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तीर्थ यात्रा

आठवां बैकुंठ बद्रीनाथ हो जाएगा लुप्त : जानें कब और कैसे! फिर यहां होगा भविष्य बद्री…

– इस पावन धाम का सनातन संस्कृति में बहुत महत्व है।- लुप्त हो जाएगा आठवां बैकुंठ बद्रीनाथ, फिर यहां मिलेंगे बाबा बद्री

Oct 18, 2022 / 05:07 pm

दीपेश तिवारी

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सनातन हिंदू धर्म के प्रमुख धामों में से एक बद्रीनाथ धाम (badrinath dham) भी है। भगवान श्रीहरी इस पौराणिक और भव्य मंदिर में हिमालय पर्वत की श्रंखलाओं में विराजमान है। हिमालय की चोटियों में बसा ये तीर्थ करीब 6 माह के लिए लोगों की नजरों से दूर रहता है, दरअसल इस दौरान अत्यधिक बर्फ के चलते इसके किवाड़ बंद कर दिए जाते हैं।

चारों ओर उंचे उंचे पहाड़ों के बीच मौजूद इस पावन धाम का सनातन संस्कृति में बहुत महत्व है। बद्रीनाथ धाम (badrinath dham) समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां पर पहुंचने का रास्ता भी काफी दुर्गम है।

सृष्टि का आठवां बैकुंठ है बद्रीनाथ धाम … Eighth baikunth of universe is badrinath dham
बद्रीनाथ धाम को सृष्टि का आठवां बैकुंठ (Eighth baikunth of universe) माना जाता है। माना जाता है कि इस धाम में भगवान श्रीहरी छह माह तक योगनिद्रा में लीन रहते हैं और छह माह तक अपने द्वार पर आए भक्तों को दर्शन देते हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थित भगवान बद्रीविशाल की मूर्ति शालिग्राम शिला से बनी हुई चतुर्भुज अवस्था में और ध्यानमुद्रा में है।

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मंदिर के पट बंद होने पर भी मंदिर में एक अखंड दीपक प्रज्वलित रहता है। इस देवस्थल का नाम बद्री होना भी प्रकृति से जुड़ा हुआ है। हिमालय पर्वत पर इस जगह जंगली बेरी बहुतायत में पाई जाती है। माना जाता है कि इन बेरियों की वजह से ही इस धाम का नाम बद्रीनाथ धाम (badrinath dham) पड़ा।

मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बद्रीनाथ(badrinath), भगवान विष्णु का वास बना। अलकनंदा की सहचरणी नदी मंदाकिनी नदी के किनारे केदार घाटी है, जहां बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक सबसे महत्वपूर्ण केदारेश्वर हैं। यह संपूर्ण इलाका रुद्रप्रयाग जिले का हिस्सा है। माना जाता है कि रुद्रप्रयाग में ही भगवान रुद्र का अवतार हुआ था।

इस दिन गायब हो जाएंगे बद्रीविशाल…
बद्रीनाथ का जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति से खास जुड़ाव माना गया है। नृसिंह भगवान मूर्ति के सन्दर्भ में ऐसी मान्यता है कि आदिगुरू शंकराचार्य जी जिस दिव्य शालिग्राम पत्थर में नारायण की पूजा करते थे उसमें एकाएक भगवान नरसिंह भगवान की मूर्ति उभर आयी और उसी क्षण उन्हें नारायण के दर्शन के साथ अद्भूत ज्ञानज्योति प्राप्त हुई।

भगवान नारायण ने उन्हें नरसिंह रूप के रूद्र रूप की जगह शांत रूप का दर्शन दिया, तभी से लोक मंगलकारी नारायण का शांत रूप मूर्ति जन आस्था के रूप में विख्यात है। इसी पावन मंदिर में भगवान बदरीनाथ के कपाट बन्द हो जाने के बाद उनकी मूर्ति को जोशीमठ लाकर हिमकाल छः माह तक भगवान बदरीनाथ की पूजा भी इसी मंदिर में की जाती है।

मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल-दर-साल पतला होता जा रहा है और अभी वर्तमान में भगवान नरसिंह भगवान के हाथ का वह हिस्सा सूई के गोलाई के बराबर रह गया है।

ऐसे में जिस दिन ये हाथ अलग हो जाएगा उस दिन नर और नारायण पर्वत (जय-विजय पर्वत) आपस में मिल जाएंगे और उसी क्षण से बद्रीनाथ धाम का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। ऐसे में भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।

बद्रीनाथ में लगातार हो रहे परिवर्तन को ऐसे समझें …
आदिबद्री मंदिर प्राचीन मंदिर का एक विशाल समूह एवम् बद्रीनाथ मंदिर के अवतारों में से एक है , इस मंदिर का प्राचीन नाम “नारायण मठ” था। यह मंदिर कर्णप्रयाग से लगभग 16 किलोमीटर दूर 16 प्राचीन मंदिरों का एक समूह है, लेकिन वर्तमान समय में केवल 16 मंदिर में से 14 ही बचे है। आदिबद्री मंदिर का आकार पिरामिड रूप की तरह है, मान्यता है कि आदिबद्री मंदिर भगवान नारायण की तपस्थली थी।


आदिबद्री मंदिर के बारे में यह माना जाता है कि भगवान विष्णु पहले तीन युगों (सत्य, द्वापर और त्रेता युग) में आदिबद्री मंदिर में बद्रीनाथ के रूप में रहते थे और कलयुग में वह वर्तमान “बद्रीनाथ मंदिर” में चले गए ।
एक और किंवदंती है कि भविष्य में जोशीमठ से बद्रीनाथ मंदिर (badrinath Mandir) का मार्ग पहाड़ के कारण बंद हो जाएगा। तब विष्णु की मूर्ति फिर से आदिबद्री मंदिर में स्थानांतरित कर दी जाएगी। यह भी माना जाता है कि भगवद गीता को भगवान विष्णु से प्रत्यक्ष पाठ लेने वाले ऋषि व्यास द्वारा रचित किया गया था।

इस छोटी सी जगह (12.5 मीटर X 25 मीटर) में सोलह मंदिर बने हैं। उनमें सबसे महत्वपूर्ण आदिबद्री (Adi Badri) मंदिर है। मंदिरों में मुर्तियां आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गयी थीं और मंदिरों को गुप्त अवधि के दौरान बनाया गया था। आदिबद्री मंदिर पंचबद्री मंदिर का एक भाग हैं एवम् पंचबद्री मंदिर ( आदिबद्री , विशाल बद्री , योग-ध्यान बद्री , वृद्ध बद्री और भविष्य बद्री ) बद्रीनाथ (badrinath) को समर्पित है। ये सभी मंदिर पास में ही स्थित हैं। एक मान्यता ये भी है कि जब कलयुग खत्म हो जाएगा तो बद्रीनाथ को भविष्यबद्री में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।

https://youtu.be/ID4Hrn_EE9M
सामने आएंगे भविष्य बद्री…
इसके बाद भविष्य में बद्रीनाथ (badrinath) भगवान जोशीमठ से 22 किमी आगे भविष्य बद्री के रूप में प्रकट होकर दर्शन देंगे। स्थानीय लोंगों के अनुसार भविष्य बद्री (Bhavisya badri) के संदर्भ में लोगों की मान्यता के अनुरूप भविष्य बद्री में एक शिलाखण्ड पर आश्चर्यजनक रूप से भगवान विष्णु की मूर्ति भी आकारित हो रही है।
भविष्य के बद्रीनाथ (badrinath) भविष्य बद्री का मंदिर उपन में है, जो जोशीमठ से दूर पूर्व में लता की ओर है। यह तपोवन से दूसरी तरफ है और यहां धौलीगंगा नदी के ऊपर और लगभग 3 किलोमीटर के ट्रैक द्वारा पहुंचा जा सकता है मोटर सड़क से इसकी ऊंचाई 2744 मीटर है यह घने जंगलो के बीच स्थित है यहां पहुचने के लिए धौली नदी के किनारे का रास्ता काफी कठिन है धौलीगंगा का अर्थ होता है (सफेद पानी) और वास्तव में यह लगभग हर जगह तेज धारा के साथ तपोवन से ऊपर की तरफ से दोनों ओर लगभग सीधा चट्टानों के मध्य से तेजी से गुजरती है।
भगवान विष्णु के कल्की (Kalki) अवतार करेंगे कलयुग को समाप्त…
ऐसा माना जाता है कि कलयुग में एक दिन जोशीमठ नरसिंह की मूर्ति का कभी न नष्ट होने वाला हाथ अंततः गिर जाएगा और विष्णुप्रयाग के पास पतमिला में जय और विजय के पहाड़ गिर जाएंगे जिस कारण बद्रीनाथ धाम में जाने का मार्ग बहुत ही दुर्गम हो जाएगा।
जिसके परिणामस्वरूप बद्रीनाथ का फिर से प्रत्यावर्तन होगा और भविष्य बद्री में बद्रीनाथ की पूजा की जाएगी भगवान विष्णु के अवतार कल्की कलयुग को समाप्त करेंगे और पुनः सतयुग की शुरुआत होगी इस समय बद्रीनाथ धाम को भविष्य बद्री में पुनार्स्तापित किया जाएगा।
बद्रीनाथ की कथा : katha of eighth baikunth of universe badrinath dham …
बद्रीनाथ की कथा (badrinath Katha) अनुसार सतयुग में देवताओं, ऋषि-मुनियों एवं साधारण मनुष्यों को भी भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन प्राप्त होते थे। इसके बाद आया त्रेतायुग- इस युग में भगवान सिर्फ देवताओं और ऋषियों को ही दर्शन देते थे, लेकिन द्वापर में भगवान विलीन ही हो गए। इनके स्थान पर एक विग्रह प्रकट हुआ। ऋषि-मुनियों और मनुष्यों को साधारण विग्रह से संतुष्ट होना पड़ा।
शास्त्रों अनुसार सतयुग से लेकर द्वापर तक पाप का स्तर बढ़ता गया और भगवान के दर्शन दुर्लभ हो गए। द्वापर के बाद आया कलियुग, जो वर्तमान का युग है।

पुराणों में बद्री-केदारनाथ के रूठने का जिक्र मिलता है। पुराणों अनुसार कलियुग के पांच हजार वर्ष बीत जाने के बाद पृथ्‍वी पर पाप का साम्राज्य होगा। कलियुग अपने चरम पर होगा तब लोगों की आस्था लोभ, लालच और काम पर आधारित होगी। सच्चे भक्तों की कमी हो जाएगी। ढोंगी और पाखंडी भक्तों और साधुओं का बोलबाला होगा। ढोंगी संतजन धर्म की गलत व्याख्‍या कर समाज को दिशाहीन कर देंगे, तब इसका परिणाम यह होगा कि धरती पर मनुष्यों के पाप को धोने वाली गंगा स्वर्ग लौट जाएगी।

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