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यहां स्थापित है ‘कामनालिंग’, जानें मंदिर के शीर्ष पर लगे ‘पंचशूल’ का रहस्य

shravan 2019 : सावन महीने में झारखंड के देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम मंदिर जाने वाले शिव भक्तों की संख्या काफी बढ़ जाती है। यहां स्थापित शिवलिंग को ‘कामनालिंग’ भी कहा जाता है।

Jul 07, 2019 / 03:51 pm

Devendra Kashyap

यहां स्थापित है ‘कामनालिंग’, जानें मंदिर के शीर्ष पर लगें ‘पंचशूल’ का रहस्य

shravan 2019 : 17 जुलाई से सावन महीने ( month of sawan ) की शुरुआत हो रही है। सावन ( savan ) महीने में झारखंड के देवघर ( deoghar ) स्थित बैद्यनाथ धाम ( baidyanath dham ) मंदिर ( बाबा धाम देवघर ) जाने वाले शिव भक्तों की संख्या काफी बढ़ जाती है। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। जहां पर यह मंदिर स्थित है उसे देवघर कहा जाता है अर्थात देवताओं का घर। यह ज्योतिर्लिंगों एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है यहां आने वालों को सभी मनोकामना पूर्ण होता है। यही कारण है कि यहां स्थापित शिवलिंग को ‘कामनालिंग’ भी कहा जाता है।
पंचशूल का रहस्य

आमतौर पर भगवान शिव के मंदिर के ऊपर त्रिशूल लगा रहता है लेकिन यहां ऐसा नहीं है। यहां सबसे रहस्य का विषय मंदिर के शीर्ष पर लगा ‘पंचशूल’ है। कहा जाता है कि रामायण काल में रावण की लंका नगरी के प्रवेश द्वार पर भी ऐसा ही पंचशूल लगा हुआ था। पंचशूल को रक्षा कवच भी कहा जाता है। मान्यता है कि पंचशूल के कारण ही आज तक देवघर में मंदिर पर किसी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ। देवघर में सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एकबार शिवरात्रि के दिन नीचे उतारा जाता और फिर विशेष पूजा के बाद स्थापित कर दिया जाता है।
मंदिर से जुड़ा पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने हिमालय पर कठोर तप किया। उसने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए एक-एक करके अपने सिर को काटते जा रहा था। जैसे ही उसने 10वां सिर काटना चाहा, भगवान शिव प्रकट हो गये और उससे वर मांगने को कहा। कथा के अनुसार, रावण ने भगवान शिव से ‘कामनालिंग’ लंका ले जाने का वर मांगा। भगवान शिव ने रावण को ‘कामनालिंग’ ले जाने का वर दे दिया लेकिन शर्त रख दिया कि वह रास्ते में जमीन पर नहीं रखेगा। अगर जमीन पर रख दिया तो वे वहीं विराजमान हो जाएंगे।
baidyanath dham deoghar
देवघर में विराजमान हो गये भोलेनाथ

जैसे ही इस बात की जानकारी लगी रावण ‘कामानलिंग’ लेकर लंका जा रहा है, सभी देवता चिंतित हो गए और विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु ने देवताओं की बात सुन एक माया रची और वरुण देव को आचमन के जरिये रावण के पेट में घुसने को कहा। रावण जब याचमन कर भगवान शिव को लंका ले जाने लगा तो विष्णु की माया के कारण देवघर के पास उसे लघुशंका लग गई।
baidyanath dham deoghar
कथा के अनुसार, रावण को रोक पाना मुश्किल हो रहा था। उसी दौरान उसने एक ग्वाले को देखा। ग्वाले को देखने के बाद रावण ने शिवलिंग को थोड़ी देर को पकड़ने को कहा और लघुशंका के लिए चला गया। कहा जाता है कि रावण कइ घंटों तक लघुशंका करता रहा, जो आज भी वहां एक तालाब के रुप में मौजूद है। इधर, ग्वाला रूप में खड़े भगवान विष्णु ने शिवलिंग वहीं पर रखकर स्थापित कर दिया।
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रावण जब लौटा तो देखा कि शिवलिंग जमीन पर रखा हुआ है। उसके बाद रावण ने शिवलिंग को उठाने की कई बार कोशिश की, लेकिन उठा नहीं सका। उसके बाद रावण ने गुस्से में शिवलिंग को अंगूठे से धरती के अंदर दबा दिया और लंका चला गया। बताया जाता है कि तब से ही यहां पर शिवलिंग स्थापित है, जिसे ‘कामनालिंग’ के नाम से जाना जाता है।

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