मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापान कलयुग के प्रथम दिन हुई थी। महाभारत के अनुसार, इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम यहां आए थे और पूजा-अर्चना की थी। कहा जाता है कि 1733 में त्रावनकोर के राजा मार्तण्ड वर्मा ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। यहां भगवान विष्णु का श्रृंगार सोने के आभूषणों से किया जाता है।
दीपकों के उजाले से भगवान के दर्शन भगवान विष्णु के दिव्य दर्शन करने आये भक्तों को अलग-अलग दरवाजों से करवाया जाता है। यहां कई दीपक जलते रहते हैं, उन्हीं दीपकों के उजाले से भगवान के भव्य दर्शन होते हैं।
दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में एक यह मंदिर दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में गिना जाता है। कुछ वर्ष पहले ही इस मंदिर के पांच तहखानों से करोड़ों की संपत्ति का पता चला था। बताया जाता है कि इस संपत्ति की देखभाल त्रावणकोर राजपरिवार ही करता है।
श्रद्धालुओं के प्रवेश के नियम इस मंदिर में श्रद्धालुओं के प्रवेश के नियम भी है। कड़ी सुरक्षा में इस मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रवेश मिलता है। पुरुष धोती पहनकर तो महिलाएं साड़ी में ही प्रवेश कर सकती हैं। अन्य किसी लिबास में यहां प्रवेश वर्जित है।
मंदिर की विशेषता इस मंदिर की विशेषता ये है कि यहां पर भगवान विष्णु की शयनमुद्रा, बैठी हुई और खड़ी मूर्तियां स्थापित की गई है। सभी मूर्तियों की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। तीनों मूर्तियों की पूजा-अर्चना अलग-अलग तरीकों से की जाती है।