रामलीला में रावण का किरदार निभाने वाले की सच में हो गई मौत
पीलीभीत के मोहल्ला दुर्गा प्रसाद निवासी दिनेश रस्तोगी बताते हैं “साल 1987 में मेरे पिता कल्लूमल रामलीला मंचन में रावण की भूमिका निभा रहे थे। इस बीच राम बने कलाकार के तीर से उनकी मौत हो गई। इस घटना ने रामलीला की परंपरा को बदल दिया।” दिनेश बताते हैं कि रावण बने कलाकार कल्लूमल की सच में मौत के बाद से यहां रावण वध का मंचन दशहरा के एक दिन बाद होता है। इसके साथ ही कल्लूल की प्रतिमा भी मेला मैदान में लगवाई गई है। यह भी पढ़ें
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अगर उस दिन शनिवार पड़ गया तो रावण दहन तीसरे दिन होगा। इस ऐतिहासिक रामलीला में मोहल्ला दुर्गाप्रसाद के एक ही परिवार के लोग रावण की भूमिका पीढ़ियों से निभा रहे हैं। इसके अलावा इस मेला मैदान में अयोध्या, पंचवटी, शिवकुटी, लंका और अशोक वाटिका के पक्के भवन भी बने हैं। रामलीला मंचन के दौरान इन्हीं भवनों का इस्तेमाल भी किया जाता है।”एक ही परिवार कई पीढ़ियों से निभा रहा रावण की भूमिका
पीलीभीत जिले के मोहल्ला दुर्गाप्रसाद निवासी 56 साल के दिनेश रस्तोगी बताते हैं “साल 1987 में रावण वध मंचन के दौरान तीर लगने से पिता की मौत हो गई। इसके बाद से मैंने रावण का किरदार निभाना शुरू कर दिया। मेरे पिता गंगा विष्णु उर्फ कल्लूमल ने साल 1940 से 1987 तक रामलीला मंचन में रावण का किरदार निभाया। उससे पहले साल 1931 से 1940 तक मेरे ताऊ चंद्रसेन मेले में रावण का किरदार निभाते थे। मेरे पिता की इच्छा थी कि उनकी मौत रामलीला मंचन के दौरान हो, यह इत्तेफाक ही है कि साल 1987 में रामलीला मंचन के दौरान ही उनकी मौत भी हो गई।” यह भी पढ़ें
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मेला परिसर में स्थापित की गई कल्लूमल की प्रतिमा
दिनेश रस्तोगी ने आगे बताया कि साल 1922 से 1931 तक पीलीभीत जिले के मोहल्ला दुबे निवासी बाबूराम वर्मा मेले में रावण की भूमिका निभाते थे। जबकि साल 1915 से 1922 तक गांव चौसरा के मोती महाराज मेले में रावण की भूमिका निभाते थे। यह सब दिनेश के परिवार के ही लोग हैं। यानी पिछले 95 सालों से रामलीला में रावण की भूमिका निभाने की एक परिवार में अनोखी परंपरा चल रही है। दिनेश कहते हैं “रावण के किरदार निभाने के दौरान मेरे पिता की मौत के बाद मेला कमेटी ने मेला मैदान में मेरे पिता कल्लूमल की प्रतिमा स्थापित कराई है। यह प्रतिमा लंका भवन की तरफ लगाई गई।”125 साल पुराना है बीसलपुर रामलीला का इतिहास
बीसलपुर रामलीला कमेटी के उपाध्यक्ष 90 साल के विष्णु गोयल की मानें तो बीसलपुर रामलीला का इतिहास 125 साल पुराना है। विष्णु गोयल कहते हैं “करीब सवा सौ साल पहले बदायूं जिले से आकर यहां बसे कटहरिया जाति के लोगों ने बीसलपुर में मेला शुरू कराया था। वे लोग गुलेश्वर नाथ मंदिर के पास पशु चराते समय रामलीला का अभिनय करते थे। तत्कालीन तहसीलदार भूपसिंह ने इन चरवाहों की भावनाओं को महसूस किया। इसके बाद उन्होंने इनके अभिनय को वास्तवित रंग दिया। शुरुआत के कुछ सालों तक यह मेला छोटे मंच पर होता था। बाद में इसे विशाल मैदान में कराया जाने लगा। अब इस मेले में रामलीला का मंचन पूरे मैदान में होता है। रामलीला के कलाकार पूरे मैदान में घूम-घूमकर अपनी कलाकारी दिखाते हैं। यह भी पढ़ें