इस सवाल का जवाब दुष्यंत कुमार की गजलों में छुपा है। महज 42 साल की उम्र जीने वाले दुष्यंत कुमार की गजलों ने हिंदी पाठकों के बीच जो लोकप्रियता पाई है, उसे कोई दूसरा गजलकार नहीं छू सका है। युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता किसी से छुपी नहीं है। महज 66 पन्नों की उनकी गजल पुस्तिका “साये में धूप” ने कई युवाओं को सत्ता के खिलाफ खड़ा किया है, तो उनके कई शेर जनता में जोश भरने का काम करते हैं। “हो गई है पीर पर्वत सी….” जैसी बेहद मशहूर गजल हो या फिर “कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता/ एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो” हर मंच से हुंकार भरने वाला मशहूर शेर, दुष्यंत हर मौके और मजलिस में जोश भरने वाले गजलकार हैं।
अब जब राहुल गांधी भाजपा शासन की खामियों को उजागर करने के लिए दुष्यंत कुमार का सहारा ले रहे हैं, तो साफ हो जाता है कि दुष्यंत ने किसी खास समय की सच्चाई को दर्ज नहीं किया था, बल्कि उन्हें सत्ता के चरित्र को ही उजागर किया था। जाहिर है कि अब जब सत्ता के हर केंद्र में भाजपा, कांग्रेस को पछाड़कर आगे आ रही है, तो दुष्यंत कुमार के माध्यम से कांग्रेस अपने पक्ष में माहौल बनाना चाहती है। इसमें कांग्रेस और राहुल गांधी कितने सफल होते हैं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन दुष्यंत कुमार के कुछ शेरों को इस बहाने याद किया जा सकता है। वैसे तो उनके तकरीबन सभी शेर खासे लोकप्रिय हैं और सत्ता की खामियों को उजागर करते हैं, उनमें से चंद शेर यहां पढिय़े-
कहां तो तय था चराग हर एक घर के लिए
कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे पुराने पड़ गए हैं डर, फेंक दो तुम भी
ये कचरा आज बाहर फेंक दो तुम भी
मत कहो आकाश में कुहरा घना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ये रोशनी है हकीकत में एक छल लोगो
कि जैसे जल में छलकता हुआ महल लोगो आज सड़कों पर लिखे हैं, सैकड़ों नारे न देख
घर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं, हवा में सनसनी घोले हुए हैं
तुम्हीं कमजोर पड़ते जा रहे हो, तुम्हारे ख्वाब तो शोले हुए हैं कई फाके बिताकर मर गया जो उसके बारे में
वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा
यहां तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं,
खुदा जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा
हमने तमाम उम्र अकेले सफर किया
हम पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही
हमको पता नहीं था, हमें अब पता चला
इस मुल्क में हमारी हुकूमत नहीं रही अपाहिज व्यथा को वहन कर रहा हूं
तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूं
अंधेरे में कुछ जिंदगी होम कर दी
उजाले में अब ये हवन कर रहा हूं