कम लोग जानते हैं कि युवावस्था में शंकराचार्य यहां अपने
गुरु गोविंद भगवद्पद से एक गुफा में मिले, दीक्षित हुए और आध्यात्मिक ऊंचाइयां हासिल की। उसी के बाद शंकराचार्य ने देश में चार मठ स्थापित किए तथा अद्वैत वेदांत को देशभर में फैलाया। यहां से मिले गुरुज्ञान ने शंकराचार्य को आदि शंकराचार्य बना दिया।
प्रतिमा निर्माण के लिए गत वर्ष मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने ‘नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा’ के दौरान घोषणा की थी। इस अभियान के तहत दिसंबर से चार स्थानों से एकात्म यात्रा निकाली गई। इस यात्रा के दौरान जगह-जगह से धातु का संग्रहण किया गया। इसी धातु से प्रतिमा का निर्माण किया जाना है। 22 जनवरी को आदि शंकराचार्य के लिए प्रतिमा का भूमिपूजन किया जाएगा। इससे ओंकारेश्वर पर्यटकों को आकर्षित करने का भी प्रयास किया जा रहा है। इस कोशिश के चलते आने वाले समय में ओंकारेश्वर को
शिव के साथ आदि शंकराचार्य के दीक्षित होने वाले स्थल के तौर पर पहचाना जाने लगेगा।
सरकार की योजना के मुताबिक, ओंकार महादेव
मंदिर के प्राचीन वैभव और वास्तु-कला को देखकर नई रूपरेखा बनेगी। पूरे ओंकार पर्वत को सघन वन से आच्छादित किया जाएगा। आदि शंकराचार्य की गुफा के हिस्से में शंकराचार्य के जीवन और उनके जीवन मूल्यों पर आधारित चित्र उकेरे जाएंगे। नए निर्माण में आदि शंकराचार्य की गुफा के मूल स्तंभ जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे और इन पत्थरों को जोडक़र सोने व लोहा से सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर निर्माण किया जाएगा। इसके अलावा यहां संतों के मार्ग दर्शन में वेदांत संस्थान की स्थापना की जानी है।
उल्लेखनीय है कि ओंकारेश्वर वह स्थान है, जहां आदि शंकराचार्य ने नर्मदा के तट पर दीक्षा प्राप्त की थी। आमजन ओंकारेश्वर, नर्मदा और आदि शंकराचार्य के महत्व को जान सकें, इसके लिए लाइट एंड साउंड शो कार्यक्रम प्रारंभ किया जाना है। इसके साथ ही यहां पर विष्णुपुरी, ब्रह्मपुरी और ममलेश्वर मंदिरों को जोडऩे वाला आकाश मार्ग स्थापित किया जाए।