दुलर्भ दर्शन
मथुरा के वृंदावन का उक्त मंदिर अपनी भव्यता और चमत्कारिक गुणों के कारण बहुत प्रसिद्ध भी है। तिरुपति बालाजी और माँ वैष्णोदेवी की तरह ही श्री बांके बिहारी के इस मंदिर भी भक्तों के दान और उनकी श्रद्धा के लिए विशेष महत्व वाला माना जाता है। खास बात ये है कि अक्षय तृतीया के दिन श्री बांके बहारी जी का दर्शन दुलर्भ होता है और इस कारण भक्त साल में केवल एक बार उनके पूरे स्वरूप का दर्शन करने दूर-दूर से आते हैं।
श्री चरणों का दर्शन अति फलदायी
साल में केवल एक बार अक्षय तृतीया पर्व के दिन ही भगवान बांके बिहारी के श्री चरणों के दिव्य दर्शन होते हैं। जबकि पूरे साल भक्त उनके पूरे शरीर के दर्शन तो भक्त पा लेते हैं लेकिन चरण के दर्शन नहीं होते। चरण फूल और वस्त्रों से ढका रहता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन अगर प्रभु के चरणों के दर्शन हो जाएं तो वह बहुत फलदायी होता है।
ऐसे होती है श्री चरणों की पूजा वंदना
मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान बांके बिहारी के श्री चरणों का विशेष पूजन करने के लिए दक्षिण भारत खास सुगंधित चंदन मंगाया जाता है। अक्षय तृतीया श्री बांके बिहारी को चंदन लेपन किया जाता है। खास बात मंगाए गए चंदन को घिसने की प्रक्रिया अक्षय तृतीया तिथि के एक महीने पहले ही शुरू कर दी जाती है। अक्षय तृतीया के दिन अंतिम बार इसे घिस कर भगवान के श्रृंगार से पहले लगाया जाता है। इस चंदन में कपूर, केसर, गुलाबजल, गंगाजल, यमुनाजल और कई तरह के इत्र भी मिलाए जाते हैं।
दो खास बातें
मंदिर में स्थापित प्रतिमा की दो खास बातें हैं। पहली ये प्रतिमा स्थापित नहीं हुई बल्कि स्वामी हरिदास जी की शक्ति से प्रकट हुई थी और दूसरे ये प्रतिमा राधा-कृष्ण की सम्मिलित प्रतिमा है। यानी आधा रूप राधा का और आधा कृष्ण का स्वरूप है।
ऐसे शुरू हुई श्री चरणों के दर्शन की परंपरा
भगवान के चरणों के दर्शन की परंपरा एक कथा से जुड़ी है। एक बार एक संत वृंदावन में अक्षय तृतीया के दिन बांके बिहारी के दर्शन करने के बाद एक भजन गा रहे थे। उस भजन के बोल कुछ ऐसे थे, श्री बांके बिहारीजी के चरण कमल में नयन हमारे अटके। तभी वहां एक भक्त भी पहुंचा और उसे यह भजन बहुत पसंद आया और श्रद्धा भाव से वह भी गाने लगा। भजन गाते हुए वह जब अपने घर पहुंचा तो भजन के बोल पलट गए। वह भक्ति भाव में इतना सराबोर था कि उसे पता ही नहीं चला कि भजन के बोल पलट गए है।
भजन कुछ ऐसा हो गया, बांके बिहारी जी के नयन कमल में चरण हमारे अटके। श्री बांके जी अपने इस भक्त के सच्चे मन और निर्मल भाव से इतने प्रसन्न हुए कि उसे दर्शन देकर उसे बताया कि वह उनका सबसे प्रिय भक्त है। भगवान ने जब उसे बताया कि उसकी भक्ति अन्य लोगों से अलग है तो भक्त पहले तो समझ नहीं पाया लेकिन बात में उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और वह प्रभु से क्षमा मांग कर रोने लगा और इसी के बाद से प्रभु के चरण के दर्शन की परंपरा शुरू हुई।
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