तीर्थ यात्रा

#JagannathRathYatra : जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास और महत्व

#JagannathRathYatra : पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ ( Jagannath ) बहन सुभद्रा की इच्छा पर रथ में बैठाकर नगर भ्रमण कराया था। जिसके बाद से ही हर साल यहां रथ याज्ञा निकाली जाती है।

Jul 04, 2019 / 02:12 pm

Devendra Kashyap

#JagannathRathYatra : जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास और महत्व

#JagannathRathYatra : आज ( 4 जुलाई ) से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा ( Jagannath Rath Yatra ) शुरू हो गई है। हिन्दू धर्म में इस यात्रा का काफी महत्व है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी से शुरू होती है औऱ दशमी को समाप्त हो जाती है। इस यात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अंत में गरुण ध्वज पर श्री जगन्नाथ जी चलते हैं।
यात्रा को लेकर क्या है धार्मिक मान्यताएं


पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने प्रभु के सामने नगर देखर की इच्छा प्रकट की, साथ ही द्वारका धाम के दर्शन कराने की प्रार्थना की। सुभद्रा की इच्छा पर भगवान जगन्नाथ ने रथ में बैठाकर नगर भ्रमण कराया। जिसके बाद से ही हर साल यहां रथ याज्ञा निकाली जाती है। इसका वर्णन ने नारद पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी किया गया है।
Jagannath rath yatra
 

इस यात्रा में प्रभु जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमाएं रखी जाती हैं। इनकी प्रतिमाओं को रथ में रखकर नगर भ्रमण कराया जाता है। इस यात्रा में तीन रथ होते हैं, जिन्हे श्रद्धालु खींचकर चलाते हैं। मान्यता है कि जो भी इस रथयात्रा में शामिल होकर रथ खींचता है, उसे सौ यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।
Jagannath rath yatra

गौरतलब है कि प्रभु जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं जबकि भाई बलराम के रथ में 14 और बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं। मान्यताओं के अनुसार रथ यात्रा को निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर में पहुंचाया जाता हैं। जहां भगवान भाई-बहन के साथ आराम करते हैं।

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