गौरतलब है कि अभी तक जिले में जायद फसल की खेती के रूप में किसान सब्जी ही उगाते रहे हैं। बीते कुछ सालों से किसानों का रुख जायद खेती की ओर बढ़ा है। जिले में जायद फसल के रूप में सबसे ज्यादा उड़द और मूंग बोई जा रही है। उड़द और मंग की फसल में इन दिनों पीला मोजेक रोक का प्रभाव देखने को मिल रहा है।
किसान मनोज प्रताप सिंह ने बताया, उन्होंने अपने खेत में करीब ४ एकड़ में उड़द और मूंग की फसल बोई है। इन फसलों में अभी पेड़ और डंठल पीले पडऩे लगे हैं। इस तरह से एक अन्य किसान रामगोपाल ने बताया, उन्होंने करीब एक एकड़ में मंूग की फसल लगाई थी। उनके खेत में भी लगी मूंग में पत्ते पीले पडऩे लगे हैं। किसानों ने बताया, धीरे-धीरे यह रोग बढ़ता जाता है। एकबार फसल में रोग फैलने के बाद दवाओं के छिड़काव से भी यह पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाता है। इससे किसानों को काफी घाटा उठाना पड़ सकता है।
पीला मोजेक रोग नियंत्रण के लिए वैज्ञानिक सलाह
कृषि विज्ञान केंद्र पन्ना के प्रभारी कृषि वैज्ञानिक डॉ. आशीष त्रिपाठी ने बताया, मूंग व उड़द की फसल में पीला मोजेक रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है । इसके नियंत्रण के लिए किसानों को चाहिए कि इमिडाक्लोप्रिड 17.6 एसएल की 150 मिली. मात्रा अथवा ऐसिटामिप्रिड की 150 ग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के मान से छिड़काव करें। कीटनाशी का छिड़काव शाम के समय करें। इससे इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
सब्जियों को भी रोगों से बचाने के उपाए
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. त्रिपाठी ने बताया, कद्दूवर्गीय सब्जियों जैसे गिलकी, लौकी आदि में डाडनी मिल्डयू रोग व अन्य पर्ण दाग रोगों के नियंत्रण के लिए क्लोरोथेलोनिल अथवा थियोफिनेट मिथाइल की 200 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के मान से छिड़काव करें। सब्जियों के जो फल दक्षिण दिशा की ओर होते हैं, उनमें विशेष रूप से सूर्य की गर्मी से झुलसन आ जाती है, जिसे सन-स्क्रेचिंग कहते हैं। इससे बचाव के लिए किसान भाई फलों को घास-फूस से ढक दें तथा नियमित अंतराल से सिंचाई करें। जायद मौसम की फसलों सामान्य तौर पर 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए । सिंचाई के लिए सुबह अथवा शाम का समय बेहत रहता है।