने की बजाय महंगाई बढ़ा दी। बीजेपी नेअन्नदाता का अपमान सबसे ज्यादा किया है। बीजेपी के लोग कहते थे कि हवाई चप्पल पहनने वाला हवाई जहाज पर नहीं चला, डीजल-पेट्रोल इतना महंगा कर दिया कि मोटरसाइकिल नहीं चला पा रहे हैं।’
पूर्वांचाल जो कभी सपा का हुआ करता था, परंतु 2017 के चुनावों मे भाजपा ने 165 सीटों मे से 115 पर जीत दर्ज कर सपा को बड़ा झटका दिया था। जबकि 2012 के चुनावों मे स्थिति थोड़ी अलग थी, तब यहां पर सपा को 3, बसपा को 1, कांग्रेस को 2 और भाजपा को 1 सीट मिली थी। इस बार सपा को यहाँ सफलता भी मिल सकती है, क्योंकि वर्तमान मे रोजगार, महंगाई जैसे मुद्दों ने योगी सरकार को कठघरे में ला दिया है जिसे भुनाने की सपा पूरी कोशिश कर रही है।
अखिलेश भी जायेंगे आजमगढ़

अखिलेश यादव अपनी विजय रथ यात्रा के बाद 17 नवंबर को आजमगढ़ का रुख करेंगे जिसकी टाइमिंग को लेकर भी सियासी अटकलें लगाई जा रही है कि सपा यहाँ कोई बड़ी चुनावी घोषणा कर सकती है। हालांकि, आजमगढ़ जाने से पहले अखिलेश यादव की योजना 16 नवंबर को गाजीपुर से विजय रथ यात्रा निकालने की थी, परंतु उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी गई है जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो सकती है।
रजभर समुदाय को साधने में जुटी भाजपा

दूसरी तरफ भाजपा अखिलेश यादव के गढ़ आजमगढ़ में राजभर मतदाताओं को साधने से लेकर नाम बदलने और कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए जाने तक के मुद्दों को उठा रही है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति में आजमगढ़ में जनसभा को संबोधित किया और कहा, “महाराजा सुहेलदेव के नाम पर नया राज्य विश्वविद्यालय होगा, जो आजमगढ़ के पहचान के संकट को समाप्त करेगा।”
बता दें कि जमीनी स्तर पर सुहेलदेव को राजभर या भर राजपूत कहा जाता है जिन्हें हिंदू धर्म की रक्षा करने वाले राजा के रूप में जाना जाता है। योगी सरकार ने उन्हें उचित सम्मान देकर राजभर मतदाताओं को आजमगढ़ में साधने का प्रयास किया है।
यूपी की सियासत में राजभर समुदाय की विशेष भूमिका रही है, जिनकी यूपी में कुल हिस्सेदारी 18 प्रतिशत की है जबकि 60 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में यह समाज अपना प्रमुख वर्चस्व रखता है। आजमगढ़ में इनकी संख्या काफी है और यहाँ इन्हें साधकर भाजपा अपनी स्थिति थोड़ी मजबूत करने में कामयाब हो सकती है।
आजमगढ़ का नाम बदलने के दिए संकेत

इसके अलावा योगी आदित्यनाथ ने आजमगढ़ का नाम आर्यमगढ़ मे बदलने के संकेत दिए। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि यह यूनिवर्सिटी सही मायने में ‘आजमगढ़ को आर्यमगढ़’ में बदल देगी। ये सिलसिला यही नहीं रुक गृह मंत्री अमित शाह ने आजमगढ़ की कमजोर नब्ज पर हमला करते हुए कहा कि “जिस आजमगढ़ को दुनियाभर के अंदर, सपा शासन में कट्टरवादी सोच और आतंकवाद की पनाहगाह के रूप में जाना जाता था, उसी भूमि पर आज मां सरस्वती जी का धाम बनाने का काम हम लोग कर रहे हैं।” अमित शाह ने आम जनता से जात-पात में बांटना, दंगे कराना, तुष्टीकरण करना और वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर सरकार चुनने की बात कही।
आजमगढ़ का जातीय समीकरण

आजमगढ़ में यादव-मुस्लिम की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है, दलित 22, गैर यादव ओबीसी 21 और सवर्ण 17 फीसदी है। यही कारण है कि भाजपा यहाँ कभी कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकी। पीएम मोद यहां कई बड़ी जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं। फिर भी भाजपा की स्थिति में कोई बदलाव नहीं दिखाई दिया, परंतु अब ये भी बदलता हुआ दिखाई दिया जब आजमगढ़ की 22 में से 11 ब्लॉक प्रमुख की सीटें जीतकर भाजपा ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
अखिलेश की अनदेखी भाजपा का हथियार

इसका कारण फ्री राशन वितरण, उज्ज्वला एवं पेंशन योजना और किसान सम्मान निधि योजना के लाभ को जनता तक पहुंचाने में मुख्यमंत्री योगी सरकार के प्रयास शामिल हैं। इसका एक और कारण कोरोना काल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जनता से संपर्क करना और अखिलेश यादव का गायब रहना भी है। आजमगढ़ में उस समय लापता अखिलेश यादव के पोस्टर भी लगाए गये थे। अखिलेश यादव की अनदेखी का फायदा उठाते हुए भाजपा ने आजमगढ़ में अपनी घुसपैठ बढ़ानी शुरू कर दी। इसके बाद पार्टी संगठन ने सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाकर भाजपा के लिए माहौल बनाने का काम किया है।
स्पष्ट है, अखिलेश यादव की सपा और भाजपा एक भी अवसर एक दूसरे के गढ़ मे सेंधमारी करने का नहीं गंवाना चाहते हैं, और एक के बाद एक रैली, जनसभाएँ करना इनकी रणनीति का हिस्सा बन गया है। आजमगढ़ में तो भाजपा के लिए बदलाव सकारात्मक दिखाई दे रहा। वहीं, गोरखपुर को लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, परंतु अखिलेश यादव के प्रयासों को अनदेखा भी नहीं किया जा सकता है।

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