कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध
पिछले वर्ष केंद्र सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई थी जिसको लेकर शुरू हुआ विरोध 2021 में इतना बड़ा बन गया कि केंद्र सरकार को झुकने पर विवश होना पड़ा। किसानों की मांग के समक्ष झुकते हुए केंद्र सरकार ने 19 नवंबर को कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी।
ये मुद्दा इस साल संसद के हर सत्र में देखने को मिला था। इसके साथ ही विपक्षी ने इसे मुख्य चुनावी हथियार के रूप में भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था और सरकार को किसानों के प्रति असंवेदनशील बताया था। यहाँ तक कि पंजाब में भाजपा का वर्षों पुराना सहयोगी दल (SAD) भी किसानों के मुद्दे पर उससे दूर हो गया।
कृषि कानूनों को लेकर विपक्षी दल उत्तर प्रदेश और पंजाब के विधसनसभा चुनावों में मुख्य मुद्दा बनाकर भी पेश करने वाले थे। हालांकि, केंद्र सरकार ने अपने कदम पीछे लिए और किसानों ने कुछ मांगों के साथ आंदोलन को खत्म कर दिया।
पश्चिम बंगाल और चार अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव
इस वर्ष पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव काफी चर्चा में रहे। यहाँ भाजपा ममता के गढ़ में बढ़त बनाने में सफल रही परंतु लाख प्रयासों के बावजूद ममता बनर्जी की TMC पार्टी ने 294 में से 213 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की। इन चुनावों में सुवेन्दू अधिकारी के हाथों ममता बनर्जी को नंदीग्राम से मिली हार भी भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बना था। इसके बाद ममता बनर्जी ने बंगाल सत्ता जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने की दिशा में काम शुरू कर दिया।
तमिलनाडु में, एमके स्टालिन के नेतृत्व में DMK ने अन्नाद्रमुक-भाजपा (AIADMK-BJP) गठबंधन को हराकर 10 साल बाद सत्ता वापसी की। तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव इस बार इसलिए भी अहम थे जयललिता और एम करुणानिधि के निधन के बाद राज्य में यह पहला विधानसभा चुनाव था।
केरल में सत्ता विरोधी लहर के बावजूद मौजूदा एलडीएफ 99 सीटों के साथ सत्ता में बनी रही। ये केरल में पहली बार था कि कोई सत्ताधारी दल ने वापसी की थी। वर्ष 1980 के बाद से अब तक कोई भी पार्टी या गठबंधन दूसरी बार जीतकर सत्ता में नहीं आया था।
असम और पुडुचेरी में भाजपा सत्ता वापसी करने में सफल रही थी।
कांग्रेस शासित राज्यों में आंतरिक कलह
कांग्रेस पहले ही नेतृत्व की कमी से जूझ रही है और इसका प्रभाव पार्टी की राज्य इकाइयों में भी देखने को मिलता रहा है। पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीनों ही काँग्रेस शासित राज्यों में जबरदस्त घमासान इस वर्ष देखने को मिला। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो पार्टी ने आंतरिक कलह के बावजूद सत्ता में मुख्यमंत्री चेहरों में कोई बदलाव नहीं किया परंतु पंजाब में स्थिति ऐसी नहीं रही।
पंजब में लंबे समय से तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे टकराव को खत्म करते हुए अमरिंदर को कुर्सी से हटा दिया। इसके बाद पार्टी ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया। अब अमरिंदर सिंह ने पंजाब मेंआगामी विधानसभा चुनावों के लिए नई पार्टी का गठन कर भाजपा के साथ हाथ मिला लिया है।
कर्नाटक में जब गहराय राजनीतिक संकट
भाजपा शासित राज्यों में भी उथल-पुथल देखने को मिली। कर्नाटक में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के सामने संकट तब गहरा गया जब इस साल 26 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से बीएस येदियुरप्पा ने इस्तीफा दे दिया। ये इस्तीफा पार्टी के भीतर सीएम के खिलाफ राज्य भाजपा इकाई के भीतर बढ़ते असंतोष के बाद सामने आया था।
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येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद भाजपा के समक्ष राज्य में पार्टी के अंदर बढ़ते असंतोष को रोकने के साथ ही कोरोना सकंट से निपटने की चुनौती थी। हालांकि पार्टी ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में बसवराज सोमप्पा बोम्मई को चुना और स्थिति को संभाल लिया।
आर्यन खान ड्रग्स केस
ड्रग्स मामले में NCB द्वारा बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ़्तारी ने सिनेमा उद्योग के साथ ही भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया। खासकर महराष्ट्र की राजनीति में सबसे अधिक उठापटक देखने को मिली। फिलहाल, आर्यन खान जमानत पर बाहर हैं।
उद्धव के नेतृत्व वाली महाविकस आघाडी ने इस मामले में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर घटिया राजनीतिक के तहत NCB का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।
केंद्रीय एजेंसी के कामकाज में कई अन्य अनियमितताओं के अलावा, राज्य मंत्री नवाब मलिक ने एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े (Sameer Wankhede) के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया और जबरन वसूली केआरोप लगाए।
इस दौरान आर्यन खान 22 दिनों तक आर्थर रोड जेल में रहा, जिसके बाद मुंबई उच्च न्यायालय ने उसे जमानत दे दी, यह कहते हुए कि प्रथम दृष्टया में उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है जिससे ये साबित हो कि इस अपराध में वो शामिल था।
लखीमपुर खीरी हिंसा
इस साल 3 अक्टूबर को, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले एक एसयूवी की चपेट में आने से चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत हो गई थी। कथित तौर पर ये एसयूवी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले का हिस्सा थी। इस घटना की देशभर में निंदा की गई और ये इस साल का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ निष्क्रियता के लिए यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार को फटकारा भी था जिसके बाद आशीष मिश्रा सहित 12 अन्य को गिरफ्तार किया गया था।
SIT की रिपोर्ट सामने आने पर शीतकालीन सत्र के दौरान राज्य सरकार पर आरोपी को बचाने के आरोप भी लगे। SIT की रिपोर्ट में ये सामने आया था कि इस घटना को साजिश के तहत अंजाम दिया गया था।
पेगासस जासूसी मामला
एक इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर से भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा हस्तियों के फोन हैक किए जाने की खबर सामने आई थी। इस खबर के सामने आते ही राजनीतिक दलों में हड़कंप मच गया। जिन लोगों के फोन टैप होने का डाव किया गया उनमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद सिंह पटेल जैसे कई बड़े नाम सामने आए थे। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश दिया कि पेगासस जासूसी मामले की जांच एक्सपर्ट कमेटी करेगी।
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गणतंत्र दिवस के अवसर पर जब लाल किले में हुई हिंसा
26 जनवरी को, तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हजारों किसान अपनी मांगों को लेकर नई दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान पुलिस से भिड़ गए थे। उनमें से कई ट्रैक्टर चलाकर लाल किले में पहुंचे और धार्मिक ध्वजा फहराया था।इस घटना में 500 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। इस घटना की पूरे भारत में निंदा की गई थी।
कोरोना की दूसरी लहर में स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे का संकट
COVID-19 की दूसरी लहर ने देश भर में कहर बरपाया, जिसमें लाखों लोगों की जान चली गई, साथ ही स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की जर्जर स्थिति को भी सामने आई। अस्पतालों में मरीजों की भरमार होने से कई राज्य बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर और अन्य उपकरणों के संकट से जूझ रहे हैं। महाराष्ट्र, दिल्ली और कई राज्य सरकारों में आपसी टकराव तक देखने को मिले। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप और केंद्र सरकार के सहयोग के बाद स्थिति काबू में आ सकी थी।
भाजपा ने बदल डाले चार राज्यों के मुख्यमंत्री
केंद्रीय नेतृत्व ने चार भाजपा शासित राज्यों – गुजरात, कर्नाटक, उत्तराखंड और असम में अपने मुख्यमंत्रियों को बदला था। इन राज्यों में पार्टी की इकाइयों के भीतर की अंदरूनी कलह और विधानसभा चुनावों से पहले सत्ता विरोधी लहर को रोकने के लिए भाजपा ने ये बड़ा कदम उठाया था। उत्तराखंड में जहां अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने हैं, वहीं कर्नाटक और गुजरात में 2022 के अंत में मतदान होगा।