हलेश्वर स्थान
यह सीतामढ़ी से सात किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित है।यहां राजा जनक द्वारा स्थापित शिवलिंग है।कहते हैं राजा जनक ने पुत्रेष्टि यज्ञके बाद यहां शिवलिंग की स्थापना कर शिवमंदिर बनवाया था।इसका जीर्णोद्धार 2004-05में तत्कालीन डीएम अरुण भूषण प्रसाद ने करवाया था।
पंथपाकड़
सीतामढ़ी से आठ किलोमीटर दूर उतर पूर्व में स्थित इस स्थान पर बहुत पुराना एक पाकड़ का पेड़ है।इसे रामायण कालीन माना जाता है। मान्यता है कि देवी सीता ने यहां वृक्ष के नीचे विश्राम किया था।
देवकुली
पुनौरा से बीस किलोमीटर दूरी पर देवकुली मंदिर है। यहां भुवनेश्वर नाथ महादेव का प्राचीन मंदिर है।मान्यताओं के मुताबिक द्रौपदी का स्वयंवर यहीं हुआ था।यहां खौलते तेल में देखकर अर्जुन ने मछली की आंख में तीर मारने के बाद स्वयंवर में द्रौपदी से विवाह किया था।
अहिल्यस्थान
सीतामढ़ी से 59किलोमीटर दूर इस स्थान पर पाषाण हुई अहिल्या श्रीराम के चरणों के स्पर्श के बाद मुक्त होकर मूल स्वरूप में आई थी।
उर्विजा कुंड
नगर के पश्चिमी छोर पर स्थित विशाल कुंड । इसका जीर्णोद्धार 200वर्ष पूर्व हुआ था। मान्यताओं के मुताबिक कुंड के जीर्णोद्वार के दौरान उर्विजा सीता की एक प्रतिमा निकली थी।वर्तमान जानकीस्थान मंदिर में स्थापित सीता की प्रतिमा वही है जो कुंड की खोदाई के दौरान निकली थी।
श्रीश्याम मंदिर
मारवाड़ी समुदाय का प्राचीन श्रीश्याम मंदिर कोटा बाजार स्थित खेमका मोहल्ले में है। यहां बड़ी संख्या में मारवाड़ी समाज के लोग दर्शन पूजन करने आते हैं।
हनुमान मंदिर
कोटा बाजार स्थित हनुमान मंदिर सैंकड़ों वर्ष पुराना है। यह भारतवर्ष का एकमात्र दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर है।आसपास कई शनि मंदिर भी हैं।
सीता प्राकट्य कथा
प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक मिथिला के राजा जनक के कार्यकाल में एक बार भयंकर सूखा पड़ा।तब मिथिला की राजधानी जनकपुर (अब नेपाल में)हुआ करती थी। इसके समाधान के लिए एक ऋषि के कहने पर राजा जनक ने हलेष्ठि यज्ञ किया।खेत जोतने के दौरान हल की नोक एक घड़े से टकराई जिसमें एक कन्या थी। पुत्र नहीं होने के कारण राजा जनक ने उसे अपनी पुत्री बना लिया। हल की नोक को सीत कहा जाता है। इसलिए उनका नाम सीता रखा गया।सीता उर्वरता की प्रतीक हैं इसलिए इन्हें उर्विजा कहा गया। जनक पुत्री होने से सीता, विदेह की राजकुमारी होने से वैदेही और भूमि से उत्पन्न होने के कारण सीता को भूमिजा भी कहा गया।शिशु सीता को पहले एक मड़ई(पर्णकुटिर)में रखने के कारण स्थान का नामकरण सीतामड़ई हुआ जिसे बाद में सीतामढ़ी कहा जाने लगा। लगभग पांच सौ वर्ष पहले तक यह जंगलनुमा इलाका था। बीरबलदास नामक एक संत सीताप्राकट्य स्थल की खोज करते यहां पहुंचे। अयोध्या से आए इस संत ने जंगल की सफाई कराकर राजा जनक द्वारा स्थापित पत्थर की प्रतिमा के स्थान पर ही जानकी मंदिर का निर्माण करवाया।1895ई. में मंदिर का नवीनीकरण मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ की रानी ने करवाया।4860वर्गफुट में फैले मंदिर परिसर में सीता का संग्रहालय भी है। सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर दूरी पर स्थित इस मंदिर से सटे जानकी कुंड भी अवस्थित है। सीतामढ़ी स्टेशन से पांच किलोमीटर दूरी पर पुनौरा गांव है।लोग सीता की प्रकट स्थली इसे ही मानते आ रहे हैं। यहां रामनवमी और विवाह पंचमी पर विशाल मेला वर्षों से लगता आ रहा है।