पीलीभीत

वरुण गांधी के कांग्रेस में आने के रास्ते में क्या उनकी मां मेनका गांधी खड़ी हैं?

Varun Gandhi Politics: मेनका-सोनिया की लड़ाई, जिसने रोक रखा है वरुण का कांग्रेस में जाने का रास्ता।

पीलीभीतFeb 18, 2023 / 06:50 pm

Rizwan Pundeer

मां मेनका गांधी के साथ वरुण

वरुण गांधी ने हाल ही में कहा कि छुट्टा जानवर फसल नहीं, देश का भविष्य खा रहे हैं। छुट्टा पशु हो, गन्ने के भाव का मामला हो या शिक्षामित्रों का। वरुण गांधी भाजपा के वो एमपी हैं, जो लगातार अपनी ही सरकारों पर हमलावर हैं।

शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर नाना पटोले तक ये देखा गया है कि नेता जब आलाकमान के खिलाफ बोलता है तो फिर जल्दी ही पार्टी बदल देता है। बीजेपी पर हमला और मनमोहन सिंह से लेकर अखिलेश यादव तक विपक्षी नेताओं की तारीफ वरुण कर रहे हैं। इससे लगता है कि वरुण गांधी कांग्रेस में जा सकते हैं।
वरुण की भाजपा से तल्खी के बावजूद अगर गांधी परिवार का इतिहास देखें तो ये नहीं माना जा सकता है कि वरुण की कांग्रेस में एंट्री हो सकती है।


ऊपर के तथ्यों से 3 बातें निकलती हैं…
वरुण गांधी बीजेपी से खफा हैं।
वरुण गांधी किसी दूसरी पार्टी का रास्ता तलाश रहे हैं
वरुण गांधी के लिए कांग्रेस आसानी से दरवाजे खोल देगी।

लेकिन… एक बड़ा पेंच है। वरुण गांधी क्या इस पेंच को खोल पाएंगे?


वरुण गांधी और प्रियंका गांधी के लाख अच्छे रिश्ते हों लेकिन सोनिया गांधी और मेनका गांधी के रिश्तों की तल्खी उससे कहीं ज्यादा है। देवरानी-जेठानी के रिश्तों में इतना जहर घुला है कि दोनों एक-दूसरे की ओर देखती तक नहीं। ये नफरत कैसे बढ़ी, सिलसिलेवार तरीके से आपको बताते हैं।

https://youtu.be/sTylq8I2dso
मेनका-संजय की शादी के बाद साथ में रहता था पूरा परिवार
सोनिया गांधी और राजीव गांधी की शादी 1969 में और इसके 5 साल बाद 1974 में मेनका गांधी की संजय गांधी से शादी हुई। मेनका और संजय की शादी के बाद इंदिरा गांधी का पूरा परिवार, मतलब दोनों बेटे और बहुएं साथ रहती थीं।

मेनका की शादी को एक ही साल हुआ था कि इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी। इस दौरान राजीव गांधी अपनी नौकरी तक सीमित थे तो सोनिया गांधी एक आम गृहिणी की तरह से राहुल और प्रियंका की परवरिश में बिजी थीं। इंदिरा के साथ इस दौरान राजनीतिक तौर पर कोई साथ था तो वो थे संजय और मेनका। संजय को तो इंदिरा गांधी का उत्तराधिकारी माना जाता था। मेनका भी शादी के बाद राजनीति में दखल देने लगी थीं।
इमरजेंसी में मेनका ने दिया इंदिरा गांधी का साथ
मेनका की दिलचस्पी राजनीति में थी, जिसे उन्होंने छुपाया भी नहीं। मेनका गांधी ने सास इंदिरा का खूब साथ दिया। इमरजेंसी के दौरान वो ‘सूर्या’ मैगजीन निकालती थीं। इस मैगजीन में उन्होंने कांग्रेस और खासतौर से इंदिरा गांधी के विरोधियों को जमकर निशाने पर लिया।
इंदिरा चुनाव हारी थीं तो बदल गए घर के हालात
इमरजेंसी हटी और देश में चुनाव हुए। 1977 में इंदिरा गांधी सिर्फ सत्‍ता से ही बेदखल नहीं हुई, वो रायबरेली से अपना चुनाव तक हार गईं। चुनाव हारने के बाद उनको सरकारी आवास खाली करना पड़ा। इंदिरा गांधी दिल्ली में 12, विलिंगटन क्रेसेंट में रहने लगीं।

इंदिरा गांधी के चचेरे भाई बीके नेहरू ने अपनी किताब में इस दौरान के कई किस्से लिखे हैं। उन्होंने किताब में बताया है कि कैसे इंदिरा के परिवार में अनबन शुरू हो गई थी। यही वो समय भी था जब सोनिया की करीबी इंदिरा से बढ़ने लगी थी। राजीव और संजय के बीच भी इस दौरान सब ठीक नहीं था।

बीके नेहरू ने एक दिलचस्प किस्सा इस दौरान का लिखा है कि एक बार संजय गांधी ने ऑमलेट फेंक दिया था, जो सोनिया ने बनाया था। इस वाकये ने इंदिरा गांधी के मन में सोनिया के लिए सहानुभूति बढ़ा दी थी।

सोनिया बनाती थीं घर का खाना

सोनिया गांधी इस दौरान अक्सर ही खान मार्केट से सब्जियां लाती थीं और बनाती थीं। वो अपने बच्चों और पति के साथ संजय-मेनका और इंदिरा गांधी का खाना भी बना देती थीं। सोनिया गांधी की ओर खास बात थी कि वो इंदिरा गांधी के किसी राजनीतिक फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं करती थीं। वो सिर्फ सास और परिवार के खानेपीने का ख्याल रखती थीं।

वहीं मेनका राजनीतिक मसलों पर बोलती थीं। वो चाहती थीं कि इंदिरा उनसे सलाह लें। इससे ये होने लगा कि इंदिरा का झुकाव लगातार सोनिया की ओर बढ़ने लगा और इसने मेनका के मन में एक खटास पैदा कर दी।

इमरजेंसी बीती और जनवरी 1980 में इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं। मेनका गांधी गर्भवती हुईं तो उनसे इंदिरा और सोनिया की नाराजगी कुछ कम होने लगी। मेनका की प्रेग्नेंसी और फिर मार्च 1980 में वरुण के जन्म के बाद सोनिया और इंदिरा ने उनका ख्याल भी रखा और परिवार में फिर से एकता दिखने लगी।
संजय गांधी की मौत ने सबकुछ बदल दिया
1980 में संजय गांधी का प्लेन हादसे का शिकार हुआ और उनकी मौत हो गई। इसने गांधी परिवार में सबकुछ बदल कर रख दिया। लेखक जेवियर मोरो ने अपनी किताब में इंदिरा गांधी के सचिव के हवाले से लिखा है कि मेनका गांधी को पूरा भरोसा था कि इंदिरा गांधी के बाद संजय ही देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।

संजय की मौत हुई तो इस दुख से उबरते हुए मेनका खुद को उनकी सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर देख रही थीं। इसकी बड़ी वजह राजीव गांधी की राजनीति में दिलचस्पी ना होना भी था। उनको लगता था कि वो ही संजय की सीट से लड़ने के लिए सबसे उपयुक्त हैं।

संजय की मौत के बाद खाली हुई अमेठी सीट से इंदिरा गांधी ने मेनका के बजाय राजीव गांधी को उतारा। इसने मेनका को तगड़ा झटका दिया। मेनका सास इंदिरा के इस फैसले के पीछे जेठानी सोनिया को भी मानती थीं। इंदिरा गांधी का यही वो फैसला था जिसने मेनका और सोनिया के रिश्तों में एक कभी ना भरने वाली खाई पैदा कर दी।

‘सोनिया गांधी: अ बायोग्राफी’ में रशीद किदवई लिखते हैं कि सोनिया गांधी और मेनका गांधी की आपस में इमरजेंसी के वक्त से ही बननी बंद हो गई थी। संजय की मौत के बाद हुए राजनीतिक फैसलों से ये दूरी और बढ़ गई।

इंदिरा गांधी के निजी डॉक्टर रहे डॉ. केपी माथुर ने “अनसीन इंदिरा गांधी” नाम से लिखी अपनी किताब में कहा है कि संजय गांधी की मौत के के बाद इंदिरा चाहती थीं कि वो मेनका को अपने साथ रखें। लेकिन मेनका की ओर से जिस तरह की राजनीतिक गतिविधियां हो रही थीं, वो इंदिरा को पसंद नहीं था। इसने दोनों के रास्ते अलग कर दिए।
varun.jpg
विवाद बढ़ा और मेनका ने छोड़ा इंदिरा का घर
राजीव गांधी जैसे ही संजय गांदी की जगह अमेठी से सांसद चुने गए तो साफ हो गया कि अब वो इंदिरा गांधी के राजनीतिक वारिस हैं। इसने मेनका को परेशान कर दिया। इंदिरा और मेनका में झगड़े बढ़ने लगे। इन झगड़ों में सोनिया और इंदिरा एक ही पक्ष रहीं। ऐसे में मेनका की इंदिरा के साथ-साथ सोनिया से भी तल्खी बढ़ती गई।

लगातार बढ़ते झगड़ों का नतीजा ये निकला कि 1982 में मेनका आधी रात को इंदिरा को घर छोड़कर निकल गईं। मेनका ने ‘राष्ट्रीय संजय मंच’ बनाकर खुलकर सास की मुखालफत शुरू कर दी। 1984 का चुनाव हुआ तो मेनका ने अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ चुनावी ताल ठोक दी। मेनका इस चुनाव में हार गईं। इस चुनाव ने उनकी इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी और राजीव गांधी के साथ वापसी की किसी भी संभावना को खत्म कर दिया।

1982 के बाद से ही मेनका गांधी लगातार राजनीति में एक्टिव हो गईं। 1989 में पीलीभत से चुनाव जीतीं और वीपी सिंह सरकार में मंत्री बनीं। बाद में वो बीजेपी में आ गईं। दूसरी ओर राजीव गांधी की मौत के कुछ सालों बाद सोनिया भी राजनीति में आईं और उन्होंने कांग्रेस की कमाल संभाली।
यह भी पढ़ें

अब्दुल्ला के जाते ही BJP ने रणनीति बनानी की शुरू, लेकिन अपना दल क्यों पेंच फंसा रहा है?




इस समय सोनिया गांधी के बच्चे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी राजनीति में हैं तो मेनका के बेटे वरुण गांधी भी 2009 से बीजेपी से सांसद हैं। दोनों देवरानी-जेठानी ने बीते 50 सालों में पारिवारिक और राजनीतिक तौर पर कई तरह के दौर देख लिए लेकिन दोनों के बीच जो दूरियां बनीं वो कम नहीं हुई हैं। ये बीते चुनावों में भी दिखा था।
बच्चों की शादी में भी नहीं गईं सोनिया और मेनका
सोनिया और मेनका के बीच तल्खी का अंदाजा इससे लगा लीजिए कि प्रियंका की शादी में मेनका नहीं गईं थीं तो वरुण गांधी की शादी में सोनिया गांधी या राहुल-प्रियंका में से कोई शामिल नहीं हुआ। ऐसे में सियासी पंडित लाख वरुण के कांग्रेस में आने की बात कहें लेकिन मेनका-सोनिया की तल्खी के सामने ये संभव नहीं लगता है।

Hindi News / Pilibhit / वरुण गांधी के कांग्रेस में आने के रास्ते में क्या उनकी मां मेनका गांधी खड़ी हैं?

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.