लेकिन क्या आप जानते हैं कि देवभूमि में एक ऐसा भी मंदिर है, जिसके संबंध में मान्यता है कि यहां दर्शन किए बिना गंगोत्री जाने पर भी मां गंगा का आशीर्वाद नहीं मिलता यानि बिना इस मंदिर के दर्शन के गंगोत्री यात्रा अधूरी मानी जाती है।
दरअसल इस साल यानि 2020 में गंगोत्री धाम के कपाट 26 अप्रैल, रविवार को खुल गए। कपाट खुलने के साथ ही इस दिन विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा का भी आगाज हो गया है। गंगोत्री धाम के यह कपाट रविवार को शुभ मुहूर्त में दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर और इसी दिन 12 बजकर 41 मिनट पर यमुनोत्री धाम के कपाट खोल दिए गए।
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यह तो सभी जानते हैं कि भगवान भोले की नगरी काशी मानी जाती है, जिसके संबंध में मान्यता है कि यहां साक्षात शिव विराजते हैं, इसी प्रकार देवभूमि में भी एक काशी है, जिसे उत्तरकाशी के रूप में जाना जाता है। यहां काशी विश्वनाथ का प्राचीन मंदिर उत्तरकाशी की विशेष पहचान है।
माना जाता है कि इस नगर पर हमेशा से भोलेनाथ की कृपा रही है, यही वजह है कि उत्तरकाशी को विश्वनाथ नगरी कहा जाता है। चारधामों में से एक गंगोत्री धाम इसी क्षेत्र में पड़ता है और कहा जाता है कि अगर भगवान विश्वनाथ के दर्शन नहीं किए तो मां गंगा का आशीर्वाद नहीं मिलता…बिना विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के गंगोत्री यात्रा अर्थहीन है।
यही वजह है कि गंगोत्री धाम के कपाट खुलते ही उत्तरकाशी में भगवान विश्वनाथ के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर में प्राचीन शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के दाईं और शक्ति मंदिर है।
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इस मंदिर में 6 मीटर ऊंचा और 90 सेंटीमीटर परिधि वाला एक बड़ा त्रिशूल स्थापित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी दुर्गा (शक्ति) ने इसी त्रिशूल से दानवों को मारा था।
स्कंद पुराण में भी उत्तरकाशी का जिक्र…
उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। स्कंद पुराण में भी उत्तरकाशी का जिक्र मिलता है। स्कंद पुराण के केदारखंड में उत्तरकाशी के लिए बाड़ाहाट शब्द का इस्तेमाल किया गया है। केदारखंड में बाड़ाहाट में विश्वनाथ मंदिर का वर्णन मिलता है। पुराणों में इसे सौम्य काशी भी कहा गया है।
भगीरथ ने की थी यहां तपस्या…
कहते हैं कि राजा भगीरथ ने मां गंगा को धरती पर लाने के लिए जिस जगह तपस्या की थी, वो उत्तरकाशी ही है। काशी विश्वनाथ के मंदिर की स्थापना के पीछे भी कई कहानियां प्रचलित हैं।
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कहते हैं कि मंदिर की स्थापना परशुराम ने की थी, यही वजह है कि उत्तरकाशी में परशुराम का भी मंदिर है। सन् 1857 में इस मंदिर की मरम्मत टिहरी की महारानी कांति ने कराई थी, जो कि महाराजा सुदर्शन शाह की पत्नी थीं।
उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर की महत्ता उतनी ही है, जितनी काशी के विश्वनाथ और रामेश्वरम मंदिर में पूजा-अर्चना करने की, यही वजह है कि पूरे साल यहां भगवान आशुतोष के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की कतार लगी रहती है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से जो भी मुराद मांगी जाती है, वो जरूर पूरी होती है।