तीर्थ यात्रा

युद्ध या मिशन में जाने से पहले इस मंदिर के दर्शन करते हैं जवान

पौराणिक दृष्टि से हाट कालिका महाशक्ति पीठ काफी महत्वपूर्ण है। स्कंदपुराण के मानस खंड में यहां स्थित देवी का वर्णन मिलता है।

Nov 21, 2019 / 12:45 pm

Devendra Kashyap

उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां पर बद्रीनाथ, केदारनाथ, जागेश्वर धाम जैसे शक्तिपीठ, तीर्थस्थल और ज्योतिर्लिंग है। इसके अलावे राज्य में कई ऐसे मंदिर हैं, जो अपने आप में कई रहस्य को समेटे हुए हैं।

आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं कि जिसके बारे में बताया जाता हैं कि यहां पर मां काली खुद प्रकट हुई थी। यह मंदिर हाट कालिका के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित है।

हाट कालिका महाशक्ति पीठ देवदार के पेड़ों से चारो तरफ से घुरा हुआ है। पौराणिक दृष्टि से हाट कालिका महाशक्ति पीठ काफी महत्वपूर्ण है। स्कंदपुराण के मानस खंड में यहां स्थित देवी का वर्णन मिलता है।

मान्यता के अनुसार, कालिक का रात में डोला चलता है। इस डोले के साथ कालिका के गण, आंण व बांण की सेना भी चलती है। कहा जाता है कि अगर कोई इस डोले को छू ले तो उसे दिव्य वरदान की प्राप्ति होती है।
यहां विश्राम करती हैं मां काली

हाट कालिका मंदिर के बारे बताया जाता है कि यहां पर मां काली विश्राम करती है। यही कारण है कि शक्तिपीठ के पास महाकाली का विस्तर लगाया जाता है। बताया जाता है कि सुबह में इस विस्तर पर सिलवटें पड़ी होती हैं, जो संकेत देती है कि यहां पर किसी ने विश्राम किया था। बताया जाता है कि जो भी महाकाली के चरणों में श्रद्धापुष्प अर्पित करता है वह रोग, शोक और दरिद्रता से दूर हो जाता है।

कुमाऊं रेजिमेंट की अराध्य हैं देवी

बताया जाता है कि हाटकालिका मंदिर में विराजमान महाकाली इंडियर आर्मी की कुमाऊ रेजिमेंट की आरध्य हैं। बताया जाता है कि इस रेजिमेंट के जवान युद्ध या मिशन पर जाते हैं तो इस मंदिर का दर्शन जरूर करते हैं। यही कारण है कि इस मंदिर के धर्मशालाओं में किसी न किसी आर्मी अफसर का नाम जरूर मिल जाते हैं।

सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में हुई थी महाकाली की मूर्ति की स्थापना

बताया जाता है कि 1971 में पाकिस्तान के साथ छिड़ी जंग के बाद कुमाऊ रेजीमेंट ने सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में महाकाली की मूर्ति की स्थापना हुई थी। बताया जाता है कि ये सेना द्वारा पहली मूर्ति स्थापित की गई थी। इसके बाद कुमाऊ रेजिमेंट ने साल में 1994 में बड़ी मूर्ति चढ़ाई थी।

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