यूं तो आपने कई मंदिरों के चमत्कारों के बारें में सुना होगा, लेकिन ऐसे में हम आपको ऐसे दो मंदिरों के बारें में बताने जा रहे हैं, जिन्हें लेकर राजवंश सदैव सतर्क रहते हैं। जिनमें भारत में ही एक ऐसा शहर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां एक मंदिर के कारण रात में कोई राजा यहां नहीं रुकता है। वहीं दूसरा मंदिर भी हमारे देश के पड़ोस में ही मौजूद है।
मंदिर 1: महाकालेश्वर, उज्जैन
दरअसल यदि हम अपने ही देश की बात करें तो प्राचीनकाल से उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की यह मान्यता रही है कि यदि कोई राजा उज्जैन में रात गुजार लेता था। तो उसे अपनी सल्तनत गंवानी पड़ती थी और आज भी उज्जैन के लोगों की यही मान्यता है कि यदि कोई भी राजा,सीएम,प्रधानमंत्री या जन प्रतिनिधि उज्जैन शहर की सीमा के भीतर रात बिताने की हिम्मत करता है, तो उसे इस अपराध का दंड भुगतना होता है।
आखिर ऐसा क्या रहस्य जुड़ा है उज्जैन नगरी के महाकालेश्वर मंदिर से, जहां कोई भी मानव रूपी राजा रात नहीं बीता सकता है। आइये जानते हैं उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का वो रहस्य!
मंदिर से जुड़ा खास रहस्य
पौराणिक कथाओं और सिंघासन बत्तीसी के अनुसार राजा भोज के समय से ही कोई भी राजा उज्जैन में रात्रि निवास नहीं करता है। क्योंकि आज भी बाबा महाकाल ही उज्जैन के राजा हैं।
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महाकाल के उज्जैन में विराजमान होते हुए, कोई और राजा उज्जैन नगरी के भीतर रात में नहीं ठहर सकता है। यदि कोई भी राजा या मंत्री यहां रात गुज़ारने की कोशिश करता है, तो उसे इसकी सज़ा भुगतनी पड़ती है। इस धारणा को सही ठहराते हुए कई ज्वलंत उदाहरण उज्जैन के इतिहास में उपस्थित हैं। जो इस प्रकार हैं…
: देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जब महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के बाद उज्जैन में एक रात रुके थे। तो मोरारजी देसाई की सरकार अगले ही दिन ध्वस्त हो गई।
: उज्जैन में एक रात रुकने के बाद कर्नाटक के सीएम वाईएस येदियुरप्पा को 20 दिनों के भीतर इस्तीफा देना पड़ा।
: वर्तमान राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उज्जैन शहर में रात में नहीं रुकते हैं।
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किंवदंती के अनुसार, राजा विक्रमादित्य के बाद से, उज्जैन के किसी भी मानव राजा ने कभी भी शहर में रात नहीं बिताई है और जिन्होंने ऐसा किया, वे आपबीती कहने के लिए जीवित नहीं थे।
वहीं हमारे पड़ोस के ही एक देश में भी एक ऐसा मंदिर मौजूद है, जिसके दर्शन तक को उस देश के राजपरिवार के लोग नहीं जाते। बताया जाता है कि नेपाल के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक मंदिर ऐसा है भी है जहां आम नागरिक तो जा सकते हैं, लेकिन नेपाल राजपरिवार के लोग दर्शन के लिए नहीं जा सकते… इसका रहस्य कुछ इस प्रकार है…
मंदिर 2: बुदानिकंथा मंदिर, नेपाल…
वहीं दूसरी ओर नेपाल के जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं, वह काठमांडू से 8 किलोमीटर दूर शिवपुरी पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। यह विष्णु भगवान का मंदिर है। मंदिर का नाम बुदानिकंथा है। मंदिर को लेकर ऐसी कथा है कि यह मंदिर राज परिवार के लोगों के शापित है। शाप के डर की वजह से राज परिवार के लोग इस मंदिर में नहीं जाते।
बताया जाता है कि यहां के राज परिवार को एक शाप मिला था। इसके मुताबिक अगर राज परिवार का कोई भी सदस्य मंदिर में स्थापित मूर्ति के दर्शन कर लेगा, तो उसकी मौत हो जाएगी। इस शाप के चलते ही राज परिवार के लोग मंदिर में स्थापित मूर्ति की पूजा नहीं करते।
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राज परिवार को मिले शाप के चलते बुदानिकंथा मंदिर में तो राज परिवार का कोई सदस्य नहीं जाता। लेकिन मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति का ही एक प्रतिरूप तैयार किया गया। ताकि राज परिवार के लोग इस मूर्ति की पूजा कर सकें इसके लिए ही यह प्रतिकृति तैयार की गई।
बुदानिकंथा में श्रीहरि एक प्राकृतिक पानी के सोते के ऊपर 11 नागों की सर्पिलाकार कुंडली में विराजमान हैं। कथा मिलती है कि एक किसान द्वारा काम करते समय यह मूर्ति प्राप्त हुई थी। इस मूर्ति की लंबाई 5 मीटर है। जिस तालाब में मूर्ति स्थापित है उसकी लंबाई 13 मीटर है। मूर्ति में विष्णु जी के पैर एक-दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। वहीं नागों के 11 सिर भगवान विष्णु के छत्र बनकर स्थित हैं।
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पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय विष निकला था, तो सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए शिवजी ने इसे अपने कंठ में ले लिया था। इससे उनका गला नीला पड़ गया था। इसी जहर से जब शिवजी के गले में जलन बढ़ने लगते तब उन्होंने उत्तर की सीमा में प्रवेश किया। उसी दिशा में झील बनाने के लिए त्रिशूल से एक पहाड़ पर वार किया इससे झील बनी।
मान्यता है कि इसी झील के पानी से उन्होंने प्यास बुझाई। कलियुग में नेपाल की झील को गोसाईकुंड के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि बुदानीकंथा मंदिर का पानी इसी गोसाईकुंड से उत्पन्न हुआ था। मान्यता है कि मंदिर में अगस्त महीने में वार्षिक शिव उत्सव के दौरान इस झील के नीचे शिवजी की भी छवि देखने को मिलती है।
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